Real Sad stories about love that makes you cry । True Sad Love story in Hindi
Sad stories about love
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कहानी का शीर्षक है:- लिफ्टमैन और वो लड़की
Sad stories about love in Hindi
पंद्रह मंज़िल की बिल्डिंग में साठ अपार्टमेंट थे। साठ
परिवार कम से कम ढाई सौ ज़िंदगियां। लेकिन इन
सबकी ज़िंदगी में एक धागा था, जो इन सबको जोड़ता
था। उनकी बिल्डिंग का तीस साल का लिफ़्टमैन श्याम।
जैसा कि नए हिंदुस्तान में अक्सर वर्कर्स को पड़ना पड़ता
है, श्याम भी दिन में बारह-बारह, चौदह-चौदह घंटे काम
करता था। लेकिन श्याम को कोई शिकायत नहीं थी, वो
खुश था। लकड़ी के एक ऊंचे स्टूल पर छोटा-सा कुशन
लगाकर बैठा क्रॉसवर्ड किया करता था। जी हां, हिंदी
का क्रॉसवर्ड उसका शौक़ था। पढ़ा-लिखा था वो। उधार
लेकर कॉरेस्पॉन्डेंस कोर्स की फ़ीस भरी थी।
आप तो जानते ही हैं दोस्तों, आजकल तो चपरासी की
नौकरी के लिए भी अक्सर ग्रैजुएट होना पड़ता है। कुछ-
कुछ करता रहा था लेकिन श्याम के मन में कई साल वो
लम्हा बसा रहा, जब वो पहली बार एक कंपनी में इंटरव्यू
देने गया था। सिलेक्शन तो नहीं हुआ था लेकिन उस दिन
वो पहली बार एक लिफ़्ट में चढ़ा था। सिक्योरिटी गार्ड
ने बताया था, “वहां जहां सब जा रहे हैं उस लिफ़्ट में
चढ़ जाओ” और उन्होंने बटन दबाया लोहे का चमचमाता
हुआ दरवाज़ा मक्खन की तरह खुला। श्याम ने सोचा
ये दरवाज़ा कहीं जाने का रास्ता होगा लेकिन सब लोग
पलटकर फिर उसी लोहे के चमचमाते हुए कमरे में दरवाज़े
की ओर मुंह करके खड़े हो गए। और अचानक वो हिलने
लगा। जब रुका तो वो चौथी मंज़िल पर पहुंच गए थे।
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वाह! भगवान की माया। वो दिन था जब श्याम ने
सोचा था कि भैया इस लोहे के कमरे में बटन दबाने
की नौकरी सब से बढ़िया नौकरी है। सर-सर्र अप-डाउन
करते रहो। और एक दिन सपना पूरा हुआ। याद शहर में
एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में उससे लिफ़्टमैन की नौकरी
मिल गई थी। इक्यावन रुपए का प्रसाद चढ़ाया था उस
दिन। बिल्डिंग के सारे लोगों के लिए श्याम जैसे घर का
मेंबर ही बन गया था। ‘श्याम होली पर घर जा रहा है
क्या?’ ‘श्याम क्रॉसवर्ड पूरा किया की नहीं?’ बस एक
रेगुलर पैसेंजर था, उसकी लिफ़्ट का जो उससे सेवंथ
कहकर फ़्लोर का नंबर बताने के अलावा कभी कुछ नहीं
कहता था। ये पैसेंजर थी एक खूबसूरत और रहस्यमय
मिस्टीरियस लड़की, जो अक्सर सातवीं मंज़िल पर एक
आदमी से मिलने आती थी। Sad stories about love
आपको लगता होगा कि श्याम कि नौकरी में काम
तो कुछ था नहीं। लिफ़्ट में अपने स्टूल पर बैठना और
