Broken heart touching short love stories in Hindi | Very emotional heart touching breakup love story in Hindi
कहानी का शीर्षक है :-डाक्टर साहेब
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याद शहर के बस अड्डे पर उस दिन कुछ ज़्यादा ही भीड़ थी। बुधवार जो था। हफ़्ते के उन दो दिनों में से एक जब डॉक्टर बनर्जी पुराने शहर में अपनी क्लीनिक में बैठते थे। सोमवार और बुधवार को दूर-दूर से मरीज़ आते थे और सुबह से डॉक्टर साहेब की क्लीनिक में लाइन लगा देते थे। कई पुश्तों से आ रहे थे। डॉक्टर बनर्जी के पिता सीनियर डॉक्टर बनर्जी भी याद शहर के मशहूर डॉक्टर रहे थे। डॉक्टर बनर्जी दिल के मरीज़ थे पर छुपाकर सारी चीजें खाते थे, जो उन्हें मना थीं। परिवार का नाता रखते थे मरीज़ों से।
पूछते थे, “क्या हुआ? इतनी जल्दी क्यों है बेटी का ब्याह करने की?” पचास साल से याद शहर और दूर-दूर के कई और शहरों के लोगों का इलाज किया था। जानलेवा से जानलेवा, लाइलाज से लाइलाज मर्ज़ ठीक होते थे यहां। बनर्जी क्लीनिक में आना हज़ारों परिवारों के लिए वैसा ही था, जैसे काली माता के मंदिर में जाकर प्रसाद चढ़ाना। फिर सीनियर डॉक्टर बनर्जी एक दिन जाड़े की सुबह गुज़र गए। लेकिन अपना सारा ज्ञान कबसे अपने बेटे डॉक्टर प्रद्युम्न बनर्जी के हाथों सौंप गए थे।Emotional story in Hindi
कहते थे, “डॉक्टर होने के लिए सिर्फ एमबीबीएस की फ्रेम की हुई काग़ज़ की डिग्री की ज़रूरत नहीं होती। अच्छा डॉक्टर होने के लिए अच्छा इंसान होना ज़्यादा ज़रूरी होता है। और मेरा बेटा मुझसे बहुत बेहतर इंसान है। चाहता तो विलायत जा सकता था।”
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खैर, मुल्क छोड़कर जाने या न जाने से किसी इंसान की भलाई या बुराई नहीं दिखती है। लेकिन भलाई इसमें थी कि बाप-बेटा दोनों ग़रीबों का इलाज मुफ़्त में करते थे और बाकियों का भी बड़ी मुनासिब फ़ीस लेकर। बड़े डॉक्टर बनर्जी कई साल अपने बेटे के साथ-साथ क्लीनिक में बैठे थे। उनका मानना था कि भगवान ने उन्हें डॉक्टर बनाकर उन पर बड़ी कृपा की थी। जैसे भगवान ने अपना काम अपने भरोसे के कुछ लोगों को सौंप दिया था कि जाओ, मेरे पास बहुत काम है आजकल। तुम लोग जाकर मेरा हाथ बंटाओ।
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अपने बेटे से कहते, “काली मंदिर जाने और मछली मोहल्ले की इस गली में आने में कोई फ़र्क नहीं होना चाहिए। दोनों जगह हर आने वाले की तकलीफ़ दूर होनी चाहिए। आख़िर डाक्टरी भगवान का दिया ऑर्डर है, व्यापार नहीं है!’ हर रोज़ चहकने वाले डॉक्टर बनर्जी आज कुछ ज़्यादा ही चहक रहे थे। अरे आप अटकलें मत लगाइए! डॉक्टर बाबू पैंसठ की उम्र में कहीं दिल नहीं लगा बैठे थे। शकुंतला जी ने रवीन्द्र संगीत और टैगोर की पोएट्री शो-ऑफ़ कर-करके पचास साल पहले स्कूल डेज़ में ही उनका दिल जीत लिया था।Emotional story in Hindi
