Sad stories about love । Love storybook in Hindi
कहानी का शीर्षक है:-धूप का कोना–पार्ट 3
- Read First-धूप का कोना–पार्ट 1
- धूप का कोना–पार्ट 2
शायर और इंतज़ार–ये दो छोकरे यूं तो पुराने यार हैं, लेकिन मेरा मानना है कि इन्हें एक-दूसरे के साथ एक ही कमरे में ज़्यादा वक़्त तक नहीं बैठना चाहिए। शायर कमज़ोरदिल होता है और इंतज़ार बेदर्द होता है।
हमारा कमज़ोरदिल हैंडसम शायर कबीर भी याद शहर में अपने बड़े से घर के छोटे-से कमरे में बैठा-बैठा इंतज़ार से बातें करते-करते थक गया था। हिना अपने कॉन्सर्ट के बाद जब उससे आखरी बार मिली थी तो कहा था कि वो जल्दी ही फ़ोन करेगी। उसे मुंबई बुला लेगी और दोनों शादी कर लेंगे।
लेकिन उस फ़ोन कॉल का इंतज़ार ऐसा बन गया था जैसे मौत जिंदगी का इंतज़ार कर रही हो। कबीर को जरा भी इल्म नहीं था कि मुंबई में हिना के साथ कैसा भयंकर हादसा घट चुका था। उससे जलनेवाली एक और सिंगर ने उसे मिठाई में सिंदूर मिलाकर दे दिया था और उसकी आवाज़ चली गई थी।
हफ़्ते बीत गए। कबीर फ़िक्र के दलदल में डूब रहा था। क्या हो गया होगा? तबीयत तो ठीक होगी उसकी? उसके मां-बाप ने ज़्यादती तो नहीं कर दी होगी कोई उसके साथ? अहमद से फ़ोन मिलवाया। उसे भी बताया गया कि हिना फ़ोन पर नहीं आ सकती। फिर एक दिन बताया गया कि वो बिज़ी हैं। फिर एक दिन कहा गया कि इस नाम का
यहां कोई नहीं रहता और आप क्यों बार-बार फ़ोन करके तंग करते हैं! सच था ये। उस नाम की वहां कोई नहीं रहती थी। उस नाम की लड़की तो उस पीर की मज़ार के सामने याद शहर में रहती थी, जहां वो आख़री बार अपने शायर से मिली थी।
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फ़िक्र कभी-कभी झुंझलाहट और गुस्से में बदल जाती थी। क्या हिना इतने हफ़्तों में पांच मिनट का वक़्त भी नहीं निकाल पाई कि फ़ोन करके बता थे कि वो खैरियत से है? कबीर की तबीयत बिगड़ने लगी। कभी कॉलेज जाता था, कभी नहीं। मुशायरों में आने का न्योता आता था तो मना कर देता था।
ऐसा लगता था जैसे एक शायर की मौत हो गई थी। एक दिन सब्र का धागा टूट गया। अख़बार के ग्यारहवें पन्ने पर हिना की फ़ोटो छपी थी। वैसे ही चमक-दमक के साथ किसी स्टेज शो में गाना गाते हुए।
Sad stories about love
कबीर का खून खौल गया। इसका मतलब था हिना एकदम ठीक थी और फिर भी खुद को उसकी ज़िंदगी से निकाल चुकी थी? अख़बार को फाड़कर फेंक दिया और ख़ुद को वचन दिया कि जितने प्यार से उसको प्यार किया वैसे ही नफ़रत करेगा और जिस मुकाम का उसे घमंड है, उससे भी बड़ा मुकाम हासिल करके दिखाएगा।
जैसे किसी मछली को पानी से निकाल दिया जाए, जैसे किसी किसान की फ़सल जला दे कोई, जैसे किसी वैज्ञानिक का बरसों की मेहनत के बाद किया गया आविष्कार कोई उससे छीनकर ले जाए–ऐसा ही लगता होगा एक गायिका को, अगर उसकी आवाज़ चली जाए।
हिना को ऐसा लग रहा था जैसे कोई भयानक ज्वालामुखी अभी फट पड़ा था और वो उससे फूटते लावा की नदियों के सीधे रास्ते में खड़ी थी–धधकती, दहकती आग अपने बदन पर लपेटे और उफ़्फ़ तक ना कर पा रही हो।
शादी की उस रात जब उसकी आवाज़ चली गई थी तबसे हज़ार बार मुंह खोलकर उसने बोलने की कोशिश की थी, आलाप लेने की कोशिश की थी, चीख़ने की कोशिश की थी।
