Short Sad story on true friendship with moral in Hindi

Short story on true friendship with moral in Hindi । Heart touching Sad friendship story in Hindi

Short Sad story on true friendship with moral in Hindi
Short Sad story on true friendship with moral in Hindi

कहानी का शीर्षक है- Ran Out

क्रिकेट के मैदान पर उस दिन ज़बरदस्त टेंशन थी। स्कोर बोर्ड पर 154 रनों का स्कोर था और जीतने के लिए 185 बनाने थे। 31 रन। तीन ओवर। सस्पेंस के मारे दर्शकों की जान सूखी जा रही थी। जी नहीं, ये कोई इंडिया-पाकिस्तान का मैच नहीं चल रहा था।

ये उससे भी बड़ा, बहुत बड़ा महासंग्राम था। ये था मेरे मोहल्ले की टीम फ़ोर्स फ़ोर्टी, जिसमें सबका पैंतीस से चालीस के बीच में होना अनिवार्य था। और म्यूनिसिपल बोर्ड की क्रिकेट टीम के बीच सिटी कप का फ़ाइनल। हमारी टीम फ़ील्डिंग कर रही थी और हमारी जीत पक्की लग रही थी।

क्रिकेट का बचपन से शौक है मुझे। याद शहर के टाइम से। उन दिनों नेशनल क्रिकेटर या फ़िल्मों में प्लेबैक सिंगर बनना चाहता था। लेकिन किस्मत ने ऐसी कवर-ड्राइव मारी कि माशाअल्लाह, वकील बन गया।

ऐसा नहीं कि ख़ुश नहीं हूं। शहर के उभरते वकीलों में गिना जाता हूं। क्रिकेट के लिए अभी भी पागल हूं। गाना फ़िल्मों में तो नहीं गा पाया, लेकिन बर्थडेस पर, फ़रमाइशी प्रोग्राम किसी ना किसी बहाने से कर ही देता हूं।

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उधर स्टेडियम में मामला कांटे का हो गया था। मैच आख़री ओवर तक पहुंच गया था और पांच रन बचे थे। दूर कहीं बैठा मेरे पड़ोसी का बेटा, जो रेडियो में आर-जे बनना चाहता है, बड़ी देर से एक छोटे-से पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर कॉमेंट्री कर रहा था।

धत्त तेरे की! फुल टॉस बॉल! बैट्समैन आगे बढ़ा और बॉल गई वो दूर कहीं… मुझसे तो देखा ही नहीं गया। लाउडस्पीकर पर लड़का चिल्लाया–“और ये सिक्सर!” म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन की टीम ने सिटी कप जीत लिया था। सारा मूड बेकार हो गया।

सोचा था, आज शाम को कुछ देर से जाऊंगा कोर्ट। सेलीब्रेट करने के बाद। यहां तो हार ही गए थे। खैर, तीन घंटे बाद नहा-धोकर कोर्ट चल दिया। कोर्ट से पहले की ट्रैफ़िक लाइट पर मुझे याद शहर की लाइसेंस प्लेट वाली एक गाड़ी देखकर मज़ा आ गया! उसमें एक आदमी और एक लड़की बैठे थे, जिनका मुझसे बहुत पुराना रिश्ता था।

Short Sad story on true friendship with moral in Hindi
Short Sad story on true friendship with moral in Hindi

ट्रैफ़िक लाइट हरी हो गई और मेरे बग़ल में याद शहर के लाइसेंस प्लेट वाली गाड़ी चली गई। मैं वहीं अपनी सीट पर मूरत बना बैठा रहा। पीछे वाली गाड़ियों के हॉर्न बजने लगे। मैं किसी तरह कोर्ट पहुंचा, अपने चेंबर में बैठा और तीन गिलास ठंडा पानी पिया।

जैसे वक़्त के ओपनिंग बैट्समैन ने फुलटॉस बॉल को बेरहमी से यादों के स्टेडियम की ओर उछाल दिया हो। कहीं तो गिरना ही था! मैंने याद शहर के लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम की क्रिकेट पिच पर जाकर लैंड किया। बड़े झंडे गाड़े थे, मैंने क्रिकेट में उन दिनों। टीम का कैप्टन होता था मैं।love story of best friends

