True Emotional Story in Hindi of father and daughter Ki Kahani | Pita Ki Kahani Baap Beti Ka Pyar
कहानी का शीर्षक है :- अस्पताल के दो कमरे (Final)
Read First –Part-1
Read also:- रोमांटिक लव स्टोरी इन हिन्दी
…उस समय याद शहर में ये सुविधा नहीं थी कि हम कोई भी ब्लडग्रूप का ख़ून दे दें और उसके बदले में वो पापा को उनके ब्लडग्रुप का ख़ून चढ़ा दे। अस्पताल के सामने, सड़क के पार दो पीसीओ थे। मैंने और भैया ने लगातार फ़ोन करने शुरू कर दिए। दोस्तों को, रिश्तेदारों को बी पॉज़ीटिव ब्लड की तलाश में।
मां के लिए ये इम्तेहान का वक़्त था। मां ने अगले दिन कुछ घंटे किरण दीदी के घर शादी की रस्मों में बिताए और रात पापा के सिरहाने बैठकर आंसू बहाए। पापा ने पूरी उम्र जाने कितने रिश्तों के बीज बोए। प्यार और अपनेपन के इन घागों से गूंथे एक-एक रिश्ते को। अपना वतन, अपना गांव छोड़कर मुफलिसी में याद शहर आकर बसे थे वो।
अकेले अपने बूते अपना आशियाना बसाने वाले मेरे पापा का, घर कुछ साल बाद सरकारी कामकाज के लिए सिफारिशें ले के आने वाले तमाम रिश्तेदारों का गेस्ट हाउस बन गया था। चाचा, फूफा, ताऊ, भाई… संबंधों के जाने कितने नाम और चेहरे… इस घर की दुआएं सबको लगी थीं। लेकिन घर आनेवाले इन अपनों की आवभगत में लगे रहने वाले हम बच्चों को, कभी लगा ही नहीं कि बस इतना ही था हमारा साथ।
Very emotional kahani in Hindi
चहल-पहल भरे उस आंगन से दूर आज पापा अकेले थे। आज जब उन्हें सिर्फ़ तीन बोतल खून चाहिए, तो कोई व्यस्त है, कोई बीमार है, कोई काम पर बाहर गया है, तो कोई अभी जॉज्डिस से उठा है, इसलिए ख़ून नहीं दे सकता। हिसाब-किताब के पक्के हमारे पिता संबंधों के समीकरण नहीं समझा पाए। जान ही नहीं पाए कि जब वो बेसुध अस्पताल में लेटे हैं तो उनके बनाए रिश्तों के आंगन में मेरी मां अकेली खड़ी है।
तभी शाम को क़रीब पांच बजे रेणु को ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया और नर्स ने पूछा, “आपके पापा के ब्लड का ओरेंज्मेंट हुआ क्या?” उधर काफ़ी देर बाद चार आदमी हमें अस्पताल में ढूंढ़ते हुए आए। एक ट्रेड यूनियन से थे जिनकी कभी पापा ने मदद की थी। उन्हें पापा के अस्पताल में होने की ख़बर मिल गई थी। दस हज़ार मेम्बर्स में चार बी पॉज़ीटिव ब्लड वाले लोग हमारे सामने खड़े थे।
Father and Daughter Emotional Kahani in Hindi
मां जहां खड़ी थी, रिश्तों के उस सूने आंगन को, शायद भगवान अपनी छत से देख रहा था। और फिर एक ले में, वो लम्हा आ गया, जिसका मैं महीनों से इंतज़ार कर रही थी। रेणु को बेटी हुई थी। मैं मौसी बन गई थी। लेकिन माफ़ कर दे मेरे खुशी के लम्हे, तेरे-मेंरे बीच एक और लम्हा खड़ा था–मेरे पिता की ज़िंदगी या मौत का लम्हा।