बटन दबाते रहना। दोस्तों बारह-बारह घंटे छोटी-सी लिफ़्ट
में बैठना आसान काम नहीं होता। अकेलापन बड़े-बड़े
इस्तेहान लेता है। नींद आती है। ख्याल आते हैं, फ़ालतू
के ख्याल। कोई पुरानी याद। गांव छोड़कर नहीं आए
होते, तो आज जीवन कैसा होता। वो अतरौली वाले
मास्टर साब के बेटी से शादी न करके बड़ी ग़लती की।
मोटरसाइकिल तक देने को तैयार थे।
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Real Sad stories about love that makes you cry । True Sad Love story in Hindi
एक लिफ़्टमैन की जिंदगी एक तरह से काल कोठरी
में उम्रकैद काट रहे कैदी की तरह होती है। दिनभर आपके
सबसे क़रीबी साथी सिर्फ़ आपके ख्याल होते हैं। और
उस ऊंचे से स्टूल पर बैठकर जिंदगी का बस एक ही
नज़ारा होता है–अंक। बड़े से पैनल पर सजे हुए एक से
बारह मंज़िलों तक के नंबर। ऐसे में कोई लिफ़्ट में चढ़ता
है तो सुकून होता है। चलो कुछ देर के लिए तन्हाई तो
ख़त्म हुई। पास के ब्लू आइलैंड रेस्टोरेंट से दाल फ्राई,
चार परांठे और मशरूम की सब्ज़ी लाया लड़का ही सही।
श्याम कभी इस चीज़ को मानने को तैयार नहीं होता
लेकिन उसकी ज़िंदगी भी अकेलेपन से रोज़ की लड़ाई बन
गई थी। वो अक्सर सोचता था जो सामाजिक मूल्य, जो
वैल्यूज़ उसके पिता ने बचपन में सिखाए थे वो कहीं पीछे
ही छोड़कर आ गया था। लेकिन क्या करें? बड़ा शहर हम
सब लोगों के दिल में कहीं-कहीं पत्थर भर देता है।
श्याम अक्सर सोचता था कि वो रहस्यमय लड़की कौन
थी। खाली बैठे-बैठे श्याम के लिए उन दिनों की सबसे
बड़ी पहेली बन गई थी। इतनी खूबसूरत लड़की इतने
क़रीब से श्याम ने पहले कभी नहीं देखी थी। जब वो
लिफ़्ट में घुसती थी, तो लगता था जैसे हज़ारों-हज़ारों
ख़ुशबुएं किसी ने एक बड़ी-सी कढ़ाही से श्याम के ऊपर
उड़ेल दी हो। उससे बात करने का बड़े दिनों से बहाना
ढूंढ़ रहा था। जानना चाहता था कि 712 नंबर के फ़्लैट में,
जिसमें ये हर दूसरे-तीसरे दिन जाती थी, उसमें रहने वाले
आशीष अवस्थी की ये लगती क्या थी। बार-बार रात-रात
भर रुकती क्यों थी वहां।Sad stories about love
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एक दिन उसने मुंहफट होकर आख़िरकार पूछ ही
लिया। “मैडम आप आशीष जी की क्या लगती हैं?”
लड़की ने पलटकर कहा, “बकवास बंद करो और अपने
काम से काम रखो। “इडियट।” हज़ारों सालों से ये संसार
जिन क़ायदे-कानूनों पर चलता है, उनमें से एक ऐसा कानून
है जो सब पर लागू होता है। लखपति हो या किसान।
दुनिया में कोई भी मर्द किसी औरत के हाथों नीचा दिखाया
जाना बर्दाश्त नहीं कर सकता। हम मर्द औरतों को अपने
से नीचे प्रजाति जो समझते हैं। उस रहस्यमय औरत के