बस इतनी-सी आवाज़ आती थी कि जैसे आवाज़ का कोई ख़ाली कुंआ हो और उसकी तह में कोई फावड़ा लेकर ज़ोर-ज़ोर से खुरच रहा हो। शायद मजबूरी का सबसे आख़री मुक़ाम होता होगा ये, जब कोई रोना चाहे और रो ना सके। एक चीख़ तक ना निकल पाए।
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इस पूरे क़िस्से में हिना के मां-बाप का किरदार बड़ा अजीब, बड़ा जल्लादों जैसा था। हिना को तो ये सिंदूर की कहानी मालूम ही नहीं थी। उसे तो बस इतना पता था कि एक शाम उसकी जिंदगी से उसकी आवाज़ चली गई थी।
पहले कई दिन तो मां-बाप यक़ीन करने से इंकार करते रहे कि उनकी बेटी जो कागज पर लिखकर उन्हें बताना चाह रही थी, वो सच भी था।
“क्या ड्रामा है ये”, उसके पिता उससे अक्सर कहते थे और फिर उसकी मां से हिना के सामने ही कहते, “ये और कुछ नहीं कर रही है, बस ब्लैकमेल कर रही है। ये बताना चाह रही है कि अगर ये गाएगी नहीं तो हम घुटनों पर आ जाएंगे।
ये शायद भूल गई है कि हमने इसके लिए क्या-क्या किया है?” और वक़्त बीता तो उनको लगने लगा कि उनकी बेटी अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठी है। लेकिन उसके लिए ज़रूरी था कि ये राज उन दोनों अलावा कहीं और ना पहुंचे।
इवेंट ऑर्गनाइजर्स से उसके पापा आनेवाले दर्जनों स्टेज शोज के एडवांस ले चुके थे। जब तक हिना की आवाज़ ठीक हो तब तक इस झूठ को फैलाया जाना ज़रूरी था कि सब ठीक था।
एक दिन उन्होंने किसी पुराने पत्रकार मित्र से कहकर एक न्यूज़ एजेंसी से एक पुरानी तस्वीर रिलीज़ करवा दी जिसमें हिना स्टेज़ पर गा रही थी। ये वही तस्वीर थी जिसे याद शहर में एक लोकल अख़बार में देखकर कबीर आगबबूला हो गया था।
अख़बार में वो तस्वीर देखकर हिना अपने कमरे में चली गई थी और दरवाज़ा बंद कर लिया था। बड़ी देर बाद उसके मां-बाप अचानक चौंक गए। अंदर कमरे में हिना अपना एक पुराना गीत गा रही थी।
भागकर अंदर गए तो देखा, हिना ज़मीन पर बैठी बाल खोले बेतहाशा रो रही थी और उसके बगल में म्यूज़िक सिस्टम पर उसी का एक पुराना गीत चल रहा था। कुछ लोग कहते हैं कि गुस्सा अंधा कर देता है, लेकिन कबीर को लग रहा था कि गुस्से ने उसकी आंखें खोल दी थीं।
वो ये मानकर बैठा था, और सच कहूं तो उसके पास ये मानने का कारण भी था कि हिना ने उसको धोखा दे दिया था। प्यार जताकर, शादी का वादा करके, सितारों से झिलमिलाती अपनी दुनिया में गुम हो गई थी।
अहमद ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की। लेकिन कबीर हिना की मोहब्बत में इतना झुलस चुका था कि अब बातों का मरहम उसका इलाज नहीं कर सकता था। एक दिन अहमद उसके घर गया तो मेज़ पर ट्रेन का एक टिकट रखा था।
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कबीर ने कहा, “मैं कल सुबह मुंबई जा रहा हूं। वही ट्रेन पकड़कर, जिसमें बैठकर वो लड़की मुझे छोड़कर चली गई थी। मैंने फिक्स्ड डिपोजिट तो तोड़ ही लिए थे, अब नेहरू नगर का अपना छोटा-सा फ़्लैट भी बेच दिया है।
याद शहर में अब जी नहीं लगता मेरा। मैं बर्बाद होने जा रहा हूं।” ट्रेन का वो बारह घंटे का सफ़र ऐसे कटा जैसे कई सदियां पैदल चलकर पार की हों। मुंबई के वीटी स्टेशन पर उतरा तो लगा कि एक समंदर है और वो एक नौसिखिया तैराक, जिसे किसी ने उठाकर बीचोंबीच फेंक दिया हो।