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ओपनिंग बैट्समैन। और फ़र्स्ट स्लिप में फ़ील्डिंग करता था। बाक़ायदा सफ़ेद हैट पहनता था। लेकिन ग्राउंड में खेलने का मौक़ा तो हमें क़िस्मत से ही मिलता था, ज़्यादातर हमारा वर्ल्डकप हमारी गली में ही हो जाता था। कई शीशे तोड़े थे हमने। ज़्यादातर टेनिस बॉल से खेलते थे, पैसे जोड़कर लाते थे, इसलिए नाली में चली जाती थी, तो चुपचाप निकालकर धोकर दोबारा खेलने लग जाते थे।

बॉल पड़ोस के सुपर स्ट्रिक्ट यादव अंकल के घर में चली जाती थी, तो हम लोग बारी लगाते थे उसको जाकर मांगकर लाने के लिए। आख़िर हर बार एक ही आदमी को, ‘बेवकूफ़ बच्चे’ कहलाया जाना पसंद नहीं था ना। जिसके बैट और विकेट्स होते थे, उसका कैप्टन बनना तो भई तय था। मैंने भी पॉकेट मनी जोड़कर पैड और बैटिंग ग्लव्स ख़रीदे थे। थोड़ी इज़्जत बढ़ गई थी।

मेरी टीम चार मीनार क्लब की मेन राईवल उन दिनों होती थी–बग़ल के मोहल्ले की टीम याद शहर इलेवन, जिसका कैप्टन था– –मेरा बेस्टफ्रेंड प्रतीक पंत। जितना तगड़ा हमारा कॉम्पिटिशन होता था, उतना ही जिगरी था वो मेरा। एकदम भाई जैसा। प्रतीक फ़ास्ट गेंदबाज था।

हम कॉलेज में साथ रहते, कैंटीन में संग-संग खाते, वीडियो गेम्स खेलते थे, चोरी से मूवीज़ संग देखते थे। लड़कियां भी एकसाथ ही देखकर एडमायर करते थे। लेकिन मेरा सारा एडमिरेशन एक ही लड़की पर फ़ोकस्ड था। गली में एक नई-नई पड़ोसन आई थी। लंबे बालों, खूबसूरत आंखों वाली पड़ोसन। पद्मा जोशी।

सबसे एक्साइटिंग था कि क्रिकेट की शौकीन थी। अपनी बालकनी से हर गेम देखती थी। ग्राउंड्स में सीमेंट के स्टेप्स पर बैठकर मैच देखती थी। पागल हुआ जा रहा था मैं उसके बारे में सोच-सोचकर। दिन-रात, बस वही। मैंने सोच लिया था, 31 दिसंबर के क्रिकेट मैच के बाद उसे प्रपोज़ कर दूंगा।

उस दिन ज़रूर हमने कॉर्नफ्लेक्स ज़्यादा खाए होंगे। याद शहर इलेवन से इतनी आसानी से मैच जीत गए। सब एक-दूसरे से गले मिल रहे थे। मैं, चार मीनार का कैप्टन, अपने बेस्ट फ्रेंड प्रतीक पंत के पास गया। बोला, “ओए! हार गया तू तो!”love story of best friends

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उसने गले से लगा लिया। बोला, “मुन्ना ज़्यादा ख़ुश मत हो। असली मैच तो अभी बाक़ी है।” मैंने कहा, “दूध पीकर आना बेटा। चौके-छक्के तो हम जेब में रखकर चलते हैं। एक यहां गिरा, एक वहां गिरा!”

असली मैच से प्रतीक का इशारा 31 दिसंबर को होने वाले याद शहर के सबसे टूर्नामेंट महात्मा गांधी मेमोरियल कप की ओर था। हमारी टीम पिछले साल ये कप उनकी टीम से हार गई थी और इस बार सब जोश में थे कि जो भी हो, इस बार हमें जीतना है।

खैर, उस शाम मैं प्रतीक को बन-मक्खन और समोसे की ट्रीट देने लक्ष्मी रेस्टोरेंट ले गया। मैं यहां उसकी ख़ातिर करने नहीं आया था। मैं तो उसे पद्मा के बारे में बताने आया था। लंबे बाल, खूबसूरत आंखों वाली पद्मा। कैसे क्लीन बोल्ड हो गया था मैं, पहली ही डिलीवरी में।

