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कहानी का शीर्षक है – खण्डहर महल

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एक खंडहर महल था। बाहर से देखने में बिल्कुल उजार पर भीतर इतना आलीशान था के राजा महाराजाओं के महल भी शर्मा जाए। उसका बहुत कम लोगों को पता था। लोग उस खंडहर महल के पास जाने से भी कतराते थे। दिन-रात मौत से जूझने वाले जंगली पहाड़ी लोग भी खंडहर के महल के पास जाने में डरते थे। वह महल आसाम के घने जंगलों के बीच बना हुआ था। इन्हीं जंगलों से लगी हुई सुंदरपुर नाम की एक बस्ती थी। इस बस्ती में लाल चंद्र नाम का एक धनवान आदमी रहता था। लालचंद्र को दो बच्चे थे 1 पुत्र था, जिसका नाम राजू था, एक पुत्री थी जिसे वह उसे प्यार से मानु कहकर बुलाया करता था।

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लालचंद्र चाहता था कि उसके दोनों बच्चे वीर और साहसी बने। इसलिए वह उन्हें दुनिया के वीर और साहसी पुरुषों की कहानियां सुनाया करता था। उसने उनके लिए एक छोटा सा नकली टेलीविजन भी खरीद लिया था। राजू और मानो उस टेलीविजन से बहुत प्यार करते थे। लाल चंद्र ने राजू और मानु के लिए दो सुंदर घोड़े भी खरीद दिए थे। उन्हें घुड़सवारी सिखाने के लिए एक नौकर भी रख दिया था। वह उन्हें जंगल से लगे मैदान घुड़सवारी सिखाया करता था।

एक दिन राजू और मानु अकेले घुड़सवारी करने निकल गए। राह में राजू को एक दोस्त मिल गया। वह उसे बातें करने लगा। उधर मानु अकेले ही आगे बढ़ गई।बातो में राजू ऐसा खो गया कि उसे किसी बात का ध्यान ही नहीं रहा। अंत में अब बहुत देर हो गई, तो उसके मित्र ने उस से विदा ली। अब राजू को मानु का ध्यान आया। मानु को पास ना पाकर राजू ने समझा वह घर लौट गई हो। वह भी घर लौट पड़ा।

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घर लौटने पर उसे पता चला कि मानु अभी तक घर नहीं लौटी थी। इतने में लाल चंद्र भी घर आ गया। जब उसे मालूम पड़ा कि मानु अभी तक घर नहीं आई है, तो वह चिंतित हो उठा। फिर भी उसने प्रतीक्षा करना ठीक समझा। जब पूरी रात भी गुजर गई और मानु नहीं आई तो लालचंद्र परेशान हो गया। उसने फौरन पुलिस को खबर की। उसने पूरे शहर में डुगडुगी भी पिटवा दी कि जो भी मानो को जीवित ढूंढ लाएगा उसे एक लाख का इनाम दिया जाएगा।

तीन दिन बीत गए कोई व्यक्ति मानु को ढूंढ कर न ला  सका। अब राजू ने मन ही मन एक निश्चय कर लिया। दूसरे दिन सुबह 4:00 बजे व एक चाकू लेकर घोड़े पर जंगल की तरफ चल दिया। जंगल में पहुंचते-पहुंचते सुबह हो गई। थोड़ी दूर पर राजू को एक नदी दिखाई दी उसका पानी सूर्य की किरणों के प्रकाश में सुनहला सुनहला चमक रहा था। उसने अपना घोड़ा उधर ही घुमा दिया। अचानक खरकर की आवाज हुई तो उसने सिर घुमाकर देखा। चार कबीले वाले उसके घोड़े के पास खड़े थे।

कबीले वालों को देखकर वह थोडा सहम गया। उन चारों का रंग बिल्कुल स्याह था। सिर पर तरह-तरह के पंख लगे हुए थे कमर के नीचे से वह किसी जानवर की हाल का वस्त्र पहने थे। लालचंद्र ने राजू  को जंगली कबीले वालों की कुछ बोलिए भी सिखा दी थी। राजू ने एक बोली में उन कबिले वालों से पूछा, क्या तुमने किसी लड़की को देखा है? चारों काबिले वाले राजू को अपनी बोली में बात करते देख आश्चर्य से भर उठे। उन्होंने कहा, हमने किसी लड़की को नहीं देखा।

