Inspirational heart touching short stories about family relationships in Hindi with moral

A heart touching story with moral and inspirational | Short stories about family relationships in Hindi

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कहानी का शिर्षक है :- डॉक्टर तन्हाई

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डॉक्टर अंकुर शाह उस दिन साठ साल के हो गए थे। पर साठ के वो कहीं से नज़र नहीं आते थे। क्या ज़बर्दस्त पर्सनैलिटी थी! बालों में सफ़ेदी ऐसी अदा से आई थी जैसे अमावस की रात में भटकती हुई चांदनी कहीं से आ गई हो। एकदम फ़िट थे। डॉ. शाह बैचलर थे। मेडिकल वाले डॉक्टर नहीं थे। असल में वो जियॉलोजी यानी भूगर्भशास्त्र यानी पत्थरों की स्टडी के डॉक्टर थे। उनके दोस्त उनको डॉक्टर तन्हाई कहते थे। काम में इतने उलझे रहे कि दिल के मामलों में उलझने का ख्याल ही नहीं आया। शादी, प्यार… ये सब चीजें यूं भी उस पत्थर के सनम के लिए बेमानी थीं।

पुराने ख्यालात के थे और किसी तरह के बदलाव से बहुत डरते थे। अपनी अस्सी के दशक की कैद दुनिया में मेहदी हसन, गुलाम अली और साबरी ब्रदर्स की कव्वालियों, आबिदा परवीन की दर्दभरी आवाज़ के साथ अपने घर में खुश थे कि एक दिन तन्हाईपसंद डॉक्टर की तन्हा जिंदगी में खलल डालने एक और शख्स आ गया। उनके भाई अनिकेत का तेरह बरस का पोता, आदित्य। गर्मियों की छुट्टियों में उसके घरवालों ने उसे याद शहर भेज दिया था।family relationships Hindi

आदित्य लैपटॉप और इंटरनेट वाली जेनरेशन का बच्चा था। बड़ा प्यार करते थे डॉक्टर शाह उसे। सो, वो बुलाता था उन्हें अपने साथ कंप्यूटर गेम्स खेलने के लिए और डॉक्टर तन्हाई मन मारकर उसके साथ बैठ जाते थे। उनके देखते-देखते आदित्य ने ना जाने कितनी कारें एक्सीडेंट में तोड़ डालीं, कितने सिपाही भयानक लड़ाइयों में मार डाले।

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जियॉलोजी के प्रोफ़ेसर साहब के लिए ये सब एक नई दुनिया थी। टाइपराइटर प्रेमी डॉक्टर साहब तो कंप्यूटर के पास फटकते तक नहीं थे। और यहां इंटरनेट के महासागर में उनका पोता उन्हें नए नए मोती दिखा रहा था… ई-मेल, फेसबुक फलाना फलाना… आदित्य थोड़ी देर में मार्केट चला गया और डॉक्टर तन्हाई ने सोचा, ये इंटरनेट से इतने दिनों से मैं बेकार में घबरा रहा था।

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आख़िर मैं साठ साल का हूं, दुनिया देखी है… सो आख़िरकार, उन्होंने इंटरनेट की दुनिया में छलांग मार दी और सीधे फ़ेसबुक के समंदर में जा गिरे। डॉक्टर अंकुर शाह उर्फ़ डॉक्टर तन्हाई ने लंबी सांस ली और अपनी इस नई यात्रा… इंटरनेट यात्रा पर निकल पड़े। बदलाव से डरने वाले डॉक्टर शाह ने ये बड़ी बहादुरी का काम किया था। ये फ़ेसबुक वगैरह की दुनिया में रहने के लिए आपको अपने आपको को इतना एक्सपोज़ करना पड़ता है… अपनी व्यक्तिगत बातें बतानी पड़ती हैं… डॉक्टर शाह थोड़ा रिज़र्व टाइप आदमी थे लेकिन सिस्टम और रुल्स में पक्का विश्वास करते थे।

इसलिए जब फ़ेसबुक ने पूछा तो अपनी प्रोफ़ाइल बनाते हुए लाइक्स और डिसलाइक्स का कॉलम उन्होंने बड़ी श्रद्धा से भरा कि उन्हें भिंडी पसंद थी, बैडमिंटन खेलते थे, फ़ेवरेट किताब थी ऑरिजन ऑफ़ दी अर्थ बाय आर्थर होम्स। येभी डाल दिया कि बैचलर हैं। जैसे ही प्रोफ़ाइल बनी, उन्हें दोस्त बनाने के सुझाव आने लगे। कई-कई तरह के लोग थे। डॉ शाह को ये प्रक्रिया एक साथ ही विचित्र भी लगी और बड़ी अटपटी भी…जैसे साठ साल की उम्र में अचानक वो किसी दोस्ती के स्वयंवर में खड़े हों।family relationships Hindi

