Hachiko dog st0ry in hindi । Short Sad stories about animals for adults

Hachiko dog story in Hindi । Short stories about animals for adults

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कहानी का शीर्षक है:- नेपोलियन बोनापार्ट की कहानी

दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं–एक वो जिन्हें कुत्ते पसंद

होते हैं और एक वो, जिन्हें कुत्ते सख़्त नापसंद होते हैं।

विवेक और उसका परिवार, दूसरी कैटेगरी में आते थे।

वो सत्रह साल का हो गया था, लेकिन आज तक उसने न

तो कुत्ते पाला, न ही उसे समझ में आता था कि कैसे लोग

उनसे इतना प्यार तक कर लेते हैं।

वो बर्दाश्त नहीं कर सकता था कि कोई पालतू जानवर

उसके बिस्तर पर चढ़े, उसके कंबल के अंदर साथ सोए,

उसका मुंह चाटे! विवेक की मां को तो उनसे सख़्त नफ़रत

थी।Sad Stories

एक बार वो बड़े प्यार से खरगोश लेकर आया। उसके

घरवालों का पारा चढ़ गया। मां खरगोश के पीछे भागती

फिर रही थीं और कह रही थीं, “विवेक, तुम लाए हो इस

आफ़त को? इसका प्रसाद अब तुम्हीं साफ़ करो।”

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किसी तरह से उस खरगोश को एक पेट-लविंग

चाचाजी के पास भेजा गया। तबसे अब तक पेट्स का
ज़िक्र इस घर में समझिए बंद है और आजकल तो पेट्स
क्या, किताबों के अलावा हर चीज़ का ज़िक्र बंद है।
दो महीने में विवेक के बोर्ड एग्ज़ाम्स थे। उस पर
बड़ा बोझ आ गया था। कुछ दिनों पहले की बीमारी से
उठा था। विवेक हंसमुख, बेहद तेज़ लड़का था। लेकिन
अच्छी सेहत से उसकी दोस्ती आज तक नहीं हो पाई थी।
आजकल थोड़ा चिड़चिड़ा भी हो गया था। दोस्तों से कटा-
कटा रहता था। रातभर ग्राउंड फ्लोर वाले घर में पीछे के
कमरे में बैठा, पंखे के नीचे पढ़ता रहता था।
वैसे तो विवेक अपना कमरा, अपनी छोटी बहन डिंपल
के साथ शेयर करता था, लेकिन इम्तेहान के दिनों में भाई
के रात-रात के जागरण के कारण बहन अपने मम्मी-पापा
के कमरे में टी.वी. देखते हुए सो जाती थी।
विवेक नींद के स्वीमिंग पूल में गोते लगाता रहता।
मम्मी बीच-बीच में पूछती, “चाय पीनी है क्या?”
हिंदुस्तान में बच्चों के अलावा मां-बाप के इम्तेहान भी
होते हैं। टी.वी. ज़ोर से खोल नहीं सकते, घूमने जा नहीं
सकते, देर देर तक जागते हैं, बच्चे से चाय-पानी पूछते
हुए।Sad Stories
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उस रात उसकी मम्मी के सिर में काफ़ी दर्द था। वो

जल्दी सोने चली गई थीं। अचानक बाहर कहीं विवेक

को ज़ोर-ज़ोर से कुत्तों के भौंकने की आवाज़ सुनाई दी।

आवाज़ बढ़ती जा रही थी, जैसे वो किसी का पीछा कर

रही हो। कुछ देर बाद आवाजें दूर गुम हो गईं लेकिन

एक और आवाज़ उस दरवाज़े पर आने लगी, जो घर के

पिछवाड़े खुलता था।

विवेक ने डरते-डरते दरवाज़ा खोला। कोई नहीं था।

अचानक किसी ने उसके पजामे के छोर को नीचे से खींचा।

विवेक डर के मारे चीख़ने वाला ही था कि देखा, एक उससे

भी ज़्यादा डरा हुआ, कुत्तों से बच-बचकर आया, मदद

मांगता एक छोटा-सा पपी दरवाज़े पर खड़ा हुआ था।

बड़ा अजीब मंज़र था। कुत्तों से नफ़रत करने वाले घर

के दरवाज़े पर एक प्यारा, मासूम-सा, मदद मांगता छोटा-

सा पपी खड़ा था। विवेक के पजामे को अपने छोटे-छोटे

दांतों से खींचता, मदद की गुहार कर रहा था।

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मुझे लगता है कि अगर विवेक की जगह एडोल्फ़