फिर उन्होंने राजू से कहा, कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारी बहन उस खंडहर महल में चली गई हो। राजू ने चौंक कर कहा खडहर महल कहाँ है ये खडहर महल? कबीले वालों ने जंगल की ओर बहुत दूर बनी एक टूटी फूटी इमारत की तरफ संकेत करते हुए कहा, वह इमारत खंडहर महल के नाम से जानी जाती है। पर तुम भूल कर भी उधर मत जाना। वहां जाकर कोई भी वापस नहीं लौटता।

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इतना कह कर कबीले वाले वहां से चले गए। राजू वही नदी के किनारे बैठ गया और गहरी सोच में डूब गया। अचानक उसकी दृष्टी नदी के पानी पर परी तो वह चौक उठा। एक रंगीन कपड़ा पानी में बह रहा था। उसने सोचा कहीं वह कपड़ा मेरी मानु का पट्टा तो नहीं? शायद वह यहां गिर गई हो। फिर उसने घोड़े पर चढ़कर पेड़ से  एक लंबी मजबूत टहनी तोड़ी और उससे उस कपड़े को खींचने लगा।

शीघ्र ही राजू को पता चल गया कि वह कपड़ा मानु का दुपट्टा नहीं है। राजू को राहत मिली पर अगले ही क्षण उसके मन में एक प्रश्न उठ खड़ा हुआ आखिर कपड़ा यहां पर कैसे आया? इसी सोच विचार में पड़ा हुआ था कि उसे खंडहर महल की याद आई। घोड़े पर सवार होकर वह खंडहर महल की तरफ चल दिया।

शाम होने लगी थी। जंगल में पहले से ही अंधेरा होने लगा था। दो-तीन घंटे चलने के बाद अब वह खंडहर महल के पास पहुंच गया। एकाएक उसे बहुत से कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई दी। शायद उसके घोड़े की टापू की आवाज उन्होंने सुन ली थी,वह डरा नहीं आगे बढ़ता गया, पर ज्यों ज्यों उसका घोड़ा खंडहर महल के  नजदीक पहुंचता जाता, कुत्तों के भौंकने की आवाज भी बढ़ती जाती है परंतु कोई भी कुत्ता उसे दिखाई नहीं पड़ रहा था, उसे बड़ा ताज्जुब हुआ।

जब राजू खंडहर महल के काफी पास पहुंच गया तो उसने देखा, 50-60 शिकारी कुत्ते, मोटी मोटी जंजीरों से बंधे हैं और कुछ दूरी पर एक बहुत मोटा साधारण सा आदमी खड़ा है। राजू को  देखते ही वह चिल्लाकर बोला आइए राजू साहब महल के भीतर चलिए, राजू चौक उठा। इस व्यक्ति को उसका नाम कैसे मालूम पड़ा? पर अगले क्षण वह सतर्क हो गया और घोड़े से उतरकर उस व्यक्ति के पास पहुंच गया। थोड़ी देर बाद वे दोनों महल के भीतर थे।

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महल की शान-शौकत देखकर राजू दंग रह गया। लगता था जैसे वह किसी बहुत बड़े देश के राजा का महल हो। यहां वहां अनेक यंत्र भी लगे थे। एक टेलीविजन भी रखा हुआ था। राजू इसी सोच-विचार में डूबा हुआ था कि उस मोटे से व्यक्ति ने कहा, राजू हम लोग व्यापारी हैं। दूसरे देशों में धन दौलत और कीमती चीजों का व्यापार करते हैं। इसलिए हम साहसी लोगों की बड़ी कदर करते हैं। तुम भी हमारे साथ रहो तो अच्छा रहेगा। अगर हमारे साथ रहकर हमारा काम नहीं करोगे तो कहते-कहते वह आदमी रुक गया।

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यह बात सुनकर राजू सन्न रह गया। अब रहस्य कुछ कुछ खुलने लगा था। राजू को उन तस्कर व्यापारियों की कहानियां याद आई जो चोरी-छिपे देश का करोड़ों अरबों रुपए का माल बाहर ले जाते हैं और बाहर से देश में लाते हैं। इसी बीच दोनों एक बहुत बड़े हॉल में पहुंच गए। वहां भड़कीली पोशाकें पहने लड़कियां खाना परोस रही थीं।

एक बहुत बड़ा डाइनिंग टेबल था और उसके चारों ओर रखी कुर्सियों पर लोग बैठे हुए थे। कुछ कुर्सियां खाली थी। उस व्यक्ति ने राजू को एक कुर्सी पर बैठने का संकेत किया और स्वयं बाहर चला गया।