हाथों ऐसे दुत्कारे जाने पर श्याम तिलमिला गया था। एक
हीरोइननुमा लड़की, जिसके बारे में वो अक्सर सोचता था।
वो हीरोइननुमा लड़की उससे इतनी बुरी तरह से बात करेगी
वो ये सोच भी नहीं सकता था। सातवीं मंज़िल आ गई
लड़की बिना कुछ कहे लिफ़्ट से बाहर निकली।
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गुस्से से श्याम भन्ना रहा था। वो जानबूझकर कुछ देर तक रुका
रहा। लिफ़्ट के खुले दरवाज़े से ज़रा-सा सर निकालकर
देखता रहा कि माजरा क्या है। लड़की ने घंटी बजाई। कुछ
देर में दरवाज़ा खुला। आशीष अवस्थी की आवाज़ सुनाई
दी, “देर कर दी आज।” लड़की ने कहा, “हां सॉरी।”
दरवाज़ा बंद हो गया। Sad stories about love
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तिलमिलाए हुए श्याम ने लिफ़्ट रोकी। बाहर निकला,
इधर-उधर देखा दरवाज़े पर कान लगाए खड़ा रहा। कोई
आवाज़ नहीं आई। थोड़ी देर बाद वो वापस चला गया।
उस लड़की के शब्द बार-बार उसे याद आ रहे थे। बक़वास
बंद करो और अपने काम से काम रखो। इडियट। वो अपने
आपसे पूछ रहा था। इतना बड़ा पहाड़ क्या टूट पड़ा भाई
कि उसने इतनी बदतमीज़ी से बात करी। एक मासूम से
सवाल पर कोई इतना गुस्सा तो नहीं कर सकता न। ऐसा
क्या छुपा रही थी वो कि ऐसे काटने को दौड़ी थी। उस
दिन श्याम ने क्रॉसवर्ड नहीं किया। लिफ़्ट में लोग उससे
बातें करते रहे, उनसे रोज़ की तरह हंस के जवाब नहीं
दिया। बस ऊंचे स्टूल पर बैठे-बैठे अपने ख़ामोश तन्हा
दुनिया से सामने का नज़ारा देखता रहा। एक बड़ा-सा
पैनल, जिस पर एक से बारह तक गिनतियों के बटन लगे
थे। ‘इस औरत की ये मज़ाल कैसे हुई मुझसे ऐसे बात
करने की।’ श्याम सोच रहा था। ‘अमीर है, खूबसूरत है,
क्या समझती है दुनिया पर राज करती है? गुलाम हूं मैं?’
लंच टाइम पर वो दो चौकीदारों और बिल्डिंग के
कुछ नौकरों के साथ बैठा हुआ था, तो अचानक बोला,
“वो लड़की जानते हो न जो सातवीं मंज़िल के किराएदार
आशीष अवस्थी के घर आती है। बहुत गिरी हुई है। ग़लत
काम करती है।” श्याम ने जो देखा था, सुना था, जो घटा
था, उसके आधार पर अपने दोस्तों से कह दिया कि वो
लड़की चरित्रहीन थी। कई घंटे बीत गए। वो घर से बाहर
निकली। लिफ़्ट में घुसी रोज़ की तरह कुछ नहीं बोली।
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शायद उसके और श्याम के बीच में जो बात हुई थी, वो
उसे भूल चुकी थी। लेकिन श्याम नहीं भूला था। और
भूलने का इरादा भी नहीं था। गॉसिप का लेन-देन करने
वाले, किसी पुराने धुरंधर खिलाड़ी की तरह, उसने आंखों
के कोने से उस लड़की का मुआयना किया। क्या उसके
बाल बिखरे-बिखरे थे? क्या उसकी लिपस्टिक फैल गई
थी? क्या वो घबराई हुई थी? उसके मन में चोर था?