हिटलर भी खड़ा होता, तो उसका दिल भी पसीज गया

होता। विवेक ने अपनी सारी डॉगी-नफ़रत छोड़कर पपी

को अपने कमरे में आने दिया। अगर, पहली नज़र में प्यार

होता है तो विवेक को पहली नज़र में नेपोलियन बोनापार्ट

से प्यार हो गया था।Sad Stories

जी हां, यही नाम रखा था विवेक ने अपने नए दोस्त

का।

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क़द में छोटे पर कारनामों से बड़े नेपोलियन बोनापार्ट

का बड़ा फ़ैन था वो। नेपोलियन आया तो था शरणार्थी

की तरह, लेकिन क़रीब साढ़े तीन मिनट में ऐसे धौंस जमाने

लगा, जैसे कोई मकान मालिक हो!

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अपने नन्हे-नन्हे पांव से चढ़ाई करते-करते नेपोलियन

विवेक के बीन बैग के ऊपर चढ़ गया और ऐसे फैलकर

बैठ गया, जैसे वो शाहजहां हो और ये हीरों से जड़ा

मुग़लिया सिंहासन, जिसमें अभी-अभी वो ताजमहल पूरा

करके थककर बैठा हो। उसकी छोटी-छोटी काली आंखें

थीं, ज़रा सी नाक और मुड़े हुए काग़ज़ जैसे छोटे-छोटे दो

कान।Sad Stories

विवेक को समझ नहीं आया कि किया क्या जाए। डर

लग रहा था कि अगर नेपोलियन ने भौंकना शुरू कर दिया

और उसकी मां जग गई, तो ऐसा एटम बम फटेगा, जिसकी

गूंज याद शहर के कोने-कोने तक सुनाई पड़ेगी।

नेपोलियन का मुंह बंद करने के लिए विवेक ने घूस

देना ही उचित समझा। एक घंटे पहले स्टील के गिलास

में कटोरी से ढककर मां जो ठंडा दूध रख गई थी, उसको

उसने उसी कटोरी में डालकर सम्राट के आगे पेश किया।

नेपोलियन ने विवेक का नज़राना थोड़ा हिचकते हुए

स्वीकार कर लिया।Sad Stories

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माएं बच्चों से दूध पीने की ज़िद क्यों करती हैं, इसका

जीता-जागता उदाहरण विवेक को एक मिनट में मिलने

वाला था। डरे हुए नेपोलियन को थोड़ी-सी हिम्मत आ गई

थी। दूध पीते हुए वो थोड़ा-सा चौड़ा हो गया और कमरे में

टहलने लगा और फिर एक कोने में जाकर बैठ गया।

जब तक विवेक अपने अगले चैप्टर तक पहुंचता, वो

घूस काम कर चुकी थी और नेपोलियन सो गया था। ना

जाने कब विवेक भी सो गया।Sad Stories

अलार्म लगाना भूल गया था, लेकिन नो प्रॉब्लम,

उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। सुबह विवेक अपनी मम्मी की

चीख़ से जो जागा! कमरे में जगह-जगह प्रसाद पड़ा हुआ

था और मम्मी रूपी एटम बम फट चुका था।

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शंकर जी का तांडव नृत्य देखने का सौभाग्य तो विवेक