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कंप्यूटर स्क्रीन पर एक तरफ़ वो और दूसरी तरफ एक-एक करके दोस्ती के दावेदार आ रहे थे। कोई बीस साल का स्टूडेंट, कोई पैंतीस की टीचर, कोई अड़तालीस का सीईओ। डॉ शाह थोड़ी देर में ये समझ गए कि ये फ़ेसबुक उनकी कॉलोनी में पार्क की एक बेंच की तरह ही तो था। बतियाओ, नए दोस्त बनाओ, आते-जाते दुआ-सलाम करो। अचानक उनकी चैट की विंडो में एक नाम प्रकट हुआ–कृष्णा देसाई। फ़ोटो नहीं लगाई थी उन्होंने।

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अच्छा, लेडीज से डॉक्टर तन्हाई काफ़ी कतराते थे। इसलिए उनका नाम डॉक्टर तन्हाई पड़ा था। वरना उनका नाम डॉक्टर महफिल होता। उस चैट बॉक्स को हटाने ही वाले थे कि महिला ने कह दिया, हैलो। अब हैलो कह ही दिया है तो जवाब ना देना शिष्टाचार के ख़िलाफ़ जाता है ना? तो उन्होंने भी वापस कह दिया, हैलो।

 

मैं यहां हिंदी में अनुवाद करके बताता चलता हूं कि कृष्णा देसाई ने क्या कहा… उन्होंने कहा कि “आप शायद फ़ेसबुक पर दूसरे इंसान होंगे, जिनकी ऑलटाइम फ़ेवरेट बुक ऑरिजिन ऑफ़ द अर्थ बाय आर्थर होम्स होगी। डॉक्टर शाह बोले, “अच्छा? पहला कौन?” कृष्णा ने कहा, “मैं। जियॉलोजी की शौकीन हूं, इसलिए मुझे वेबसाइट ने सजेस्ट किया है कि मैं आपसे दोस्ती कर लूं।”

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डॉ तन्हाई का माथा ठनका। ये वेबसाइट है या लोगों की जन्मपत्री मिलानेवाला कोई पंडित? और ये लड़की इतना फ्रेंडली क्यों हो रही है? उधर से जवाब आया, “आप जियॉलोजिस्ट हैं। मैंने पेलेनटॉलोजी में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है।” डॉक्टर तन्हाई घबराहट में किचन गए और दो गिलास ठंडा पानी एक साथ पी गए। वापस आए। देखा कि एक और मैसेज तैयार बैठा है। “हैलो? आर यू देयर?” अरे दादा! ये तो पीछे ही पड़ गई। भैया, ये इंटरनेट तो बड़ी ख़तरनाक चीज होती है। डॉक्टर शाह ने आव देखा ना ताव, जो पहले बटन दिखा वो दबाकर बंद कर दिया और सोचने लगे, कौन होगी ये लड़की।family relationships Hindi

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याद शहर में डॉक्टर शाह उर्फ़ डॉक्टर तन्हाई के घर से करीब आठ किलोमीटर दूर एक चार मंजिला मकान में कृष्णा देसाई बैठी टाइप कर रही थीं। गलतफ़हमी में मत रहिएगा। वो इंटरनेट पर शौकिया चैट करती कोई यंग कॉलेज स्टूडेंट टाइप नहीं थीं। वो एक नानी थीं। वो भी डॉक्टर शाह की तरह लगभग साठ साल की थीं। पति बहुत पहले गुज़र गए थे, लेकिन बेवकूफ़ी भरी सामाजिक मान्यताओं को ख़ुद को विधवा बनाकर उम्रकैदी बना देने की इजाजत नहीं दी थी। उनका मानना था कि जबतक ज़िंदगी है, उसे अपनी शर्तों पर जीना चाहिए।