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चहक इसलिए रहे थे कि उनका बेटा आज घर वापस आ रहा था, डॉक्टरी पढ़कर। दो-दो डॉक्टर बनर्जी तो इस परिवार में पहले ही पैदा हो चुके थे। अब तीसरे पधार रहे थे। डॉक्टर बनर्जी का बेटा अनिर्बान उनकी आंखों का तारा था। उनका गुरुर। बल्कि सच पूछिए तो एक डिसिप्लिन पसंद पिता की एकमात्र कमज़ोरी, जिसके लिए अक्सर उन्होंने अपने ही बनाए क़ानून तोड़े थे। डीएम साहब के बंगले और आईजी साहब की कोठी जितना ही मशहूर पता था डॉक्टर बनर्जी के क्लीनिक का।
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क्लीनिक खचाखच भरा था। कुर्सियों, बेंचों, यहां तक कि सामने चबूतरे पर लोग बैठे थे। डॉक्टर बनर्जी का असिस्टेंट मुन्ना मरीज़ों का नाम पुकार रहा था और इस बीच डॉक्टर साहब ने देखा कि क़मीज़-पैंट, कुर्ता, साड़ी, सलवार- क़मीज़ पहने लोगों की भीड़ में दो आदमी सूट और टाई पहने भी बैठे थे। उन्होंने वहीं से चिल्लाकर कहा, “पर्सनल मैटर क्लीनिक में नहीं। कल आइए घर पर। ठीक दसबजे। सूट-टाई वाले चले गए। मरीज़ों की लाइन को ख़त्म होते-होते तीन घंटे लगे। फिर डॉक्टर साब अपनी पुरानी गाड़ी में बैठकर चल दिए रेलवे स्टेशन, अपने बेटे अनिर्बान को रिसीव करने।Emotional story in Hindi
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ट्रेन एक घंटे लेट थी। डॉक्टर साब प्लेटफ़ॉर्म पर टहलते रहे, फिर बुक शॉप से दो अख़बार ख़रीद लिए, कॉफ़ी ख़रीदी और बेंच पर बैठकर पढ़ने लगे। सामने एक बड़े से विज्ञापन पर नज़र पड़ी तो मुस्कराने लगे। जब तक कॉफ़ी ख़त्म हुई, ट्रेन आ चुकी थी और अनिर्बान स्टेशन से निकलने ही वाला था कि किसी चुलबुले देवता की तरह बेटे के सामने डॉक्टर साब जाकर प्रकट हो गए। बोले, “सरप्राइज़!”
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अनिर्बान बड़ा खुश हुआ और पापा को गले से लगा लिया। डॉक्टर बनर्जी और नए डॉक्टर बनर्जी साथ-साथ प्लेटफ़ॉर्म से निकले, गाड़ी में बैठे। डॉक्टर बनर्जी ने गाड़ी स्टार्ट की और अनिर्बान ने उनसे अख़बार ले लिया। ये वही विज्ञापन था जिसे देखकर उसके पिता मुस्कुराए थे। याद शहर में पहला प्राइवेट हॉस्पिटल खुलने जा रहा था।Emotional story in Hindi
अनिर्बान बोला, “याद शहर भी एडवांस्ड हो गया है। डॉक्टर बनर्जी बोले, “कितने भी प्राइवेट हॉस्पिटल खुल जाएं, अब मेरा बेटा आ गया है। बेस्ट डॉक्टर इन याद शहर! अब मैं रिटायर हो जाऊंगा और तुम बनर्जी क्लीनिक के डॉक्टर बनर्जी बन जाओगे।” जैसे कोई राजकुमार घर आता है, वैसे अनिर्बान का स्वागत मोहल्ले में हुआ। वो सिर्फ़ डॉक्टर बनर्जी का बेटा थोड़े था? उसे तो याद शहर में सब जानते थे। “अरे! डॉक्टर बनर्जी का बेटा बाहर से डाक्टरी पढ़कर आया है। ज़रूर डाक्टर साहेब जैसा अच्छा डाक्टर बनेगा।” अच्छा डॉक्टर, यानी अच्छा इंसान।