को आज तक प्राप्त नहीं हुआ था, लेकिन ये तो तय था

कि उसकी मां के इस रौद्र रूप से, शायद बहुत अलग नहीं

रहा होगा। विवेक की मां घर में एक चोर को बर्दाश्त कर

सकती थी, अजगर गले में टांगे एक सपेरे को बर्दाश्त कर

सकती थी, मैं तो कहता हूं कि इनकम टैक्स वालों को भी

बर्दाश्त कर सकती थी, लेकिन कुत्ता?Sad Stories

कुत्ता उन्हें किसी शर्त पर बर्दाश्त नहीं था। मां और

नेपोलियन ने एक-दूसरे को ऐसे घूरकर देखा, जैसे वर्ल्ड

वॉर की कोई लड़ाई हो और दो सेनाएं एक-दूसरे के सामने

खड़ी हों। लेकिन जो पहुंचे हुए योद्धा होते हैं, उन्हें पता

होता है कि बातों की लड़ाई में सबसे बड़ा हथियार होता है

ख़ामोशी। विवेक की मां ने उसी हथियार को अपनाते हुए

बस इतना कहा, “कमरा साफ़ होना चाहिए विवेक,”

और चली गईं।Sad Stories

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सुनने में आया है कि दूसरे कमरे में पांच मिनट बाद

एक सम्मिट मीटिंग हुई, जिसमें विवेक के मम्मी-पापा और

छोटी बहन डिंपल शामिल थे। बीस मिनट बाद विवेक की

मां ने उसे फ़ैसला सुनाया।

“ये कुत्ता जहां चाहे छोड़कर आ जाए। वो इस घर में

नहीं रह सकता।”

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विवेक ने कहा, “मैं इसे कहां छोड़ आऊं भई? और वैसे

भी ज़रा-सा है, तुम्हारा क्या बिगाड़ रहा है? इतनी हार्टलेस

कैसे हो गई हो तुम मम्मी?”Sad Stories

फ़ौरन दूसरे कमरे में सम्मिट मीटिंग इंटरवल के बाद

चालू हो गई। इस बार नया फ़ैसला सुनाया गया। “कुत्ता

कुछ दिन यहां रह सकता है, जब तक विवेक उसके लिए

नया घर ना ढूंढ ले। लेकिन वो विवेक के कमरे से बाहर

नहीं जा सकता।Sad Stories

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मुश्किल वक़्त में मुझे नहीं लगता कि विवेक को इससे

बेहतर कोई डील मिल सकती थी। वो मान गया।

उसने और नेपोलियन ने साथ-साथ जिंदगी की

शुरुआत उस छोटे से कमरे में कर दी। रोज़ विवेक की

मम्मी उसे याद दिलाती कि उसे जल्दी ही कुत्ते के लिए

नया घर ढूंढ़ना है। इसी तरह दो हफ़्ते बीत गए।

नेपोलियन चतुर था। उसने धीरे-धीरे अपनी लक्षण

रेखा पार करके विवेक के कमरे से बाहर के कमरों में जाना

शुरू कर दिया। कभी विवेक के पापा के पांव के पास

बैठ जाता, कभी मम्मी को घंटों रसोई के बाहर से ताकता

रहता।Sad Stories

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डिंपल नेपोलियन से बहुत चिढ़ती थी। जैसे वो पास

आता, डिंपल चीख़ने लगती।

मुझे लगता है कि कभी-कभी नेपोलियन भी डिंपल को

चिढ़ाता था, जानबूझकर।

एक दिन जब विवेक घर आया, तो सब ऐसे बैठे थे

जैसे मातम मना रहे हों। कुछ देर बार विवेक की मम्मी ने

रुआंसी आंखें लिए कहा, “आई एम सॉरी बेटा। मुझसे

दरवाज़ा खुला छूट गया था। नेपोलियन मिल नहीं रहा

है।”Sad Stories

वो दिन शायद विवेक की ज़िंदगी का सबसे तकलीफ़

भरा दिन था। कुछ खोने का अहसास इतनी गहराई से और

इतनी तकलीफ़ से उसने आज तक महसूस नहीं किया था।

या यूं कहिए कि उसने जिंदगी में कुछ ज़्यादा पाया ही नहीं

था, तो खोने का ग़म कैसे महसूस करता?

