चींटी और घमंडी हाथी | Panchtantra ki Hindi Kahani – The And The | Hathi Aur Chiti Ki Story
कहानी का शीर्षक है – चींटी और घमंडी हाथी
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घने जंगल में पुरानी दिवार के पास चींटियों के 10-12 बिल थे ,उन में बहुत सी चींटियाँ रहती थीं . इन बिलों के पास ही 5-6 बड़े-बड़े वृक्ष थें, चींटियाँ उनके निचे खुश रहती थीं. वे पास के खेतों से अपना भोजन ला कर जमा करती रहती थीं, उन में एक रानी चिंटी भी थी .उसकी बात सभी चींटियाँ मानती थीं. सभी चींटियाँ आपस में घुलमिल कर रहती थीं.
एक दिन अचानक चींटियों पर मुसीबत आ गयी, उन्हें अपने जीवन की चिंता सताने लगी, हर रोज़ भरी संख्या में उनकी मौत होने लगी, यह सब एक हाथी की वजह से हो रहा था, वह एक वृक्ष के पास रहने के लिए आया हुआ था. वैसे तो जंगल में रहने को प्रयाप्त स्थान था, लेकिन फिर भी वह चींटियों के बिलों के पास वाले पेड़ के निचे रहने लगा,जानबूझ कर दिवार के पास से गुजरते हुए चींटियों को मारता हुआ आने-जाने लगा.
Ghamandi Hathi Aaur Chiti Ki Kahani
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चींटियों की दुर्दशा देख कर हाथी को बड़ी हंशी आती.वह कभी पेड़ की शाखाएं तोड़ कर ले आता तो कभी छोटी पूंछ और बड़े कान हिला कर नाचता, कभी-कभी वह जानबूझ कर अपनी सूंढ़ में पानी भर कर लता और उसे चींटियों के बिलों पर छोड़ता,चींटियां डर कर इधर-उधर भागतीं तो हांथी को मज़ा आता,
एक दिन जब हाथी दूर गया हुआ था तो चींटियां इकट्ठी हुईं, उन्होंने आपस में सलाह की कि वे इस खतरे का सामना कैसे करें. अंत में यह तय हुआ कि 200 चींटियों का एक प्रतिनिधि मंडल हाथी के पास जाये और उस के सामने अपनी बात रखे. 200 चींटियां हाथी के पास पहुंची. उनमे से एक ने हाथी से कहा ,”भाई ,आप हमारे पड़ोसी हैं.हमें मिल-जुल कर रहना चाहिए. लेकिन आप अपना पड़ोसी का कर्त्तव्य नहीं निभा रहे हैं.आप ने हमारे घर तहस-नहस कर दिए हैं.आप को इस तरह नहीं करना चाहिए.”
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सारी बात सुन कर हाथी सूंढ़ हिला कर ज़ोर से बोला,” अरी भिखारिनो,अपना पाठ अपने पास रखो, मुझे मत सिख्गाओ. यदि तुम्हें डर है तो यह जगह छोड़ दो.” चींटियों ने हाथी को बहुत समझाना चाहा, लेकिन वह कुछ सोचने-समझने के बजाये गुस्सा हो गया. अतः चींटियां निराश हो कर लौट पड़ीं. हाथी को अपनी ताकत पर बड़ा घमंड था. वह निरीह चींटियों से समझौता करना नहीं चाहता था. उसने अपना व्यवहार नहीं बदला.
चींटियों ने फिर सभा की, जिस में यह फैसला हुआ कि वे हाथी को सबक सिखा कर रहेंगी, योजना के अनुसार हजारों चींटियां पेड़ की उस शाखा पर इकटठी हो गईं जिस के निचे हाथी रहता था.
हाथी आ कर उस पेड़ के निचे खड़ा हुआ, तब उस का सिर उस शाखा से छू रहा था.’ शीघ्र ही चीटियां हाथी के सिर पर कूद पड़ीं. फिर उस के कान,सिर और मुंह पर पहुँच कर उसे काटने लगी. कुछ तो कान में घुस गयीं और काटने लगीं. हाथी दर्द से तरप कर उठने-बैठने लगा. फिर कुछ समय बाद वह बेहोश हो गया. इस के बाद चींटियां अपने-अपने घरों को लौट गईं.
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कुछ समय बाद हाथी आया और पहले की तरह वह फिर घुमने लगा. अगले दिन चींटियों ने फिर वही बात दोहराई. चींटियों ने हाथी के कान, नाक,सूंढ़ में खूब कटा. तीसरे दिन हाथी चींटियों के बिल की तरफ आ रहा था. इस बार उसके कान पहले की तरह नहीं हिल रहे थे. सूंढ़ भी शांत थीं. उसका सारा चेहरा चींटियों के काटने से सुजा हुआ था. किसी तरह वह रानी चिंटी के पास पहुँचा और कहने लगा,”मैं अपनी हार मानता हूँ. आगे से मैं किसी चिंटी को नहीं सताऊंगा, परन्तु अब मुझे भी आप की चींटियां तंग ना करें. मैं क्षमा मांगता हूँ.”
यह कह कर हाथी ने अपने घुटने टेक दिए. रानी चिंटी ने कहा,”भाई हाथी, उठो तुम हमारे पड़ोसी हो. हम तो तुम्हें पड़ोसी का सम्मान करना सिखाना चाहती थीं. जब हमारे पड़ोसी ने हम पर अचानक हमला किया तो हमने भी अपनी ताकत दिखा दी.”
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हाथी शर्मिंदा हुआ.उस ने कहा,”बहनों, तुम सब बहुत अच्छी हो और ताकतवर भी.मैं अब यहाँ से विदा लेता हूँ.” यह कह कर हाथी सिर झुका कर वहाँ से चला गया. इस तरह चींटियों का दुःख दूर हो गया.
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Moral of the Story– बड़ी से बड़ी मुसीबत भी आपस में एकता बनाकर और विचार-विमर्श करके हल किया जा सकता है.
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