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दोस्तों, मुझे अक्सर बड़ी तकलीफ़ होती है कि डॉक्टरी पेशा किस धरातल में जा रहा है। बड़े शहरों में तो डॉक्टर और करोड़पति जैसे एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं। दो साल पहले मेरे पिताजी का ऑपरेशन हुआ था, तो अस्पताल में काफ़ी वक़्त गुज़रता था। वहां देखा कि कैसे अपनी ज़मीन, अपनी बीवियों के गहने बेचकर किसान सौ किलोमीटर दूर अस्पतालों में जाते हैं, अपने करीबियों की जान बचाने। ये वही ग़रीब थे, जिनके नाम पर सरकार ने अस्पताल के लिए करोड़ों की ज़मीन कौड़ियों के मोल दी थी।Emotional story in Hindi
दिल का ऑपरेशन तो करते हैं, पर अस्पतालों के पास दिल क्यों नहीं होते? खैर, डॉक्टर बनर्जी की कहानी की ओर आगे बढ़ते हैं। उन्होंने डॉक्टर होने को हमेशा समाज की भलाई का काम माना था। इसलिए उनका क्लीनिक पैसे छापने की मशीन नहीं, अच्छी सेहत की फैक्टरी बन गई थी। यश और दुआएं तो खूब कमाई थी, हां पैसा ज़्यादा नहीं कमा पाए थे डॉक्टर बनर्जी।
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उनके पिता ने उनके लिए बड़ा पुश्तैनी मकान छोड़ा था, जो परदादाओं के ज़माने का था। मकान भी अब बुजुर्ग हो चला था। आर्किटेक्ट कहते थे, “उसका एक हिस्सा नहीं पाए अब इतना कमज़ोर हो गया था कि रहने के लिए बहुत ख़तरनाक था।” डॉक्टर बनर्जी ने बैंक से लोन लेकर उस हिस्से को तोड़कर दोबारा बनवा लिया था। दस लाख रुपए लगे थे। याद शहर के मशहूर डॉक्टर बनर्जी की जिंदगी का अनकहा सच, जो दुआएं देते उनके मरीज़ नहीं जानते थे, वो ये था कि वो दस लाख का लोन डॉक्टर साहेब चुका थे।Emotional story in Hindi
पिछले दिन क्लीनिक में बैठे सूट और टाई पहने दो सज्जन उस बैंक से ही आए थे। अगली सुबह वो दोनों डॉक्टर साहब के कहे अनुसार दस बजे घर पहुंच गए। बेटे अनिर्बान ने बैंक के अफ़सरों को बिठाया, चाय-पानी पिलाया, फिर पूछा, “पेशेंट हैं आप? पापा ने टाइम दिया है क्या? क्योंकि वो घर पर सिर्फ़ एमरजेंसी केस देखते हैं।”
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दो अफ़सरों में से एक ने गला साफ़ किया और बोला, “नहीं सर, हम बैंक से हैं। बस ये बताने आए थे कि अगर अठारह दिन में लोन नहीं भरा, तो हमें ये घर बेचना होगा।” डॉक्टर बनर्जी देखने से तो मस्तमौला लगते थे, लेकिन एक टाइम बम था, जो उनके अंदर लगातार चल रहा था। मुस्कुराहट के पीछे इस बुजुर्ग डॉक्टर की जिंदगी का सबसे बड़ा डर छुपा था। बैंक को दस लाख न दे पाने के कारण पीढ़ियों पुराना वो पुश्तैनी घर बिकने पर आ गया था।
बैंक के अफ़सरों को कुछ दिनों में पैसे देने का वादा करके भेज तो दिया, लेकिन दस लाख रुपए! एक ईमानदार डॉक्टर, जो मरीज़ों से कम फ़ीस लेता था, इनकम टैक्स की चोरी ना करके हर पेशेंट को रसीद देता था और जिसने डॉक्टरी को सेवा का ज़रिया माना था, ना कि व्यापार, वो डॉक्टर आज धर्मसंकट में था। अगली सुबह डॉक्टर बनर्जी अपनी छड़ी लेकर रोज़ की तरह मॉर्निंग वॉक पर निकले।Emotional story in Hindi
हर दस मीटर पर कोई जाननेवाला मिल जाता था। सड़क पर सामने कुछ होर्डिंग्स लगे थे। याद शहर में अपार्टमेंट कल्चर जो शुरू हो रहा था! डॉक्टर बनर्जी के कुछ दोस्तों ने सलाह तो दी थी कि वो अपना आलीशान, लेकिन पुराना बंगला बेच दें, लोन चुका दें और एक छोटे-से अपार्टमेंट में शिफ्ट हो जाएं।