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वो अपना बैग फेंककर साइकिल लेकर घर से बाहर

निकल पड़ा। बदहवासी में सड़क पर घूमने लगा। किधर

जा रहा था, पता नहीं, बस पागलों की तरह साइकिल

चलाता जा रहा था और नेपोलिन को पुकार रहा था।

चारों ओर उस नन्ही-सी जान को ढूंढ़ रहा था, जो

अचानक, बिन बताए उसकी जान बन गई थी। अचानक

उसने महसूस किया कि उसकी आंखों में आंसू थे। वो

लड़का जो अपनी नानी की मौत के बाद आज तक कभी

नहीं रोया था, उसकी आंखों से आज बेतहाशा आंसू बरस

रहे थे। अभी-अभी बीमारी से उठा था। कमज़ोर था।

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हांफने लगा। ठोकर खाकर साइकिल एक जगह गिर पड़ी

और उसकी कुहनी छील गई। लेकिन वहां जो खून रिस

आया था और उसे जो चुभता दर्द हो रहा था, उससे कही

ज़्यादा तकलीफ़देह था, किसी अपने से बिछड़ने का वो

दर्द, जो एक आरी की तरह उसकी नसों को काटने पर

तुला था।Sad Stories

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हममें से कई लोग नहीं समझेंगे विवेक के लिए

नेपोलियन को खो देने का दर्द। या ये कि कोई भी किसी

जानवर से कितना प्यार कर सकता है। दोस्तों, मैं भी कभी

ऐसा सोचता था। लेकिन अब जानता हूं कि ख़ुशनसीब

होते हैं वो, जिन्हें किसी नेपोलियन का साथ मिलता है।

ना छल, ना कपट, ना लोभ ना लालच। बस बिना शर्त

निस्वार्थ दोस्ती, सेवा और ख़ामोश तन्हाई के पलों का

साथ। ग़म और ख़ुशी, भीड़ और अकेलापन, गर्मी-सर्दी,

सबमें उसी भाव से साथ निभाने का जुनून। जानवर क्यों

कहते हैं हम इन्हें? काश इंसान इनसे कुछ सीख पाते।

विवेक दो घंटे पागलों की तरह सड़कों पर घूमता रहा।

उधर घर में उसकी मां रो रही थी और उसके पापा दिलासा

दे रहे थे।Sad Stories

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कहां होगा वो बेवकूफ़ कुत्ता? वो बड़ी-बड़ी गोल-

मटोल आंखें, काग़ज़ जैसे कानों को बिना कारण हिलाने

वाला नेपोलियन? यही सोच रही होंगी शायद विवेक की

मां। कैसे मेरी चप्पल का कोना चबा गया था… कैसे

डिंपल के पेंसिल बॉक्स में से रबर को चबाने लगा था।

बच्चा ही तो था वो।Sad Stories

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विवेक थककर अपनी साइकिल धीरे-धीरे चलाता

हुआ याद शहर के कंपनी बाग़ के छोर पर, एक दलदल

के पास रास्ते पर खड़ा था, हार गया था, घर वापस जाना

चाह रहा था। तभी उसने शाम की ख़ामोशी में झींगुरों की

आवाज़ के बीच वही आवाज़ सुनी, जो उसके दरवाज़े पर

हफ़्तों पहले उससे मदद के लिए पुकार रही थी।

उससे दस मीटर दूर धुंधलके में डर के मारे दुबका

नेपोलियन बैठा था।Sad Stories

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शाम के सात बजे थे, जब मौत जैसे मातम में डूबे घर में

घंटी बजी। डिंपल ने पर्दे से झांककर देखा और अचानक

ख़ुशी से चिल्लाई, “भैया आ गए और नेपोलियन भी है।”

