New Emotional Short Sad love story reading online in Hindi 2021

Sad love stories that make you cry in Hindi | Love sad stories in Hindi

New Emotional Short Sad love story online in hindi 2021
New Emotional Short Sad love story online in Hindi 2021

कहानी का शीर्षक है:-अरेंज्ड मैरिज

 

दफ्तर मैं जैसे ही पहुंची, तो दूर से बॉस चले आ रहे थे। मैंने ‘गुड मॉर्निंग’ कहा। वो मुस्कुरा रहे थे। कुछ ज़्यादा ही, जैसे कोई बिल्ली दूध चट करने के बाद मूंछे हिला रही हो। ऐसा क्या राज था भाई अपने केबिन पहुंची तो देखती हूं कि मेज़ पर एक लिफ़ाफ़ा रखा है। फूलों का गुलदस्ता, चॉकलेट का डिब्बा और मेरा फ़ेवरेट–‘चॉकलेट किंग’। लिफ़ाफ़ा खोला तो यक़ीन ही नहीं हुआ।

मेरा प्रमोशन हो गया था और मेरी सैलरी भी बढ़ा दी गई थी–25 प्रतिशत! मैंने अकेले में, ये सोचकर कि कोई देख नहीं रहा है, कॉलेज के दिनों के टाइप का छोटा-सा ख़ुशी का डांस किया तो पीछे से बॉस की हंसी सुनाई पड़ी। खड़े-खड़े देख रहे थे। बोले, “कॉन्ग्रेचलेशंस! तुम ये सब डिज़र्व करती हो। आज जल्दी घर चली जाना और पार्टी करना… सारी रात… बॉयफ्रेंड के साथ। हैव फ़न!”

 

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घर की ओर ड्राइव करते-करते मैं हल्के से खुद को टॉन्ट करती हुई मुस्कुरा रही थी, ‘बॉयफ्रेंड!’ बड़े शहरों में करियर की ऊंची-नीची लहर पर तैरते लड़के-लड़कियों की किस्मत में बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड कहां होते हैं? किसके साथ बांटू अपनी ख़ुशी? मैं याद शहर छोड़ने के बाद यहां आई। नौकरी के पहले दस साल बस अपनी ही धुन में लगी रही। कुछ करके दिखाना था। जल्दी-जल्दी तरक़्क़ी हुई।

प्यार, बॉयफ्रेंड… इन सबके लिए टाइम ही कहां था? ट्वेन्टीज़ की उम्र कब गुज़र गई… थर्टीज़ ने कब दस्तक दे दी… कब मैंने जीन्स और बिज़नेस-सूट के साथ-साथ शौक से साड़ी पहनना भी शुरू कर दिया–पता ही नहीं चला। घर पहुंची। मेरी मेड संगीता, जो कि अब मेरी सहेली बन चुकी है, एक ख़ाली प्लेट और चाकू रखके सामने बैठ गई। मैंने केक निकाला, काटा और संगीता ने ताली बजाकर बिना कारण जाने क्यों गाना शुरु कर दिया, “हैप्पी बर्थडे टू यू… हैप्पी बर्थ-डे टू यू।”

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मैंने फैसला किया कि मैं प्रमोशन की ख़ुद को दावत दूंगी। चाइनीज़ ऑर्डर किया और टी.वी. देखते हुए देर तक अकेले खाती रही। संगीता मेरा शेड्यूल जानती थी। रात को नौ बजे दरवाज़ा खटखटा के अंदर आई और बोली, ‘दीदी कंप्यूटर खोल दूं क्या?’ मैंने कहा,’हां’। शादी की वेबसाइट देखने का वक़्त आ गया था।ये शादी के वेबसाइट की दुनिया भी कितनी निराली होती है! जैसे आप दूल्हों के सुपर मार्केट में हों और हरेक शेल्फ़ पर एक-एक दूल्हा सजा हो। हरेक का नाम, गुण, अच्छाइयां, शौक सामने छपी हो। परखिए, अच्छा लगे तो शॉपिंग के टोकरी में डाल लीजिए और नहीं अच्छा
लगे तो आगे बढ़ जाइए।
ये सब भी मेरी ही तरह तो हैं-सक्सेसफुल, एम्बीशंस लेकिन अकेले। चेहरों की इस भीड़ में न जाने कब इतने अकेले हो गए हम सब! 30-35 साल की मेरी हर सहेली प्यार की तलाश में है। शादी करना चाहती है। लेकिन कोई मन का नहीं मिलता। चार साल पहले लंबी विश लेकर चली थीं कि कैसे लड़के से शादी करेंगी। आज लगता है कि उन्हें कोई भी ठीक-ठाक लड़का मंजूर है। बड़े शहरों का अकेलापन, बड़े शहरों के अकेले लोगों से कितनी बेदर्दी से मोल-भाव करता है! आपको अपने मन की, कहां करने देता है? मैंने शादी की वेबसाइट पर एक बार फिर कुछ लड़के शॉर्टलिस्ट करने शुरू कर दिए।