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दोस्तों, बड़ा अच्छा लगता है जब हमारे बुजुर्ग नए जमाने की चीजों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हैं, उनपर नाक-भौं नहीं सिकोड़ते। मेरे पिता भी सत्तर साल की उम्र में फ़ेसबुक पर हैं, ब्लॉग लिखते हैं। कृष्णाजी भी ऐसी ही थीं–जिंदगी से भरपूर, जिंदगी से प्यार करनेवाली, बेझिझक। लेकिन जिस जियॉलोजिस्ट को उन्होंने फेसबुक चैट पर हैलो बोला था वो शायद कुछ ज़्यादा ही झिझक रहा था।family relationships Hindi

शहर के दूसरे हिस्से में आदित्य, उनको पोता, मार्केट से वापस आया और कंप्यूटर पर गया तो उसकी हंसी छूट पड़ी। दादाजी मासूमियत से कंप्यूटर नहीं, सिर्फ मॉनिटर बंद करके चले गए थे और उसने स्टार्ट किया तो सामने उनकी चैट विंडो खुली थी। अंदर बिस्तर पर ऊंघ रहे अपने दादाजी के पास गया और बोला, “कृष्णा देसाई पूछ रही हैं, आर यू ऑनलाइन?”

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अरे दादा! डॉक्टर साहब झटके में उठे, ऐसे जैसे वो स्कूल के बच्चे हों और आदित्य उनकी मां, जिन्होंने उन्हें हिस्ट्री की किताब के भीतर रखकर फ़िल्म मैगजीन पढ़ते देख लिया हो। सोच रहे थे कि क्या कहें कि बड़े भाई की अदा से आदित्य ने कहा, “आइए, मैं सिखाता हूं।’ दोनों वापस कंप्यूटर के सामने बैठे तो आदित्य ने कहा, “अब एक कोलन बनाइए और हाफ़ ब्रैकेट। डॉक्टर शाह ने बनाया, एंटर प्रेस किया और बोले, “अरे! ये तो मुस्कुराता हुआ चेहरा बन गया!” आदित्य ने कहा, “इसे स्माइली कहते हैं।” उधर कृष्णा देसाई ये स्माइल अटैक देखकर ज़रा सा घबरा गईं। चिल्लाईं। “स्वाति, स्वाति बेटा! हेल्प कर दो ज़रा।”

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स्वाति आई। स्वाति उनकी नातिन है। स्थिति की गंभीरता को समझा और बोलीं, “नानी, कोलन और ओ टाइप करो।” एंटर दबाते ही कृष्णा हंस पड़ीं। एक सरप्राइज़्ड चेहरा बन गया था। लेकिन दो सैकंड में उनके सामने काला चश्मा पहने एक कूल चेहरे का आइकॉन बन गया था। स्वाति ने किचन की ओर चिल्लाकर कहा, “रमेश भईया, मेरा दूध यहीं ले आना, यहां पर। थोड़ा सीरियस मामला चल रहा है।” डॉक्टर तन्हाई की तन्हाई पर आक्रमण हो गया था। अपने भाई के पोते की मदद से उसके शागिर्द बनकर वो रोज़ इंटरनेट से मुलाक़ात करने लगे। इंटरनेट क्या, कृष्णा देसाई से। जहां तक आदित्य का सवाल था, ये उसके लिए दादाजी की एक क्यूट करामात थी, बस एक प्यारी-सी हरकत।family relationships Hindi

वो फ़ोन पर अपने मम्मी-पापा को बता देता था कि उसने आज दादाजी को कॉपी-पेस्ट करना सिखाया, ई-मेल करना सिखाया, आज ई-मेल में फोटो अटैच करना सिखाया, फ़ेसबुक पर चैट करना सिखाया। कई शहरों में फैले डॉक्टर शाह के परिवार के लिए की रोज़ की प्यारी हरकतें खाना खाते हुए डिस्कस करने और उन्हें प्यार से याद करने का बहाना बन गई थीं। जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे, उनको और कृष्णा देसाई को एक-दूसरे की आदत पड़ती जा रही थी। वो घंटों ऑनलाइन रहते। अर्थ की हिस्ट्री से लेकर कॉलेज के दिनों तक की बातें करते रहते।

 

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डॉक्टर शाह ने अबतक कृष्णा देसाई की तस्वीर नहीं देखी थी। डॉक्टर शाह रस्सी से बंधे एक ज़िद्दी बैल की तरह ख़ुद को रोक भी रहे थे और धीरे-धीरे कृष्णाजी की ओर आकर्षण में खींचे भी चले जा रहे थे। और कृष्णाजी तो कबसे अपना दिल डॉक्टर शाह को दे बैठी थीं। लेकिन इसमें दो बड़ी समस्याएं थीं। एक तो प्यार और दिल के मामलों में डॉक्टर शाह का पिछले साठ साल से कोई यक़ीन नहीं था। वो मानते थे कि भावनाएं और लगाव आदमी को कमज़ोर बना देती हैं और उन्हें लगातार ये लग रहा था कि कृष्णा देसाई कोई पच्चीस या तीस साल की जियॉलोजी की स्टूडेंट है, जो उनकी ओर आकर्षित हो रही है।