जो सफ़र वो प्यार में तय करने वाला था, वो सफ़र आज उसने नफ़रत में तय किया था। एक छोटा-सा सूटकेस लेकर घंटों सड़क पर टहलता रहा–एक पागल फ़क़ीर की तरह, एक भटके हुए मुसाफ़िर की तरह। ना रहने का ठिकाना था, ना रोजी का।
एक दोस्त था जिसके घर कुछ दिन रहा। कबीर उसके बाद नौकरी ढूंढ़ने लगा। कॉलेज के बच्चों को शेक्सपियर और बायरन पढ़ाने वाला सबका चहेता टीचर अब एक स्क्रिप्टराइटर, लिरिक राइटर–कोई भी काम ढूंढ़ रहा था।
प्यार से नफ़रत करने वाला शायर, जो कभी एक अनोखी लड़की के प्यार में कैद होकर रोज़ प्यार के खूबसूरत शेर लिखने लगा था, वो अब उस शायरी को पेशा बनाने जा रहा था।
म्यूज़िक डायरेक्टर्स से मिलने लगा। प्रोड्यूसरों के ऑफ़िस के पते मालूम करने लगा। लेकिन एक और पता था, जो उसकी जेब में रूलदार काग़ज़ पर फ़ाउंटेन पेन से लिखा था, जिसे मोड़कर कभी उसने अपने पर्स में ड्राइविंग लाइसेंस के पन्नों के बीच रख लिया था। हिना का पता। उसकी खोई हुई ज़िंदगी का पता।
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उसकी नफ़रतों ने फैसला किया था कि किसी दिन वो किसी लायक़ बन जाएगा तो उस पते पर कुछ सवाल पूछने जाएगा। वो काग़ज़ का टुकड़ा हाथ में लिए अक्सर हाजी अली की दरगाह में बैठा रहता था। ये जानता नहीं था कि सैकड़ों किलोमीटर दूर याद शहर में उसकी दराज़ में हिना की भेजी हुई सोलह चिट्ठियां पड़ी थीं जो उसे कभी मिली ही नहीं।
कुछ और महीने बीत गए। कौन जाने बीतते वक़्त के साथ हिना और कबीर के दिलों में एक-दूसरे के लिए उनकी मोहब्बत का क्या हाल था। तकलीफ़ प्यार को अक्सर और भी रवां कर देती है, सोने को कुंदन बना देती है।
हमने तो यही सुना था कि दूरियां असल में आशिक़ों की नज़दीकियां होती हैं। लेकिन कबीर हिना को अपनी जिंदगी का वो पन्ना मान चुका था जिस पर उसने जान-बूझकर भूलने की काली स्याही उड़ेल दी थी। ये अलग बात थी कि उस काली स्याही से मिलकर उस पन्ने पर लिखे हर्फ़ और भी साफ़ उभरकर आ गए थे।
इस बीच कबीर की ग़ज़लों की डायरी के पन्ने भी फ़िल्म इंडस्ट्री के कई नामचीन लोगों को पसंद आने लग गए थे। बांद्रा के एक इलाके में, जहां हिना अपने गले का इलाज कराने जाती थी, उससे कुछ ही किलोमीटर दूर एक म्यूज़िक डायरेक्टर के ऑफ़िस में एक दिन कबीर की ग़ज़ल उसके पहले फ़िल्मी गाने के रुप में चुन ली गई।
“मेरी गली में आकर मेरा हाल पूछ लेना हर रोज़ मुस्कुराकर मेरा हाल पूछ लेना। क़िस्मत का फेर तो देखिए, ये वही ग़ज़ल थी जो याद शहर के मछली मोहल्ले में गली नंबर सत्ताइस बटा ग्यारह में एक बड़े से मकान के एक छोटे-से कमरे में बैठकर, एक पागल आशिक़, एक हुनरमंद शायर ने अपनी माशूका केलिए लिखी थी।
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कबीर उस दिन देर रात तक मरीन ड्राइव पर समंदरके किनारे रौशनी से जगमगाते शहर को अकेला बैठादेखता रहा। उसे नहीं मालूम था कि इन जगमगाती, झिलमिलाती, चमचमाती रौशनियों के जंगल में कहीं दूरएक छोर पर गहरे अंधेरों में लिपटा एक ख़ामोश दर्दभराकमरा था जो एक धूप के कोने की राह देखते-देखते हमेशाके लिए ख़ामोश हो गया था।