आज वक़्त थोड़ा कम था। जल्दी सोना था। सुबह याद शहर से पापा-मम्मी आनेवाले थे। नोटबुक निकालने के लिए नीचे का ड्रॉर खोला तो एक पुरानी चिट्ठियों की एक फ़ाइल हाथ में आ गई। काग़ज़ पलटने लगी। सामने एक काग़ज़ खुला जो कॉलेज के दिनों में फाड़कर फेंकने वाली थी, पर कुछ सोचकर यहां रख दिया था।

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मेरे प्यारे दोस्त निखिल ने, जो मेरा सबसे अच्छा बडी होता था, वैलेंटाइन्स-डे पर मुझे ख़त लिखकर अचानक प्यार ज़ाहिर किया था। मैंने कभी उसे इस तरह से देखा ही नहीं था। और, उसने अचानक सौ लाल गुलाबों का गुलदस्ता मेरे घर भिजवा दिया था। मैंने गुस्से में निखिल से सारे रिश्ते तोड़ लिए थे। कितने आशिक़ों की भीड़ लगी रहती थी उन दिनों कॉलेज में! तब सोचते थे, “हां, आशिक़ तो आते-जाते रहते हैं। जब मन चाहेगा मिल जाएगा। अभी पढ़ाई कर लेते हैं।” पर तालाब सूख गया था। मैं चेहरे देख रही थी कम्प्यूटर पर।

ख़ुद की चेहरों के ऐसे बाज़ार में नुमाइश करना आसान काम नहीं होता है। अपना अहम, अपना ईगो छोड़कर एक लाइन में खड़े हो जाना पड़ता है। इंटरनेट के इस महास्वयंवर में हज़ारों लोगों के साथ धक्का-मुक्की करते हुए इंतज़ार करना पड़ता है। ये कहते हुए कि हां, मैं मानता हूं कि मैं अकेला हूं। बहुत कोशिश की, कोई साथी नहीं मिला। मुझे अपना साथी चुन लीजिए। मैंने चॉकलेट-केक का एक टुकड़ा अपने मुंह में रखा। अचानक उसकी मिठास भी कड़वी लग रही थी। मैं कब इतनी अकेली हो गई और, क्या सच्चा प्यार नहीं होता अब दुनिया में? क्या मैं हमेशा ऐसी अकेली रहूंगी?उस रात देर तक जागती रही मैं।

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मम्मी-पापा की फ्लाइट एक घंटा लेट थी। मैं एयरपोर्ट पर बैठी क्रॉसवर्ड करती रही। फ़ोन बजा, मेरे कैमिस्ट्री टीचर का था। सक्सेना सर बोले, “आ रही हो न बेटा, सैटरडे को? कॉलेज-रीयूनियन है। हम सब लोब दोबारा मिलेंगे। और बताओ, फैमिली कैसी है? हस्बैंड वगैरह…।” मैंने कहा, “सर, वो मेरे पेरेंट्स की फ्लाइट आ गई है। मैं आपको बाद में फ़ोन करती हूं।” पापा-मम्मी ढेर सारी चीजें लाए थे याद शहर से। पापड़, मिर्च, नीबू और पता नहीं कौन-कौन से अचार। शाम तक मेरी नौकरी, खाना-पीना, याद शहर में पड़ोस की गॉसिप–सारी बातें हो गई थीं। बस, एक वही बात नहीं हुई थी जो इतने घंटों से मेरे और पापा-मम्मी के दिमाग़ में ज़िद्दी तितली की तरह घूम रही थी मेरी शादी की बात।