जैसे नई बहू घर आई हो, ऐसे मां-बेटी दरवाज़े की ओर

दौड़ी। विवेक के पापा ने अख़बार छोड़कर उत्सुकता में

आगे बढ़कर दरवाज़ा खोला। विवेक नेपोलियन को अपनी

गोदी में लिए खड़ा था।Sad Stories

विवेक की मां ने कहा, “हाय मेरा बच्चा।

लेकिन जब विवेक ने नेपोलियन को कमरे के

बीचोबीच रोशनी में रखा तो देखा, वो दलदल के कीचड़ में

सना हुआ था और उसकी गर्दन पर जहां कॉलर लगा करता

था, वहां घाव के निशान थे, जैसे किसी ने बड़ी बेरहमी

से चेन से पकड़कर उसे खींचने की कोशिश की हो, और

आखिरकार वो अपनी पतली सी गर्दन किसी तरह अपने

पट्टे से निकालकर भाग गया हो।

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विवेक की मां फूट-फूटकर रोने लगीं। बोली, “ये सब

मेरी वजह से हुआ। न मैं सब्ज़ी के ठेले वाले को खुले पैसे

देने के लिए दरवाज़ा खुला छोड़कर अंदर जाती, ना मेरे

बच्चे का ये हाल होता।”Sad Stories

सबकी आंखों में आंसू थे। विवेक ने अपनी मां को

पहली बार ऐसे देखा था। उसने पहली बार देखा था कि

किस तरह ये ज़रा सा नेपोलियन अपनी जिंदगी की सबसे

बड़ी लड़ाई धीरे-धीरे जीत गया था। उन्हीं का चहेता बन

गया था, जो उसकी कौम से नफ़रत करते थे। जैसे नन्हा-

सा बच्चा हो।

विवेक की मां ने गुनगुने पानी से उसको नहलाया और

डॉक्टर को फ़ोन करके उसे दवा लगाई। उस रात ऐसा लग

रहा था, जैसे घर में एक पांचवां सदस्य आ गया हो। सबके

जितना ही ज़रूरी, सबके लिए उतना ही प्यारा।

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विवेक की बहन डिंपल ने नेपोलियन के लिए खुद

उसकी बोतल में दूध डाला और उसे पुचकारकर पिलाने

लगी। नेपोलियन ने भी दोस्ती का हाथ बढ़ाने का फैसला

कर लिया था। उसने डिंपल का हाथ प्यार से चाट लिया।

उस शाम विवेक की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी।

हल्का-सा बुख़ार आ गया था। “कितनी साइकिल चलाई

है आज,” उसकी मां ने कहा। “ये ले गर्म दूध पी ले और

सो जा।”Sad Stories

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अगली सुबह विवेक बेहद उत्साहित था। उसको

मम्मी-पापा से आख़िरकार नेपोलियन को स्कूल ले जाने

की इजाज़त मिल गई थी। स्कूल में उस दिन विवेक सबसे

पॉपुलर स्टूडेंट बन गया था।

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लड़के-लड़कियां जिसको देखो, “सो क्यूट सो क्यूट,

करते हुए नेपोलियन की ओर से चले आ रहे थे। उनमें से

एक लड़की ने नेपोलियन को अपने हाथों में लेने के लिए

हाथ बढ़ाया ही था कि सबने देखा कि विवेक बेजान होकर

ज़मीन पर गिर पड़ा।

अफ़रा-तफ़री में उसे घर ले जाया गया। उसके पापा

जल्दी घर आ गए। बांहों में लेकर उसे अस्पताल ले जाने

लगे।Sad Stories

नेपोलियन शाम को सारा नज़ारा देख रहा था। डिंपल

ने रोते हुए उससे कहा, “भैया थोड़ी देर में आ जाएंगे

नेपोलियन।”

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सोफे पर पड़े अख़बार में हेडलाइन छपी थी–मच्छरों

का हमला, ब्रेन फ़ीवर से सत्ताइस बच्चे बीमार।

विवेक अगले दिन अख़बार की सुर्खियों के लिए

एक और गिनती बन गया था। मच्छरों की वजह से

एसिफलाइटिस नाम के ख़तरनाक दिमागी बुख़ार का वो

अट्ठाइसवां मरीज़ था।

उसका बुख़ार लगातार बढ़ रहा था। भयंकर कंपकंपी

छूट रही थी। उसके पापा और मम्मी एमरजेंसी वॉर्ड में खड़े

बेबस उसे देख रहे थे। डॉक्टर ने कहा, “आपका बेटा किसी

ऐसी जगह तो नहीं गया था, जहां पानी ठहरा हुआ हो और

बहुत सारे मच्छर हो।”Sad Stories

उसके पापा ने कहा, “जी कल कंपनी बाग़ के दलदल

के पास गया था।”

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डॉक्टर ने कहा, “आप तो ज़िम्मेदार पढ़े-लिखे लोग हैं।

जानते हैं ना एंसिफलाइटिस फैला हुआ है। तब भी ऐसा

करने देते हैं अपने बच्चों को?”