ये साल हिना की जिंदगी का शायद सबसे बुरा साल था। ना जाने कितने डॉक्टरों के लिए वो एक नुमाइश,एक अजायबघर बन गई थी। डॉक्टरों की दवाओं का कोईअसर होता दिख नहीं रहा था और अब शायद हिना भीउम्मीद और नाउम्मीदी की जंग में उम्मीद का साथ छोड़चुकी थी। मां-बाप में भी झगड़े होने लग गए थे।
कभी-कभी यादशहर जाने की बात भी चल पड़ती थी लेकिन फिर उन्हें येलगता था कि अब क्या मुंह लेकर वहां वापस जाएंगे?ऐसे में एक दिन हिना एक डॉक्टर के क्लीनिक में बैठीअपनी बारी का इंतज़ार कर रही थी कि सामने टेबल पर रखे T.V. पर एक नई फ़िल्म का नया गीत बजने लगा।
हिना की आंखें छलक पड़ीं। उसने शरमाकर नज़रें हटालीं। एक सैकंड में सब समझ गई। सामने फ़र्श पर थोड़ी-सी खुली खिड़की से छनकर ज़मीन पर एक धूप का कोनाबन गया था। कबीर का पहला गाना हिट हो गया था। हरकाउंटडाउन में चढ़ रहा था। हर T.V. चैनल पर दिख रहाथा। हर बाथरूम, हर गाड़ी, हर नुक्कड़ पर गुनगुनाया जारहा था।
लेकिन इन सबसे कबीर को कोई फ़र्क नहीं पड़ रहाथा। वो अपनी ग़ज़ल किसी को बेचने नहीं आया था।लाखों अनजाने चेहरों के शहर में वो ग़ज़ल सिर्फ एकजाने-पहचाने चेहरे को सुनाने के लिए आया था।कबीर ने खुद को यक़ीन दिला दिया था कि वो हिना सेनफ़रत करता था, लेकिन शायद उसके प्यार ने कभी इसयक़ीन पर यक़ीन ही नहीं किया था।
ये ग़ज़ल शायद एकसंदेसा था जो भीड़ में गुम हिना के नाम उसने भेजा था। याशायद वही सच था जो कबीर ख़ुद से कहता था कि हिनाको भूल चुका था। उससे नफ़रत करता था।उसने याद शहर छोड़ते वक़्त ख़ुद से वादा किया था किअगर ये हिना का गुरुर था जिसने उसे कबीर से दूर कियाथा तो वो उस गुरूर को तोड़ देगा। जब उसका मुक़ाम हिनासे ऊंचा होगा तो वो उसके दरवाज़े पर जाएगा और पूछेगाकि तुमने ऐसा क्यों किया?
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आज उस दरवाज़े पर जाने का वक़्त आ गया था। हाजी अली की दरगाह के सामने समंदर के किनारे सड़क पर खड़े होकर उसने अपने पर्स से ड्राइविंग लाइसेंस के पन्नों के बीच मुड़ा रखा रूलदार काग़ज़ पर फ़ाउंटेन पेन से लिखा हुआ वो पता निकाला जो उसके आने का कबसे इंतज़ार कर रहा था।
कबीर ने एक टैक्सी पकड़ी और अपनी खोई हुई ज़िंदगी के पते पर चल पड़ा। ट्रैफ़िक के शोर भरे रास्तों से, फ़िल्म स्टारों के बंगलों के सामने से, संकरे बाज़ारों से होता वो खिड़की से बाहर देख रहा था तो सामने माया की नगरी मुंबई नहीं थी, उसकी आंखों के सामने याद शहर था।
सिविल लाइंस के पास वाला परेड ग्राउंड था, जहां एक आलीशान स्टेज सजा था और स्टेज के पीछे ग्रीन रूम में एक नाराज़ शायर एक खूबसूरत लड़की से पूछ रहा था कि तुम कौन हो? उसकी आंखों के सामने मछली मोहल्ले में गली नंबर चौबीस बटा ग्यारह के एक बड़े से मकान के एक छोटे से कमरे के बाहर चांदनी में धुली एक बालकनी थी, जहां खड़े होकर वो हिना का पहला ख़त पढ़ रहा था।
पंद्रहवीं मंज़िल पर वो लिफ़्ट से बाहर निकला, हिना का दरवाज़ा खटखटाया, नौकर ने खोला और बोला, “साहब-मेमसाब नहीं हैं। आप कहां से आए हैं?” कबीर ने कहा, “याद शहर से।” नौकर ये कहते हुए अंदर चला गया, कोई याद शहर से आया है।