शाम भर मैं ही बोलता रहा। फिर दो हफ़्ते बीत गए। टूर्नामेंट में मेरी और प्रतीक की टीम बहुत अच्छा कर रही थी। हर दूसरे-तीसरे दिन, वो दर्शकों के बीच में दिख जाती थी। लंबे बाल तो जैसे कोई नदी हो, और वो कोई देवी।

जब चाहे वो उसकी दिशा मोड़ देती थी। कभी खुले बाल, जैसे कोई झरना चट्टान से छलांग लगा रहा हो। कभी दो चोटियां, जैसे पहाड़ की ढलान पर पानी की दो धाराएं बह रही हों। और कभी जूड़ा बना लेती थी, छोटी-सी खूबसूरत झील।

प्यार हो गया था मुझे। और पद्मा को पता भी नहीं था। इधर हम फ़ाइनल्स में पहुंच गए थे और मैच प्रतीक की टीम याद शहर इलेवन से था। उस दिन मेरा सबसे अच्छा दोस्त मेरा सबसे बड़ा दुश्मन बनने जा रहा था। क्या बैटिंग की थी मैंने उस दिन! प्रेस गैलरी के पास पद्मा बैठी थी।love story of best friends

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मैं हर स्ट्रोक के बाद उसे ही देख रहा था। लास्ट ओवर में पहुंच गया था और हमें सात रन बनाने थे। ओवर के बाद वाइस कैप्टन धीरज कुमार पिच पर चलकर आया और बोला, “भाई तीन रन बचे हैं। तू यहां ध्यान दे, बॉल पर। तेरी तो नज़र ही कहीं और है।

मैंने कहा, “क्या बकवास कर रहा है यार?” धीरज बोला, “वैसे भी ये ग़लत है बॉस। तेरी भाभी लगती है। तेरे बेस्टफ्रेंड प्रतीक से सगाई हो गई है उसकी।” सच कहा था मैंने, ख़ुद से मैच की सुबह। उस दिन मेरा सबसे अच्छा दोस्त, मेरा सबसे बड़ा दुश्मन बनने जा रहा था।

मैच हार गए हम। मेरा दिमाग़ ही काम नहीं कर रहा था। अगली ही बॉल में रनआउट हो गया था मैं। सिर्फ़ दो रन बचे थे उस वक़्त जीतने को। मेरी टीम का सबसे बड़ा सपना, जो उन्होंने सालभर से हर रोज़ देखा था, मैंने उस सपने को एक सैकंड में तोड़ दिया था।

कुछ ने तो ये भी ताना कसा कि मेरा बेस्टफ्रेंड ही जब राईवल टीम का कैप्टन है तो फिर आपस में ही सेटिंग कर ली होगी। उस दिन के बाद मैंने याद शहर में क्रिकेट नहीं खेला। घर पर बल्ला तक नहीं उठाया। नफ़रत हो गई थी क्रिकेट से।

नफ़रत हो गई थी दोस्ती से। मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने कितनी सफ़ाई से मुझे धोखा दे दिया था! मैं हर तीसरे दिन उससे पद्मा की बात करता था, फिर भी? जैसे मेरे दिल को बीचोबीच से उसने दर्जी की किसी भारी-भरकम कैंची से काट दिया था।love story of best friends

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एक दिन पापा बोले, “बेटा आजकल क्रिकेट प्रैक्टिस पर नहीं जा रहे हो?” मैंने कहा, “नहीं पापा। जी नहीं कर रहा। वैसे भी मुझे पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। एग्ज़ाम आने वाले हैं।” मम्मी ने बाद में पूछा, “बेटा प्रतीक का कल बर्थडे है, तू गया नहीं?”

मैंने कहा, “मम्मी प्लीज़ यार! प्रतीक और क्रिकेट, इन दोनों के बारे में मैं कुछ नहीं सुनना चाहता हूं।” मैं घर से बाहर निकल गया। घंटों पार्क में जाकर बैठा रहा। रात को देर से घर आया। मम्मी से जाकर सॉरी बोला। वो आख़री दिन था जब मैंने अपने मुंह से प्रतीक पंत का नाम लिया था।

Short Sad story on true friendship with moral in Hindi
Short Sad story on true friendship with moral in Hindi