उम्र पूछी नहीं कि बैड मैनर्स ना समझ लिया जाए, लेकिन गिल्ट के मारे डॉक्टर शाह टेढ़े हुए जा रहे थे कि ज़माना क्या कहेगा? खैर, एक दिन ये समस्या हल हो गई। कृष्णा देसाई, जिनके पास अब तक कोई अच्छी तस्वीर नहीं थी लगाने के लिए, उन्होंने एक दिन अपनी एक नई तस्वीर फ़ेसबुक पर लगा दी। डॉक्टर शाह ने देखा तो होश उड़ गए और वो इतने खुश हुए कि मैसेंजर पर कृष्णाजी को कहा, “माई गॉड! मैं इतना खुश हूं कि तुम यंग लड़की नहीं, बुढ़िया हो।”family relationships Hindi

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कोई जवाब नहीं आया। और फिर कृष्णा देसाई ने लॉगआउट कर दिया। महिलाओं से बात करने का तरीक़ा अभी पूरा सीख नहीं पाए थे अपने आशिक साहब। दोस्तों, वैसे तो प्यार की कोई उम्र नहीं होती और साठ साल की उम्र में प्यार हो जाने को मैं बड़ी ही हेल्दी प्रैक्टिस मानता हूं। लेकिन साठ साल की उम्र में दिल टूटना थोड़ा गड़बड़ मामला है। एक बूढ़ी महिला को बूढ़ी महिला कहकर आज फिर डॉक्टर शाह ने साबित कर दिया था कि मर्दो को असल में औरतों से डील करना आता ही नहीं है।

माना कि वो सचमुच खुश थे कि कृष्णाजी उनकी हमउम्र निकलीं लेकिन इतनी स्वीट लेडी को बेफ़ालतू में नाराज कर बैठना… ये कोई बात तो नहीं। आख़िर कोई तरीका होता है लेडीज से बात करने का। माना कि डॉक्टर शाह पत्थरदिल सही, लेकिन वो पत्थर की थोड़े बनी हैं। लग रहा था गहरा आघात पहुंचा है कृष्णाजी को। दो दिन तक ऑनलाइन ही नहीं आईं। डॉक्टर शाह, जिनकी ज़िंदगी में पहली बार दिल का पत्थर पिघल गया था, लग रहा था वही डॉक्टर शाह एक बार फिर से डॉक्टर तन्हाई बन गए हैं।

 

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मेरे ख्याल से ये थोड़ी-सी ट्रैजिक सिचुएशन थी। कितनी हसरत भरी निगाहों से देख रहा था मैं उन लोगों की कहानी को! जैसे एक सादे-से पन्ने पर अचानक रंग बिखर गया हो। उस आदमी की जिंदगी में, जिसने काम के अलावा किसी चीज पर ध्यान ही नहीं दिया था, ना जाने कहां से एक नई दस्तक सुनाई पड़ने लगी थी। जैसे डॉक्टर शाह का कंप्यूटर वो खिड़की हो, जिससे बाहर की दुनिया में वो झांक रहे हों और किसी तन्हां शाम को उस खिड़की पर अचानक किसी ने खटखटाकर उन्हें चौंका दिया हो और खिड़की उन्होंने खोल दी हो।family relationships Hindi

एक अनजान मुसाफिर से, जो उनकी दहलीज पर एक मिनट को ठहर गया हो, दोस्ती कर बैठे हों। लेकिन उस अनजान मुसाफिर का उन्होंने दिल दुखा दिया था और वो अनजान मुसाफिर वही कंप्यूटर स्क्रीन के पार वाली खिड़की उनके चेहरे पर ज़ोर से बंद करके चला गया था। ज़िदगी में पहली बार इस तकलीफ़ को महसूस कर रहे थे वो। पहली बार प्यार किया था और पहले प्यार को खो भी दिया था। ये उम्र नहीं थी ना, ये सब लड़कपन करने के लिए?