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डॉक्टर बनर्जी ने सड़क पर लिखे कुछ प्रॉपर्टी डीलरों के नंबर अपनी छोटी-सी डायरी में उतार लिए। लेकिन घर के सामने पहुंचे तो रुक गए। सामने उनका खूबसूरत घर वैसे ही खड़ा था, ख़ामोश, टकटकी लगाए उन्हें देखता, जैसे कभी डॉक्टर बनर्जी के पिता खड़े होते थे, उनका स्कूल बस से इंतज़ार करते हुए। इस घर के लॉन पर पहली बार उन्होंने अपने पापा से स्पिन करना सीखा था।
यहीं उनकी दादी दुर्गा पूजा में सारे मोहल्ले को बुलाती थीं, यहीं इक्कीस साल की एक लड़की आई थी, जिसने टैगोर की लिखी एक कविता बांग्ला में सुनाई थी और प्रद्युम्न बनर्जी का दिल जीत लिया था। इसी घर में लाल रंग की शॉल में लिपटे अपनी हथेली से बस ज़रा से बड़े अपने बेटे को, अनिर्बान को, अस्पताल से लेकर आए थे।Emotional story in Hindi
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तीन दिन और गुज़र गए। बैंक ने जो अठारह दिन दिए थे, वो अब पंद्रह रह गए। अनिर्बान कुछ उधेड़बुन में लगा रहता था। एक दिन सोमवार को जब डॉक्टर बनर्जी क्लीनिक से वापस आए, तो वो उनका इंतज़ार कर रहा था। बड़ा खुश था। बोला, “पापा मुझे रास्ता मिल गया है।” डॉक्टर बनर्जी ने कहा, “मैं जानता था बेटा तू ही बचाएगा हमें।” अनिर्बान बोला, “नीचे मेरे कॉलेज टाइम का दोस्त पुनीत अरोड़ा आया हुआ है।Emotional story in Hindi
अब याद शहर का सबसे बड़ा बिज़नेसमैन है। डेढ़ सौ करोड़ का टर्नओवर है इनका। ये लोग यहां एक प्राइवेट हॉस्पिटल खोलना चाहते हैं। मैंने उनसे कह दिया है कि हमारी ज़मीन पर बना सकते हैं। एक साल में बन जाएगा। आप चेयरमैन रहोगे, मैं सीईओ और कंपनी में पच्चीस पर्सेट शेयर हमारा।”
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डॉक्टर बनर्जी को यक़ीन ही नहीं हुआ कि ये उनका बेटा कह रहा था! बस उसे देखते रहे और बोले, “तूने एक बिज़नेसमैन को कह दिया है कि वो हमारी ज़मीन पर एक प्राइवेट हॉस्पिटल बना सकता है? अनिर्बान, दिस इज़ ए जोक, राइट?” अनिर्बान ने कहा, “जोक तो हम लोग बन गए हैं पापा। आप पिछले तीस साल से चालीस रुपए लेकर मरीज़ों को देख रहे हैं। गरीबों का इलाज मुफ़्त में करते हैं।
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शहर के सारे डॉक्टर हंसते हैं हम पर, पता है? कहते हैं, याद शहर में एक नहीं दो सस्ते सरकारी अस्पताल हैं–सिविल अस्पताल और बनर्जी क्लीनिक। औरों की मदद करना तो ठीक है पापा, लेकिन थोड़ा-सा प्रैक्टिकल हो जाइए, प्लीज़! ज़रा कभी फ़ैमिली के बारे में सोच लीजिए। हमारी फ़ाइनेंशियल सिक्योरिटी के बारे में सोच लीजिए। दस लाख का लोन नहीं चुका पा रहे हैं हम! मेरे क्लासमेट्स भी डॉक्टर हैं। दिल्ली-बंबई में महीने के दस लाख कमाते हैं।”Emotional story in Hindi