आख़िरकार पापा ने ज़िक्र छेड़ ही दिया। तीन नए लड़के थे, जिनसे मुझे मिलना था। मैं इस कॉन्वर्सेशन से बहुत पहले तंग आ चुकी थी। क्या दुनिया की बातों से तंग आकर वे मुझसे छुटकारा चाह रहे थे? वो मेरे मन के मुताबिक़ शादी करके मेरी ख़ुशी चाह रहे थे या, अपने मन के मुताबिक़ मेरी शादी करवा के अपनी ख़ुशी ढूंढ रहे थे? क्या मैं ख़ुद नहीं चाहती थी कि मेरी शादी हो, परिवार हो? मैं भी कुशन-पर्दे ख़रीदूं, घर सजाऊं? लेकिन, किसी भी राह चलते आदमी से तो ब्याह नहीं कर सकते न। फिर बहस हो गई।

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मैं ऑफ़िस के लिए निकल पड़ी। बीच सड़क पर गाड़ी ख़राब हो गई। नई गाड़ी ले रही थी लेकिन, लोन अभी सैंक्शन नहीं हुआ था। बेहद ख़राब मूड में ऑफ़िस पहुंची तो बैंक से आदमी आकर बैठा हुआ था। फ़ॉर्म भरने लगा। बोला, “मैडम आप यहां पर साइन कर दीजिए, मैं बाक़ी भर लूंगा।” फिर दो सैकंड बाद मुंह उठाकर बोला, “मैडम, मैरिड या अनमैरिड?” मन तो किया कि पेपरवेट उसके मुंह पर दे मारूं। हद हो गई यार! जिसको देखो…मुझे पता था कि वो सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहा था। फिर भी, मैंने उसे गुस्से में कहा, “ये फ़ॉर्म आप यहीं पर छोड़ दीजिए, मैं भर के आपके ऑफ़िस भिजवा दूंगी।’ फिर फ़ोन बजा। मेरी बेस्ट फ्रैंड थी–प्रिया, कॉलेज टाइम की सहेली।

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बोली, “तू आ रही है न रीयूनियन में?” मैंने कहा, “नहीं यार!” प्रिया ने कहा, “मुझे पता है, तू क्यों नहीं आ रही है। यार, कब तक हम इस सवाल से भागते रहेंगे? चल न।” मैंने कुछ सोचा और कहा, “सच ही कह रही है तू। चल देखा जाएगा। एक शाम की तो बात है।” उस दिन घर वापस लौटी। पापा पेपर पढ़ रहे थे और मम्मी फ़ोन पर थीं। शायद, मौसी से बातें कर रही थीं। बोलीं, “वो आ गई है, तू रख रात को बातें करते हैं।

मम्मी चाय के साथ पकौड़े भी लेकर आईं। मैं समझ गई थी कि कटने के पहले बकरे की ख़ातिर हो रही थी। पापा ने पेपर में कोई ख़बर पढ़ते हुए कहा, “लव-मैरिज में डिवोर्स का रेट 60 प्रतिशत बढ़ गया है।” यह महत्वपूर्ण सूचना भी ज़ाहिर सी बात है, मेरे लिए ही प्रसारित की गई थी।

 

 

पापा ने अख़बार किनारे रखा, चाय की एक चुस्की ली, बोले, “कल ऑफ़िस से छुटी ले लेना, उन तीनों लड़कों से मिलना है।” मुझे बस हुक्म मिला था। जैसे बचपन से हुक्म मिलते हुए आ रहे थे, साइंस मत लो, आर्ट्स लो। म्यूज़िक सीखो। भाई के दोस्तों से ज़्यादा मत घुलो-मिलो। मुझे याद है, ये नौकरी जब मुझे मिली थी तो कितनी मुश्किल से पापा-मम्मी को मैं मना पाई थी याद शहर छोडकर आने के लिए।

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पेरेंट्स अक्सर भूल जाते हैं कि बेटियों के सहारे चलता है ये मुल्क। बेटियां, जो मांएं बनती हैं और बहनें, जो अपना करियर, अपनी जिंदगी न्योछावर कर देती हैं ताकि उनके भाई, पति, बेटे आगे बढ़ सकें। पेरेंट्स अक्सर भूल जाते हैं कि शायद बेटियों से ज़्यादा समझदार कौम आजतक ऊपर वाले ने बनाई ही नहीं… कि उनको बेटियों पर विश्वास करना चाहिए, न कि उनकी ज़िंदगी रिमोट कंट्रोल से चलानी चाहिए। लेकिन मैं अब हार चुकी थी। या शायद मैं और लड़ना ही नहीं चाहती थी।