अजीब से होते हैं अनजान लोगों से हमारे सिलसिले।
दो घंटे पहले तक श्याम के लिए ये लड़की इज़्ज़त का
पात्र थी। जिससे अगर बातचीत शुरू होती तो वो उसे मैडम
कहता, शायद गुड इवनिंग कहता। लेकिन अब एक झटके
में उसने दो अजनबियों के बीच उस इज़्ज़त और लिहाज़
के महीन शीशे को तोड़ दिया था। एक लड़की जिसने
उसकी बेइज़्ज़ती की थी। वो तो अच्छा था कि उस वक़्त
लिफ़्ट में कोई और नहीं था। श्याम गुस्से और अपमान के
उस कड़वे चूंट को निगल नहीं पा रहा था। पांचवीं मंज़िल
वाली मिसिज़ अरोड़ा अपनी इवनिंग वॉक से वापस आईं।
रोज़ की तरह पूछा, “श्याम कैसे हो बेटा?” श्याम ने कहा,
“मैं तो ठीक हूं पर मैडम बिल्डिंग के हाल कुछ ठीक नहीं
हैं।” बोलीं, “क्या हुआ भाई। आज फिर पानी काट कर
रहे हैं क्या?” श्याम ने कहा, “नहीं मैडम पानी तो छोटी
चीज़ है। यहां तो कल्चर ही ख़राब हो रहा है। एक लड़की
देखी है, मैडम आपने सातवीं मंज़िल पर।” लिफ्ट चली
गई। उसकी कहानी पंखे की आवाज़ में गुम हो गई।
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मिसिज़ अरोड़ा ने घर जाते ही बारहवीं मंज़िल पर अपनी
दोस्त मिसिज़ ख़ान को बताया। मिसिज़ ख़ान ने अपने
बेटी रुख़सार को बताया। रुखसार ने शाम को बिल्डिंग के
बग़ल में कॉफ़ी शॉप में बैठकर तीसरी मंज़िल वाले सिंह
साहब की बेटी सिमरन को बताया। सिमरन ने घर जाकर
अपने बिस्तर पर पर्स फेंका और किचन में जाकर अपनी मां
को बताया और साथ में खड़ी उनकी कुक बिमला ने सुन
लिया। उसने जाकर दसवीं मंज़िल पर मिसिज़ अग्निहोत्री
को बता दिया। पूरी बिल्डिंग में गॉसिप की आग फैल
गई।Sad stories about love
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वो लड़की एक दिन बाद फिर बिल्डिंग में आई। बला
की खूबसूरत लग रही थी। लिफ़्ट में घुसते ही उसकी
ख़ुशबू के सैलाब ने श्याम को दफ़न कर दिया। लेकिन
वो कोशिश कर रहा था कि इस लड़की की खूबसूरती का
खंजर पूरी तरह उसकी सीने में न घुस जाए। जानबूझकर
अनजान बनकर बोला, “कौन-सा फ़्लोर?” लड़की ने
शायद उसे पहचाना भी नहीं बोली, “सेवेंथ प्लीज़।”
दरवाज़ा बंद होने को था कि तभी श्याम ने फिर खोल
दिया। दो लड़के दाखिल हुए। कॉलेज स्टूडेंट लग रहे थे।
और शायद उस लड़की के चर्चे उन तक पहुंच चुके थे।
उनमें से एक ने श्याम को आंखों से इशारा किया, जैसे कह
रहा हो यही है वो। श्याम ने आंखों ही आंखों हामी भरी।
उन्होंने लड़की को ऊपर से नीचे तक देखा। फिर उनमें से
एक ने अपना हाथ बढ़ाया और बोला, “एक्सक्यूज़ मी!
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हैलो माइसेल्फ़ लकी।” लड़की ने कुछ नहीं कहा, बस
शिष्टाचार से मुस्कुरा दी। सातवीं मंज़िल आ गई वो चली
गई। दूसरे लड़के ने हंसकर कहा, “ओये लकी तूने तो सेट
कर दी यार! कैसे मुस्कुरा रही थी। बड़ी फ़ास्ट है यार।
श्याम आज एक चौकन्ने जासूस की तरह ये जानने पर
उतारू था कि वो लड़की कब आशीष अवस्थी के घर से
निकलेगी और किस हाल में। उसे किसी को रिपोर्ट जो
देनी थी। पर बारह बजे वो घर चला गया। रात ना जाने
कब वो लड़की भी चली गई। सुबह आशीष के घर पर
घंटी बजी। आधी नींद में उसने दरवाज़ा खोला। गार्ड खड़ा
था। बोला, “आपको सोसाइटी ऑफ़िस में बुलाया है।”