ऑपरेशन थिएटर से जो बाहर निकलता, हम उसका चेहरा पढ़ने की कोशिश करते। रेणु अस्पताल के अपने कमरे में वापस पहुंच गई। हम सब बारी-बारी से उसके पास वक़्त बिताते। उससे कह दिया है कि पापा को थोड़ा बुख़ार है। बच्चे को इंफेक्शन ना हो जाए, इसलिए यहां आ नहीं रहे हैं और घर का फ़ोन ख़राब है, इसलिए बात नहीं हो पा रही है।
हम ना खुलकर हंस पा रहे हैं, ना खुलकर रो पा रहे हैं। पड़ोस के नईम चाचा आए और बोले, “मैंने आज ख़ास नमाज़ पढ़ी है तुम्हारे पापा के लिए। हौसला रखो, इंशाअल्लाह सब ठीक होगा। ”
“father and daughter emotional story in Hindi”
वो सारे रिश्तेदार, दोस्त जो मेरे पापा की ज़िंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई में साथ खड़े होने नहीं आ सके थे, क्रिकेट की कॉमेंट्री की तरह घर बैठे सारा आंखों देखा हाल ज़रूर जानना चाह रहे थे। सबके पास हमारी तकलीफ़ों का इलाज तैयार था। “कल सुबह जब भी वक़्त मिल जाए, काली मंदिर में नारियल चढ़ा आना। माता रानी सब ठीक कर देंगी। ” छुट्टियां बढ़ाने के लिए दफ़्तर फ़ोन किया तो मेरे बॉस ने कहा, “सच कड़वा होता है। सर्वाइवल रेट कम होता है।
सच को बर्दाश्त करने के लिए ख़ुद को तैयार कर लो। ” नहीं करना था मुझे ख़ुद को तैयार। ऑक्सीजन लेवल और ब्लडप्रेशर दिखाते मॉनिटर्स की आवाज़ के बीच में एक ऑपरेशन थिएटर में कैद मेरे पिता,ये नहीं नहीं था मेरा सच। मेरा सच था मेरे पापा की बेसाख़्ता हंसी, मेरा सच था अपनी भांजी का महीन आवाज़ में रोना, जो मैं अपनी गोद में लेकर सुन रही थी।
अचानक रेणु ने मेरे पर्स के बगल से मोबाइल फोन उठाया और घर का नंबर मिला दिया। बोली, “हद हो गई। नाना बने हैं पापा। पड़ोसी के यहां से फ़ोन भी नहीं कर सकते?”
The emotional family story in Hindi
मैं रोकती, इससे पहले बोली, “घर का फ़ोन ठीक हो गया है, घंटी जा रही है। ”घर के नौकर ने न जाने क्या कहा कि रेणु ने फ़ोन रखा और भरी हुई आंखों से बोली, “पापा यहां हैं? अस्पताल में? ऑपरेशन थिएटर में?” तभी दरवाज़ा खुला। हिंदी ना बोल पाने वाली नर्स थी। मुझे ढूंढ़ती फिर रही थी। बोली, “प्लीज़ कम। साइन द पेपर्स।”
मैंने कहा, “पापा?” ‘एक सैकंड लिया उसने अपना पूरा वाक्य बनाने में फिर भी नहीं बना पाई। फिर बोली, “पापा इज़ ओके। ” अस्पताल के दो कमरों में हमें दो नई ज़िंदगियां मिल गई थीं। बस इतनी सी थी यह Hindi Kahani …
यह था इस Heart touching short Hindi Kahani का आखरी हिस्सा।
कहानी का पिछले भाग पढने के लिए यहाँ क्लिक करे Part-1 _ Part-2
दोस्तों आपको हमारी(father and son short story in hindi)कहानियाँ कैसी लग रही हैं हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं और अपने दोस्तों के साथ इस कहानी को ज़रूर शेयर करें।
Most emotional story in Hindi Video
मेरे बारे में अधिक जानने के लिए हमें Follow करें ।
आपका दिन शुभ हो।