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कबीर इधर-उधर देखने लग गया। नज़र उठाई तो सामने हिना खड़ी थी। पर अगर ये अच्छा वक़्त होता तो दौड़कर कबीर और हिना ने एक-दूसरे को गले से लगा लिया होता। पर ये अच्छा वक़्त नहीं था। दो पुराने प्रेमी आंखों में सैकड़ों सवाल लेकर एक-दूसरे से मिल रहे थे।
हिना ने कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला, आवाज़ नहीं निकली। फिर कोशिश की। शायद सोच रही थी कि उसकी अंधेरी ज़िंदगी में उसका धूप का कोना वापस आ गया था तो अपने आप सब जादू से ठीक हो जाएगा।
हिना रोती हुई कबीर से लिपट गई और एक पल में कबीर का सारा गुस्सा, नाराज़गी, सवाल, दूरियां–सब जलते मोम की तरह पिघल गए। हिना लगातार कुछ बोलना चाह रही थी, सैकड़ों चीजें बताना चाह रही थी पर कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी।
बस आंखों से दर्द बह रहा था। कबीर ने हाथ पकड़कर उसे सोफे पर बिठाया। हिना ने सामने रखा एक सफ़ेद लैटर पैड अपनी ओर खींचा और अपनी कहानी बताने लगी। आंसुओं में भींगी आंखों से कबीर उसे और लैटर पैड को बेबसी से देख रहा था। हिना जल्दी-जल्दी उसे सारी बातें बता देना चाहती थी। उसके मां-बाप कभी भी आ सकते थे।
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हिना ने कबीर से वादा किया था कि कभी बारिश में भीगी छत पर बैठकर वो एक साथ कबीर के लिखे हुए शेर पढ़ेंगे, एक साथ हंसेंगे। ये वो शाम नहीं थी और शायद इसमें उस शाम से भी ज़्यादा प्यार की गहराई थी। थोड़ी देर के बाद कबीर हिना से काग़ज़ के कुछ पन्ने लेकर चला गया। कुछ वक़्त बाद हिना के मां-बाप घर आ गए।
कुछ सफ़ेद लैटर पैड के पन्ने मेज़ पर थे जो हिना हटाना भूल गई थी। उसके मां-बाप ने पन्ने उठाए और पढ़ने लगे। कुछ ही पलों में सारी कहानी समझ गए। चीख-पुकार मच गई। एक बार फिर ये घर जल्लादों का घर बनने जा रहा था। शायद हाथ उठने ही वाला था कि दरवाज़े पर घंटी बजी।
हिना के पापा ने दरवाज़ा खोला तो सामने एक महिला पुलिस ऑफ़िसर खड़ी थी। उसके हाथ में हिना के हाथों लिखी हुई, कबीर के हाथों पहुंचाई हुई एक शिकायत थी।
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महिला पुलिस अफ़सर ने कहा, “आपकी बेटी ने कम्पलेंट की है कि आप उसे मारते-पीटते हैं।” हिना के मां-बाप एक कोने में दुबककर बैठ गए। आधे घंटे बाद उन्हें एक चेतावनी देने और सुबह पुलिस स्टेशन आने का ऑर्डर देने के बाद ऑफ़िसर चली गई।हिना उठी और उसने काग़ज़ में चार-पांच लाइनें लिखीं।
“पापा, मैं जा रही हूं कबीर के साथ। मुझे अपनी आवाज़ वापस मिल गई है। मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए। मैं आपसे सिर्फ अपनी ज़िंदगी लेकर जा रही हूं। हिना बाहर निकली, बिल्डिंग के बाहर पहुंची जहां कबीर उसका इंतज़ार कर रहा था। दोनों एक टैक्सी में बैठे। कबीर ने कहा, “रेलवे स्टेशन चलिए।”
कबीर ने अपनी घड़ी देखी। याद शहर की ट्रेन दो घंटे में छूटने वाली थी।
बस इतनी सी थी यह कहानी…आपको यह Sad stories about love कैसी लगी हमें कमेंट करें।Follow Me:-
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