आशीष पंद्रह मिनट में सोसाइटी ऑफ़िस पहुंच गया। वहां
पांच बुजुर्ग बैठे थे। एक ने कहा, “बैठिए मैं अमृत जोशी
हूं, सोसाइटी प्रेसिडेंट। बहुत दिनों से हम नोटिस कर रहे हैं
कि ये लड़की कौन है, जो आपके घर में आती है? रात-रात
रुकती है।” आशीष ने कुछ नहीं कहा। सोसाइटी प्रेसिडेंट
ने फिर कहा, “आपको नोटिस दिया जा रहा है। ये सब
यहां नहीं चल सकता। नेक्स्ट टाइम वो लड़की दिखी तो
पुलिस को इन्फॉर्म करना पड़ेगा और आपको सोसाइटी
छोड़नी होगी।”Sad stories about love
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आशीष घर वापस आ गया। लिफ़्ट में चढ़ा। श्याम
ने कहा, “क्या हाल साहब? आजकल तो दिखते नहीं।”
फिर वो अपनी बटन्स के पैनल की ओर देखकर जीत
के एहसास के साथ मुस्कराया और बोला, “दूसरा मकान
ढूंढ़ने के लिए ब्रोकर का नंबर चाहिए तो बता दीजिएगा।”
उस घटना को कई दिन बीत गए। श्याम की साधारण
सादी और बोरिंग ज़िंदगी में कुछ वक़्त के लिए जो उबाल
आ गया था, वो शांत हो गया था। कभी-कभी श्याम और
उसके दोस्तों के बीच उस मिस्टीरियस लड़की के बारे में
बात भी आ जाती थी। उसके दोस्त कहते, “अरे मिल गया
होगा कोई और मालदार…” फिर दोस्तों ने गौर किया,
“अरे उसका यार आशीष अवस्थी भी कबसे नहीं दिखा।
एक दिन शाम को एक टैक्सी बिल्डिंग के आगे रुकी और
सादे कपड़ों में वो लड़की उतरी। “हिम्मत तो देखो फिर
आ गई।” वो लिफ़्ट में चढ़ी। श्याम ने कहा, “आपका इस
बिल्डिंग में आना मना है।” उसने कोई जवाब नहीं दिया।
बस ख़ुद ही सात नंबर का बटन दबा दिया।
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आशीष के घर की चाबी उसके पास थी। वो अंदर
गई। कुछ देर बाद वापस आई तो लिफ़्ट में कोई नहीं
था। नीचे पहुंची तो श्याम ने सबको इकट्ठा कर लिया था।
सोसाइटी प्रेसिडेंट अमृत जोशी बोले, “आज तो फैसला
होकर ही रहेगा। बुलाइए आशीष को। हम पुलिस को
बुलाते हैं। धंधा नहीं होगा इस बिल्डिंग में।” श्याम ने
आशीष को फ़ोन लगाया। उस लड़की के बैग में एक फ़ोन
की घंटी बजने लगी। ये आशीष का फ़ोन था। बोली, “हां
ये लिफ़्टमैन सही बताता फिर रहा है आप सबको। मैं धंधा
करती हूं। डॉक्टरी है मेरा धंधा, मेरा पेशा। आशीष मेरा
बचपन का दोस्त है, था। Sad stories about love
कल रात हॉस्पिटल में उसकी मौत हो गई। एचआईवी
पॉजिटिव था वो। जीवन को स्वीकारा और मौत को भी
ख़ामोशी से गले लगाया। उससे एक डॉक्टर के नाते और
एक दोस्त के नाते तैयार कर रही थी, मैं पिछले कुछ
महीनों से उसकी नियति के लिए। आप लोगों को नहीं
बता सकता था वो, क्योंकि एड्स साथ बैठने से, बोलने से,
साथ खाने से नहीं फैलता है। लेकिन एड्स आप लोगों के
दिमागों में कब का फैल चुका है। उसे आप एक घंटे में इस
बिल्डिंग से निकाल देते। अब आप ख़ुश रह सकते हैं। मैं
उसकी कुछ चीजें लेने आई थी, जो उसके माता- -पिता को
भिजवाने के लिए कह गया था। घर एक हफ्ते में ख़ाली
हो जाएगा।” श्याम लिफ़्ट के पास खड़ा सुनता रहा। सब
चले गए बस वो लड़की रह गई। श्याम ने कहा, “मुझे माफ़
कर देना दीदी।” अगले दिन श्याम ने नौकरी छोड़ दी। सुना
है अब किसी और बिल्डिंग में सोसाइटी ऑफ़िस में काम
करता है। बड़ी मुश्किल से ऐसी बिल्डिंग ढूंढ़ी, जहां लिफ़्ट
नहीं है।