अपनी दोस्ती मैं उस क्रिकेट ग्राउंड में दफ़न करके आ गया था। अपनी दोस्ती के दिल में तीन विकेट इतनी बेरहमी से, इतने गहरे ठोक दिए थे कि अंदर तक सूराख़ हो गए थे। प्रतीक पंत और पद्मा जोशी की शादी का कार्ड जल्दी ही पापा के पास भी आ गया था। मैंने उस कार्ड को कूड़े में फेंक दिया।

मैंने उस नाम और उस नाम से जुड़ी सारी यादों को अपने मन के कूड़ेदान में डाल दिया था। लेकिन इतने साल बाद आज वो नाम आज फिर मेरे चेहरे के सामने आकर खड़ा हो गया था। एक ट्रैफ़िक इंटरसेक्शन पर। मेरे बग़ल में याद शहर के लाइसेंस की नंबर प्लेट वाली कार में प्रतीक पंत और पद्मा जोशी बैठे थे।

मैंने कोर्ट के अंदर गाड़ी पार्क की, अपने चेंबर की ओर चला कि तभी पीछे से आवाज़ आई, “राजीव!” मैं पलटा। मुझसे थोड़ी दूर, अकेला खड़ा मेरा नाम पुकारता प्रतीक था। ऊपरवाले ने ये जो मन नाम का यंत्र बनाया है, वो बड़ा विचित्र यंत्र है।love story of best friends

जब रिश्ते टूटते हैं, तो जैसे एक पॉज़ बटन दबा देता है, भावनाओं की उस दहकती नदी पर। ऐसा नहीं है कि जिनसे हम प्यार करते हैं, वो जब बिछड़ते हैं तो हम उनसे प्यार करना छोड़ देते हैं। ऐसा नहीं है कि जिनसे नफ़रत करते हैं उनसे मुंह मोड़ने के बाद भी कोई शोला दिल में धधकता नहीं है।love story of best friends

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लेकिन वो सिर्फ़ पॉज़ बटन दबाकर शून्य में रोका गया एक टीवी स्क्रीन भर होता है। जैसे ही वो सामने आते हैं, फिर वही गुस्सा, नफ़रत, प्यार… जहां छोड़ा था, उसी जगह से ये मन नाम का यंत्र प्ले का बटन दबा देता है, जैसे कुछ बदला ही नहीं।love story of best friends

लेकिन जब उस दिन कोर्ट में प्रतीक पंत, मेरे कॉलेज के दिनों का सबसे अच्छा दोस्त और फिर सबसे बड़ा दुश्मन, मेरे सामने खड़ा था, तो मन का यंत्र ये समझ ही नहीं पाया था कि ये कहानी किस फ्रेम से दोबारा चालू की जाए? वो बोला, “राजीव! कैसा है भाई? इट्स सो गुड टू सी यू मैन।
 
इतने साल मैंने तुझसे कॉन्टेक्ट करने की बहुत कोशिश की। मैं जानता हूं, तेरे मेरे बीच एक अधूरी बातचीत है, जो तू किए बिना याद शहर छोड़कर चला गया था।” ना जाने क्या सोचकर मैंने कहा, “चेंबर में बैठते हैं। अपनी पत्नी को वहीं बुला लेना, रूम नंबर 235।
 
मैं अपने ऑफ़िस की ओर चला। प्रतीक मेरे पीछे-पीछे आया। मैंने पता नहीं क्या सोचकर अपने अटेंडेंट से बन-मक्खन और समोसे लाने को कह दिया। मैंने प्रतीक की आंखों में देखे बिना कहा, “उतने अच्छे तो नहीं होंगे जितने याद शहर में होते थे। वकीलों के यहां पकवान कहां मिलते हैं?”

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हमने कुछ देर एक-दूसरे से तकल्लुफ़ भरी इधर-उधर की बातें की। फिर मैंने कहा, “प्रतीक, तू जानता है उस साल तुम लोग महात्मा गांधी कप क्यों जीते थे? क्योंकि मैं लास्ट बॉल से दो बॉल पहले रनआउट हो गया था। और तू जानता है मैं रनआउट क्यों हुआ था?”