डॉक्टर बनर्जी ने सामने कुर्सी का कोना ज़ोर से पकड़ लिया। बोले, “अनिर्बान, मैं आज तक सोचता था कि ये घर मुझे तेरे जितना ही प्यारा है। लेकिन असल में ये मुझे तुझसे भी ज़्यादा प्यारा है। ये घर मेरी विरासत है, मेरे बाबा का आशीर्वाद है। और बाबा ने ये सिखाया है कि डाक्टरी सेवा का काम है, व्यापार नहीं है। अभी चला जा बेटा यहां से। दिमाग़ ठीक हो जाए तो आना। साथ में खाना खाएंगे।अपने करोड़पति दोस्त को भी ले जा। नहीं चाहिए मुझे चेयरमैन की कुर्सी, पच्चीस पर्सेट शेयर।”
और फिर ज़ोर से चिल्लाए, “बिशम्भर! गाड़ी निकालो। ईसीजी… ईसीजी…” पहुंचे हुए डॉक्टर जान जाते हैं कि कब उन्हें हार्टअटैक होने वाला होता है। डॉक्टर बनर्जी को हार्टअटैक आ गया था। डॉक्टरों ने कहा कि वो इतने अलर्ट थे कि उनकी जान बच गई थी। लेकिन ये झूठ था। वो चाहे अपने आईसीयू के बिस्तर पर लेटे थे लेकिन डॉक्टर बनर्जी की जान तो असल में चली गई थी। सारी रात की जगी उनकी पत्नी शकुंतला अपने पति की ख़ामोश आंखों में देख रही थी।
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दिल का गहरा घाव चेहरे पर उतर आया था। शकुंतला उनके लिए पैकेट से दवा निकालने के लिए मुड़ी ही थीं कि डॉक्टर बनर्जी ने उनकी हथेली थाम ली। बोले, “शकुंतला! कहां चूक कर दी हमने अपने बेटे को बड़ा करने में?” लेटे-लेटे आंख के कोने से आंसू की एक बूंद निकल पड़ी।Emotional story in Hindi
साठ साल में पहली बार उस मछली मोहल्ले में बनर्जी क्लीनिक बंद थी। सैकड़ों मरीज़ दूर-दूर से आ चुके थे। रिक्शों पर, पैदल उस गली की ओर चले आ रहे थे, लेकिन क्लीनिक बंद थी। शहर में ये बात आग की तरह फैल गई। अगले दिन किसी पत्रकार ने बैंक लोन वाली बात भी पहले पन्ने पर छाप दी।
जिनकी तकलीफें डॉक्टर बनर्जी या उनके पिता ने कभी दूर की थीं, सब एक-दूसरे को फ़ोन करके, नुक्कड़ पर रुककर सरस्वती टी-स्टॉल के पास बता रहे थे कि याद शहर के सबसे चहेते लोगों में से एक सबसे मुश्किल में थे। चार दिन बीत गए। फिर सात। फिर दस। और आख़िरकार वो दिन आ गया, जब डॉक्टर बनर्जी को बैंक के दस लाख रुपए देने थे, अपना पुश्तैनी मकान बिकने से बचाने के लिए।
दो हफ्ते से वो किसी से नहीं मिले थे। उनके बेटे ने एक छुरा घोंप दिया था उनके कलेजे में। अठारहवें दिन डॉक्टर बनर्जी एक हल्की नींद से जागे, कुछ महसूस किया। बेटा अनिर्बान उनके पांव छू रहा था। बोला, “पापा मुझे माफ़ कर दीजिए। भटक गया था। ये हैं दस लाख रुपए। याद शहर और कई और शहरों से हज़ारों-हज़ारों लोगों ने सौ-पचास-पांच सौ-हज़ार रुपए जोड़कर पूरे किए हैं। अब घर नहीं बिकेगा।Emotional story in Hindi
डॉक्टर बनर्जी ने बेटे को देखा। बोले, “ये पैसे मुझे नहीं चाहिए। घर नहीं रहेगा अब। बैंक का लोन चुकाकर हम लोगों के लिए तीन कमरे छोड़कर उसमें एक अस्पताल बनेगा, जहां कभी किसी को अपनी जान बचाने के लिए पैसा नहीं देना पड़ेगा। डॉक्टरी सेवा का काम है बेटा। व्यापार नहीं है।” बस इतनी सी थी ये कहानी
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