1.True Emotional Story of father and daughter | Emotional Kahani in Hindi

Emotional Story of father and daughter | short sad love story in Hindi

1.True Emotional Story of father and daughter | Emotional Kahani in Hindi
True Emotional Story of father and daughter | Emotional Kahani in Hindi

कहानी का शीर्षक है :- अस्पताल के दो कमरे (Part-1)

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यूं तो मैं आलस की गठरी हूं, लेकिन उन दिनों मुझे दो मिनट भी मां-पापा से बात करने की फुर्सत नहीं थी। हो भी क्‍यों उन दिनों आप मुझे राष्ट्रपति के पद का लालच दे देते या एमपी का टिकट दिलवा देते, या फिर याद शहर महिला मंडल की अध्यक्षा तक बना देते, फिर भी मैं टस से मस नहीं होती। आख़िर क्यों? क्योंकि मैं इन सबसे कहीं बड़ा काम करने जा रही थी।

मैं ज़िंदगी में पहली बार मौसी जो बनने जा रही थी! मेरी बहन रेणु ने अपनी शादी के दो साल बाद, ठीक शादियों के मौसम में जब यूं भी किसी के पास टाइम नहीं होता है, ठीक उसी मौसम में मां बनने का फ़ैसला कर लिया था।

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सब कुछ अच्छा-भला चल ही रहा था, कि महारानी जी लेबर में जाने का इरादा बनाने लगीं। हल्की सी कुछ कॉम्प्लिकेशन थी, सो डॉक्टर ने दो-चार दिन अस्पताल में भर्ती हो जाने को कहा। रेणु अपने कमरे में रानी बनी लेटी रहती थी और मैं बेचारी कभी उसकी मांगें पूरी करू, कभी चचेरी बहन और मामा के बेटे की शादी की तैयारी में जाके हाथ बंटाऊं। इतने दिन हो गए थे टी.वी. देखे, दोस्तों से बातें किए और मीठा पान खाए! हां, मीठे पान का बड़ा शौक़ है मुझे।

दो-तीन ही तो शौक़ हैं मेंरे, और मैंने फ़ैसला किया है कि अपनी सारी अच्छी बुरी आदतें अपने भांजे/भांजी को ज़रूर सिखा दूंगी। भांजा हुआ तो उसे ताश में बेईमानी करना और ख़ूबसूरत लड़कियों को तिरछी आंखों से देखने की कला सिंखाऊंगी। वैसे भांजी हो तो अच्छा है। लड़कियों के लिए शॉपिंग करने में कितना मज़ा आता है।

लड़कों के लिए शॉपिंग बोरिंग होती है। भांजी हुई तो उसे ताश में बेईमानी करना तो सिंखाऊंगी ही, बेईमानी पकड़ना भी सिखाऊंगी। मेकअप के सीक्रेट गुण सिखाऊंगी और दिलफेंक लड़कों को सीधा करने के दस सरल तरीक़े समझाऊंगी।

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टाइम मैनेजमेंट की क्वीन बन गई थी मैं। नहा के बाल सुखाते हुए बच्चों के नाम सोचती थी, रिक्शे में बैठे-बैठे काम के रिमाइंडर लिखती थी। अस्पताल में नर्सों और डॉक्टरों के आगे-पीछे दौड़ने वाले वार्डबॉय पर रौब जमाने के बीच में, अपना रोज़ का क्रॉसवर्ड भी निपटा देती थी और ज़रा बैठे-बैठे झपकी लग जाए तो आने वाली शादियों में मैं और मेरे भांजा/भांजी के साथ दिन कितनी तफरीह में बीतने वाले थे, इस तरह के शेखचिल्ली के सपने भी देख लेती थी।

मोबाइल फ़ोन नया-नया आया था। भैया के ऑफ़िस वालों ने उन्हें दिया था। लेकिन इस सख़्त हिदायत के साथ कि इसका सिर्फ़ ऑफ़िस के ज़रूरी काम के लिए इस्तेमाल करें। सुना था इस हथौड़े जैसे आधा किलो के फ़ोन से कॉल रिसीव करने में भी पैसे लगते थे। भैया ने थोड़ी-सी चीटिंग करके उस दिन मोबाइल फ़ोन मेरे पास रख दिया था। बोले, “जैसे ही रेणु लेबर में जाए, तुम मुझे फ़ौरन कॉल कर देना। ”

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मैं भी नक़्शेबाज़ी में मोबाइल फ़ोन थामे अस्पताल के कॉरिडोर में घूम रही थी। दो-तीन दिन से लगभग सारे दिन यहीं रहती थी, तो सब पहचाना-सा हो गया था। अस्पताल की तेज़ फ़िनायल वाली महक, नीली यूनीफॉर्म में दूर दक्षिण भारत से आईं, थोड़ी-थोड़ी हिंदी बोलने वाली नर्सों से दोस्ती हो गई थी और वही हमेशा थोड़ी जल्दी में रहने वाले डॉक्टर जो मेरे गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग का जवाब देते-देते शायद थक गए थे।

अस्पताल के बरामदे में तकलीफ़ और फ़िक्र पहने चेहरे घूमते रहते थे, ज़िंदगी की उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच झूलते हुए। वो गार्ड जिसे मैंने एक दिन चुपचाप पान लेने भेज तो दिया था, लेकिन आने पर उसे डांट भी पिलाई थी कि तंबाकू क्‍यों खाते हो, कैंसर हो जाएगा।

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और रेणु का बच्चा था कि इस दुनिया में पधारने का नाम ही नहीं ले रहा था। अभी से लग रहा था कि एक ज़िद्दी आसामी से हमारा पाला पड़ने वाला था। मैं पागलों की तरह इंतज़ार कर रही थी। सोचती रहती थी कि उस ज़िद्दी बच्चे की छोटी-छोटी उंगलियां छूकर अपनी उंगलियों से लिपट जाने दूंगी, उसके महीन मुलायम होंठों से पहली किलकारियां सुनूं और उसके पांव के तले शैतानी में घीरे से उंगलियां फिराऊं और देखूं कि उसे गुदगुदी लगी या नहीं।

कितना अद्भुत होता है जीवन का खेल! एक नन्ही-सी जान कैसे हमारी ज़िंदगी में आकर हमारी ज़िंदगी बदल देती है। कॉरिडोर में टहलते-टहलते मैं मन ही मन ये सब सोचकर मुस्करा रही थी कि कहीं फ़ोन की घंटी बजने लगी। कुछ सैकंड लगे पहचानने में कि ये भैया का ही मोबाइल फ़ोन था जो मेरे हाथों में बज रहा था।

आवाज़ कॉरिडोर में गूंज रही थी। घर का नंबर था। मैं झुंझलाई। भैया भी न… मुझसे बोले कि फ़ोन इस्तेमाल मत करो और ख़ुद खिलवाड़ कर रहे हैं! मैंने बटन दबाया और अपने जीवन का पहला मोबाइल कॉल रिसीव करते हुए कहा, “हैलो! ”…to be continued…Part-2

( कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त ) Click Here to Part-2> प्यार की कहानी हिंदी में

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आपका दिन शुभ हो।

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