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प्रतीक ने कहा, “राजीव यार…” मैंने कहा, “यार मुझे बात पूरी कर लेने दे। मैं उस दिन रनआउट इसलिए हुआ था क्योंकि, मेरा दिमाग़ सटक गया था। क्योंकि मुझे उसी वक़्त पता लगा था कि वो लड़की जिसे मैं पागलों की तरह प्यार करता था, जिसके बारे में तुझे हर तीसरे दिन बताता था, तू उसी लड़की से शादी

करने जा रहा था और मुझसे एक बार इसका ज़िक्र तक नहीं किया था, इसकी भनक तक नहीं लगने दी थी। कहां हैं? बुलाइए ना अपनी मिसिज़ को।” उसने कहा, “पद्मा चली गई है। हम दोनों अपनी मर्जी से तलाक़ ले रहे हैं। आज आख़री हियरिंग थी।”love story of best friends

ये आदमी जो मेरे सामने बैठा था, जब आख़री बार मुझसे मिला था तो मेरा प्यार छिन गया था, और अब जो मुझसे मिला था तो इसका प्यार छिन रहा था। पदमा जोशी मेरी तो कभी थी ही नहीं। उसे तो पता ही नहीं होगा कि मैं अपनी नोटबुक पर उसका नाम जाने कितनी अलग-अलग डिजाइंस में लिख चुका था।

बात लड़की की या प्यार की तो थी ही नहीं। बात सिर्फ़ दोस्ती की थी। भरोसा टूटने की थी। प्रतीक बोला, “राजीव, मैं इतने सालों से सोच रहा था कि तू कहीं तो मिले। मैं कम-से-कम तुझे कहानी का अपना पहलू तो बता पाऊं। उन दिनों मेरे पापा को ल्यूकीमिया डायग्नॉस हुआ था।love story of best friends

Short story about best friends falling in love

कैंसर के सबसे बड़े स्पेशलिस्ट ने भी छह महीने से ज़्यादा नहीं दिए थे। उनकी बस एक ही ख़्वाहिश थी कि मेरी शादी हो जाए। उनके ऑफ़िस के कलीग मोहनलाल जोशी की बेटी थी पदमा। हम लोगों को सख्त हिदायत दी गई थी कि पापा के कैंसर की बात बाहर नहीं निकलनी चाहिए।

और उस दिन मैच के बाद जब हम चाय की दुकान के बाहर बैठे हुए थे, तो मैं तुझे पद्मा के बारे में बताना चाहता था। लेकिन तभी तूने कहा कि तू उसे पागलों की तरह प्यार करता है। मैं क्या करता यार? मैं तुझे उस वक़्त सच बता देता, तो दोस्त खो देता। और नहीं बताता तो भी दोस्त खो देता।

मैंने सोचा कि कुछ दिन में हिम्मत करके तुझे बता दूंगा। फिर टूर्नामेंट का फ़ाइनल हुआ और उसके बाद तू कभी मुझसे नहीं मिला। जल्दी-जल्दी शादी हुई। चार महीने में पापा चले गए। मैं तुझे ब्लेम नहीं करता, लेकिन एक बार झगड़ने ही सही, मेरे दरवाज़े आ गया होता।”love story of best friends

दुनिया के सबसे खूबसूरत रिश्ते अक्सर इसलिए टूट जाते हैं क्योंकि हमें जिनसे शिकायत होती है, हम उनकी बात कभी सुनना ही नहीं चाहते और ये आधी-आधी नफ़रतें रिश्तों को पूरा मार देती हैं। अगले संडे की सुबह मेरी और प्रतीक की ऑफ़िस की टीमें क्रिकेट ग्राउंड्स में आमने-सामने थीं।

कमेंट्री चालू हो गई थी। आज मैं फिर अपनी टीम का कैप्टन था और प्रतीक, मेरा सबसे अच्छा दोस्त, उस वक़्त ग्राउंड पर मेरा सबसे बड़ा दुश्मन था। मैं ओपनिंग बैट्समैन था। मैंने स्ट्राइक ली। प्रतीक राउंड द विकेट बोलिंग करने वाला ही था कि अंपायर को टाइम आउट का इशारा किया।

मैंने प्रतीक को बीच पिच पर बुलाया। मैंने कहा, “वो लाउडस्पीकर वाले लड़के के बग़ल में रेड ड्रेस में बैठी है ना, उस पर मेरी नज़र है। मैंने पहले से बता दिया है। इस बार कोई ड्रामा किया ना, तो बेटा समझ लेना।”

बस इतनी सी थी यह कहानी…
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