आख़िर मेरे मां-बाप ने मुझे जन्म दिया था। अगर वो ज़िद पर थे कि मैं किसी लड़के से पंद्रह मिनट मिलकर सारी जिंदगी उसके साथ बिताने का फ़ैसला कर लूं तो ज़रूर कुछ सोच-समझकर कह रहे होंगे। बॉस को ई-मेल भेजा कि अगले दिन नहीं आ पाऊंगी। सलवार-क़मीज़ पहनकर, बिंदी लगाकर, चूड़ी पहनकर मैं अगली सुबह दूल्हा फ़ाइनल करने निकल पड़ी। तीनों से मिली।

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बचपन से आजतक जब भी अपने हस्बैंड के बारे में मन में तस्वीर खींची थी, ये लोग उनमें से नहीं थे। ठीक भी है न, ज़िंदगी की जो तस्वीर हम खींचते हैं और ज़िंदगी जो हमें देती है, उसमें फ़र्क होता है। इसीलिए तो सपने, उम्मीदें, ख़्वाब… इन सब नामों की चीजें भगवान ने बनाई हैं। शाम को थककर घर लौटे। मैंने दूसरे नंबर के लड़के को बिना सोचे-समझे हां कह दिया।

उसका नाम तक ठीक से नहीं जानती थी। लेकिन, कम-से-कम मम्मी-पापा की सबसे बड़ी फ़िक्र तो मैं दूर करने जा रही थी। उनकी बेटी की शादी होने जा रही थी। प्रिया और मैं उस होटल के सामने उतरे जहां री-यूनियन की पार्टी थी। यहां ये कहना ज़रूरी होगा कि हम दोनों काफ़ी अच्छे लग रहे थे। हॉल के अंदर घुसे तो ऐसा लगा जैसे कॉलेज के पुराने दिन वापस आ गए हों। थोड़ी देर की झिझक के बाद लोग खुल के हंसने लगे, गले मिलने लगे और, एक-दूसरे को पुराने नामों से बुलाने लगे। जिसे देखो वही मुझसे एक्सपेक्टेड सवाल पूछ रहा था, “मिस ब्यूटीक्वीन, शादी की कि नहीं?” अब मुझे क्या डरना, अब तो जवाब था मेरे पास।

मैंने कहा–“तय हो गई है बस, तारीख़ फ़िक्स होनी है।” हम सबका हंसी-मज़ाक़ चल रहा था कि पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ ने कहा, “कॉन्ग्रेचुलेशंस!” मैं पलटी तो निखिल खड़ा था… वही निखिल जो कभी मेरा बहुत अच्छा दोस्त हुआ करता था और जिसने वैलेंटाइन्स डे पर सौ गुलाब के फूल भेजकर ऐसा झटका दिया था कि मैंने उससे दोस्ती तक तोड़ दी थी। उस दिन के बाद हमने कभी बात नहीं की थी। वो बोला, “सॉरी! मुझे बाद में पता चला कि तुम्हें बहुत बुरा लगा। आई एम रियली सॉरी।

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और उसने मुस्कुरा के हाथ बढ़ाकर कहा, “फ्रैंड्स अगेन?” मैंने भी हंसकर हाथ मिलाया। मैंने भी कहा, “यस, फ्रैंड्स अगेन। बाक़ी शाम हमलोगों ने एक कोने में बैठकर गप्पे मारने में गुज़ार दी। उसे सब याद था। मैं कैसे ज़िद करके हॉरर फ़िल्में देखने जाती थी और डर के मारे पूरा टाइम उसका हाथ भी पकड़े रहती थी।

मैं कैसे क्लास बंक करके चाट खाने जाती थी, क्योंकि वर्मा चाट भंडार के गोल-गप्पे खाए बिना मेरा दिन पूरा ही नहीं होता था। कैसे मैं लाइब्रेरी के बाहर बैठकर गीता दत्त के गाने गाया करती थी उसके साथ। क्यों मैंने उससे रिश्ता तोड़ लिया था? कितने सेल्फ़िश, कितने ख़ुदग़र्ज़ हो जाते हैं हम कभी-कभी! हम चाहते हैं कि हमारे पास जो लोग रहते हैं, वो हमें उन्हीं नज़रों से देखें जैसा हम चाहते हैं।

अगर मैंने निखिल से इतनी बेदर्दी से रिश्ता नहीं तोड़ा होता तो आज क्या पता… मैंने शायद किसी मतलब से ही पूछा था उससे, “शादी की निखिल?” वो किसी बात पर हंस रहा था। हंसते-हंसते रुक गया। बोला, “हां, लेकिन उनको मैं रास नहीं आया। तलाक़ की फ़ाइनल हियरिंग पिछले महीने ही हुई है।” मैंने कहा, “कब तक हो?”