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खाना शुरू ही हुआ था कि राजू को कुछ आहट सी सुनाई दी। कुछ लोग बाहर से आ रहे थे। उनके साथ दो लड़कियां थी। उनमें से एक लड़की को देखते ही राजू चौक उठा। वह मानु थी। इतने में मानु के साथ आए व्यक्ति ने एक बड़ा सा बैग खोला तो ढेर सारे हीरे जवाहरात चमक उठे। जब वे सब माल देखने में मशगूल थे तो राजू की निगाह मानु से मिली और उसने आंखों ही आंखों में उसे कुछ बताने की कोशिश की। राजू को देखते ही मानु का चेहरा प्रसंता से खिल उठा। पर राजू की आंखों का संकेत पाकर वह फौरन उदास होने का अभिनय करने लगी।

राजू ने तत्काल एक योजना बना ली और फिर नकली उबासियां लेने लगा। उसकी नींद भरी आंखें देखकर एक लाल पोशाक वाले आदमी ने कहा, मेहमान को कमरे में ले जाकर इनकी खातिर करो। दो व्यक्ति उसे एक कमरे में ले गए। उस कमरे के बीच में एक बहुत ही सुंदर पलंग पड़ा हुआ था। कमरे में कोई खिड़की नहीं थी। केवल दो रोशनदान थे। उन दोनों लोगों ने राजू को उस पलंग पर लिटा दिया। उसने भी आंखें मूंद ली। वे दोनों व्यक्ति बाहर चले गए। बाहर से दरवाजा बंद होने की आवाज आते ही राजू पलंग पर से कुद पड़ा। उसने रोशनदानों तक पहुंचने के लिए चाकू से दीवार पर छोटे-छोटे गड्ढे बना लिए।

फिर उन्ही छेदों पर पैर रखकर वह रौशनदान तक पहुंच गया। अचानक एक जोर की आवाज़ हुई और राजू चौंक उठा।  उसने देखा कमरे के बीच की जमीन जहां पर पलंग पड़ा हुआ था, तिरछी होती जा रही है और पलंग भी उलट रहा है। उसने रोशनदान के जंगले को कस कर पकड़ लिया। राजू ने देखा जमीन के अंदर एक खोह हो गई है और उस खोह से कुछ ऐसी तेज आवाज आ रही थी। मानो वहां कोई तेज झरना गिर रहा हो। थोड़ी देर में खोह अपने आप बंद हो गई

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फर्श सीधा हो गया। पलंग भी अपनी जगह सीधा हो गया। यह सब एक मिनट में ही हो गया। अब राजू के समझ में कबीले वालों की बात आई कि यहां से कोई क्यों नहीं वापस लौट पाता। नदी में फंसे कपड़े का भी रहस्य समझ में आ गया कि वहां से बाहर कोई…।

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अब उसका साहस और भी बढ़ गया था। उसने रोशनदान से झांक कर देखा। दूसरी तरफ उसे एक कमरा नजर आया। उसने देखा कमरे में तीन चार लड़कियों से गिरी मानु बैठी रो रही थी। वह परेशान हो उठा। फिर वह रोशनदान से नीचे उतर आया और दूसरे रोशनदान पर चढ़ने की तैयारी करने लगा। काफी मुश्किल से वह दुसरे रोशनदान तक पहुँच पाया।

 

दूसरे रोशनदान से उसने झांका तो दूर उसे आग जलती हुई दिखाई दी। वह समझ गया कि इस रास्ते से बाहर निकल सकता है। रोशनदान की सलाखें लकड़ी की थी। चाकू से उसने सलाखों को काट लिया और बाहर निकल आया। अब तो सारा मामला आसान था। राजू जंगल में लुकता-छुपता सुंदरपुर पहुंच गया। वहां उसने अपने पिताजी को सारी बातें बतायी। लालचंद्र ने उसी समय अपने शहर के पुलिस दरोगा से बात की। कुछ घंटों के भीतर सब खंडहर महल के पास पहुंच गए।

पुलिस को देखते ही महल में रहने वाले लोगों ने शिकारी कुत्तों को छोड़ दिया पर लालचंद्र ने तुरंत गुड़ की भेलियाँ कुत्तों के सामने फिकवा दिए, कुत्ते बड़े चाव से उसे खाने लगे। ये देखकर बदमाशों ने हथियार डाल दिए। राजू ने अंदर जाकर मानु और उसके साथ कैद 8 लड़कियों को छुड़ाया। खंडहर महल का राज खुल गया था। इसका सारा श्रेय राजू के साहस को जाता है।

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