विवेक की मां ने कहा, “डॉक्टर सब ठीक तो हो जाएगा

ना?”Sad Stories

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डॉक्टर कुछ कह पाते, उससे पहले ही विवेक की

कंपकपी तेज हो गई। उसे दौरे आने लगे। उसने दोनों

हाथों की मुट्ठियों से अस्पताल की सफ़ेद चादर को ज़ोर

से पकड़ लिया, जैसे उसे कोई कहीं ले जाना चाह रहा था

और वो कह रहा था, ‘नहीं मुझे मत जाने दो, मुझे मत ले

जाओ।’

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अस्पताल से क़रीब चार किलोमीटर दूर विवेक के घर

में डिंपल नेपोलियन को अपनी गोद में लिए बैठी थी, फ़ोन

के बग़ल में। अस्पताल से उसे एक फ़ोन कॉल का इंतज़ार

था, जो उसे बता दे कि कि उसका भाई ठीक है।

शाम ढल रही थी। सत्रह साल के बच्चे की ज़िंदगी की

सबसे मुश्किल शाम। उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी।

विवेक के पापा अस्पताल के कॉरिडोर में दौड़ते हुए जाकर,

बार-बार केमिस्ट की दुकान से अर्जेंट दवाइयां ला चुके थे।

इंजेक्शन पर इंजेक्शन लग रहे थे। पर बचपन से इंजेक्शन

से छुईमुई की तरह डरने वाले लड़के को कुछ पता ही नहीं

लग रहा था। ऑक्सीजन सिलेंडर को पहिए से घसीटकर

लाया गया। विवेक की मां एक कोने में बैठी, एक छोटी-

सी किताब से ना जाने कितने देवी-देवताओं का आह्वान

कर रही थीं। उनसे विनती कर रही थीं कि किसी तरह

उनके बच्चे की जान बचा लें। लेकिन देवी-देवता तो अपने

हिसाब से नाप-तौलकर, कितनी बातों को ध्यान में रखकर

दुनिया को चलाते हैं ना?Sad Stories

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सात बजके पचास मिनट पर जब हल्की नीली ड्रेस

पहने एक अटेंडेंट एक नर्स के साथ कमरे में घुस ही रहा था,

तब उन मनमानी पर तुले देवी-देवताओं ने सत्रह साल के

उस बच्चे की सांसें रोकने का फ़ैसला कर लिया।

विवेक जा चुका था।

अस्पताल की सफ़ेद चादर को भींचती उसकी मुट्ठियां,

अब थम गई थीं, जैसी लंबी-लंबी सलवटों पर उस चादर

पर लेटने वाले की लगाम छूट गई हो।

छह किलोमीटर दूर विवेक के घर फ़ोन की घंटी बजी

और कुछ सैकंड बाद डिंपल फूट-फूट के रोने लगी।

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नेपोलियन धीरे-धीरे चलकर अंदर कमरे में चला गया और

विवेक के बिस्तर पर बैठ गया। डिंपल कुछ देर बाद

उसको ढूंढ़ती हुई अंदर आई। काग़ज़ जैसे कानों को बिना

कारण हिलाने वाले, बड़ी-बड़ी गोलमटोल आंखों वाले

नेपोलियन की भी आंखें बंद हो गई थीं। एक अंतहीन

इंतज़ार की राह पर चल पड़ा था वह। डिंपल ने आख़री

वादा जो किया था कि नेपोलियन, भैया अभी थोड़ी देर में

ही आ जाएंगे।Sad Stories

बस इतनी सी थी यह कहानी…
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