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बोला, “शाम को जा रहा हूं। फ्री हो तो बताना, मिलेंगे। फिर न जाने कब वापस आऊं।” रीयूनियन की पार्टी ख़त्म हो रही थी। मैंने निखिल से कहा कि मैं उसे उसके होटल ड्रॉप कर दूंगी। रास्ते में खूब बातें किए जा रहा था। शायद मैं सालों के बाद इतना खुलकर हंसी थी। बोला, “यार, तुझे आइडिया नहीं कि तूने मुझसे कितना काम करवाया था उस वैलेंटाइन्स-डे पर। तुझे पता है, लवर्स कितने बढ़ गए हैं याद शहर की पॉपुलेशन में? दो, पांच, आठ करके मैंने बीस फूलवालों के पास जाकर सौ गुलाब जोड़े थे और तुमने वापस कर दिए।

चल, अब हर्जाना भर। कल रात होटल में मेरे साथ खाना खाना। फिर, अपनी खटारा में एयरपोर्ट छोड़ देना। भगवान ने चाहा तो एयरपोर्ट पहुंच ही जाएंगे।” रात बहुत धीमे-धीमे कटी। गहरी सोच में थी मैं। इतने सालों के बाद मेरा सबसे अच्छा दोस्त फिर से मिल गया था। वो, जो कभी मेरा सबसे अच्छा साथी भी था। लेकिन जिसका साथ मैंने ठुकरा दिया था। ऐसा नहीं था कि निखिल के लिए मेरे दिल में अचानक कोई प्यार उमड़ रहा था। लेकिन उसके साथ मुझे पूरापन, पता नहीं ये शब्द होता भी है कि नहीं, एक पूरापन महसूस हुआ था। तब भी और आज भी।

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पापा कमरे में आए। बोले, “संडे को तुम्हें लड़के केपेरेंट्स से मिलना है।” मेरी ज़िंदगी मेरे हाथों से फिसल रही थी। शायद इसी को नियति, डेस्टिनी, मुक़द्दर, तक़दीर कहते हैं। अगली शाम नई गाड़ी आ गई–चमचमाती लाल। मैं दफ़्तर से निकली और नई गाड़ी में निखिल के होटल चल दी। क्या ये मेरी उससे आख़री मुलाक़ात थी? गाड़ी ट्रैफ़िक लाइट पर रुकी। मुझको पता नहीं क्या सूझा, सीधे जाने के बजाय मैंने गाड़ी लेफ़्ट मोड़ ली।

मुझे सौ गुलाब के फूल ख़रीदने थे! आपको पता है, लवर्स कितने बढ़ गए हैं आजकल याद शहर की पॉपुलेशन में? दो, पांच, आठ करके मैंने बीस फूलवालों के पास जाकर सौ गुलाब जोड़े और निखिल के होटल के दरवाज़े पर पहुंच गई। निखिल मुझे देखकर हैरत में पड़ गया। मैंने कहा, “निखिल, मैं इस वक़्त ज़िंदगी में मुश्किल जगह खड़ी हूं। तुम मेरे बेस्टफ्रैंड थे, और आज मुझे समझ आ गया है कि तुम ही मेरे बेस्टफ्रैंड हो। इसलिए हमेशा की तरह अपनी मुश्किल तुम्हारे पास लेकर आई हूं क्योंकि तुमसे बेहतर ख़ुद को मैं भी नहीं समझती हूं।

क्या तुम मुझसे अरेंज्ड मैरिज करोगे? मैं मम्मी-पापा को समझा लूंगी। तुमसे प्यार नहीं करती हूं लेकिन, मैं जानती हूं कि हर खूबसूरत अरेंज्ड मैरिज की तरह मुझे तुमसे प्यार हो जाएगा। क्या तुम मुझसे अरेंज्ड मैरिज करोगे?” निखिल दरवाज़ा पकड़कर मुझे कुछ देर तक देखता रहा। फिर बोला, “आई एम सॉरी! ये नहीं हो सकता, क्योंकि मैं तुम्हें तबसे आजतक तुम्हें बेतहाशा प्यार करता रहा हूं। ‘लव मैरेज’ के अलावा मुझे कुछ मंजूर नहीं…” बस इतनी सी थी यह कहानी…

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