 

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उन्होंने खुद को डांटा। जब बेढब हो को क्यों दिल-विल के चक्कर में फंसे भैया? ना कृष्णा का फ़ोन नंबर मालूम था ना पता। तीन दिन से ऑनलाइन नहीं आई थीं। इसी उधेड़बुन में ईवनिंग वॉक पर निकल पड़े। बारिश होने लगी थी। मन में कृष्णाजी का ख्याल था, सामने एक तेजी से आती हुई गाड़ी। बचे, पानी के छींटे उठे, फिर बचे, रबर की चप्पल फिसल गई और धड़ाम से गिर पड़े। डॉक्टर शाह उर्फ़ डॉक्टर तन्हाई बड़े बुरे मूड में हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटे थे।

माया मिली ना राम वाली हालत हो गई थी। ना तो कृष्णा देसाई की दिल जीत पाए थे, और पांव में भयंकर मोच आ गई थी, सो अलग। अस्पताल से कुछ दूर घर में उनका पोता आदित्य दादाजी के कमरे में कुछ सामान लेने आया था कि सोचा ज़रा ई-मेल चेक कर लूं। ऑनलाइन गया तो देखता है कि स्वाति नाम की लड़की ने फ़ेसबुक पर मैसेज भेजा है। कहती है, मिलना चाहती है, उसके दादाजी के बारे में।family relationships Hindi

आदित्य ने कहा, “तुम मुझे कैसे जानती हो?” बोली, “आसान है। उसके दादाजी का फ़ेसबुक पर एक ही फ्रेंड है। आदित्य।” दोनों एक कॉफी शॉप में मिले और दोनों में जाने क्या बात हुई, मुझे पता नहीं। यूं तो चोट डॉक्टर शाह के पैर में लगी थी, लेकिन लगता था जैसे मोच कृष्णाजी के दिल में आई थी। उस दिन उन्होंने डॉक्टर शाह को गुस्सा दिखा तो दिया था लेकिन थोड़ी देर में ये भी समझ गई थीं कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा था।

 

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लेकिन इस बीच म्युनिसिपैलिटी वालों ने खुदाई का काम शुरू कर दिया था और सारे मोहल्ले के इंटरनेट कनेक्शन ख़राब हो गए। अनजाने में दोनों का बंधन गलतफ़हमी की कैंची के तले आ गया था। दोस्तों, हम अपने बुजुर्गों से अक्सर बड़ी ज़्यादती करते हैं। हम सोचते हैं कि उनकी कोई इमोशनल नीड्स, कोई भावनात्मक ज़रूरत होती ही नहीं है कि अगर वो बुढ़ापे में किसी भी कारण से अकेले हो गए हों तो उन्हें साथी चाहिए ही नहीं।  मैं ये नहीं कह रहा हूं कि आप लपककर उनकी शादी करवा दीजिए, लेकिन हम मान लेते हैं कि पचास-साठ के बाद बोरिंग ज़िंदगी जीना लिखाकर लाए हैं वो अपनी किस्मत में।family relationships Hindi

विजिटिंग आवर्स शुरू हो गए थे। डॉक्टर शाह अस्पताल के बेड पर लेटे थे कि आदित्य कमरे में दाखिल हुआ। बोला, “दादाजी, कोई मिलने आया है।” दरवाज़ा खुला। स्वाति और उसके पीछे-पीछे चलकर आती खूबसूरत लगती उसकी नानी। डॉक्टर शाह के चेहरे पर चार सौ चालीस वोल्ट की हंसी आने ही वाली थी कि स्वाति ने आदित्य की ओर कुछ इशारा किया और आदित्य ने अपने दादाजी के कान में कहा, “गुस्सा… गुस्सा दिखाइए।”

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डॉक्टर शाह ने एक सैकंड के लिए सोचा और फिर ऑर्डर का पालन करते हुए मुंह फेरकर लेट गए। स्वाति ने अब नानी का हाथ धीरे से दबाया और बोला, “सॉरी बोलो।” कृष्णाजी आगे बढ़ीं। डॉक्टर शाह अभी भी टेढ़ा मुंह किए लेटे थे। आदित्य और स्वाति बाहर जाने लगे। आदित्य ने जाते-जाते डॉक्टर शाह से धीरे से कहा, “ओवरडू मत कर देना दादाजी। लड़की पट गई है।” डॉक्टर शाह ने कृष्णाजी की ओर देखा और उन्होंनेकहा, “डॉक्टर तन्हाई, आपका नाम बदलने का वक़्त आ गया है।”बस इतनी सी थी ये कहानी 

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