A romantic short love story in Hindi to read online for free
कहानी का शीर्षक है-छह फेरे पार्ट 1
Short love story Cheh Phere part-1 in Hindi Romantic love story
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आप पढ़ रहे है मेरी diary से Chhah phere romantic love story in Hindi इसका पहला पार्ट Diwali Ki Raat Short Emotional story भी पढ़े :- Click here
दीवाली की अगली सुबह थी। मैं कितने सालों बाद इतने इत्मीनान से घर आ पाया था। रातभर मां-पापा से बातें की थीं। छुटकी के ताने सहे थे और ख़ुद को वचन दिया था कि अब हर दूसरे महीने आया करूंगा घरवालों से मिलने याद शहर। झूठा कहीं का।
मैं जानता था, बड़े शहर जाते ही मैं फिर से घड़ी की सूई बन जाऊंगा, जो रोज़ उसी रास्ते पर बेमक़सद, बेमुरव्वत दौड़ती रहती है, बिना रुके, बिना सोचे-समझे या शायद बहुत ही सोची-समझी ज़िंदगी जी रहा हूं मैं। जैसे ज़िंदगी गणित हो–मैथेमैटिक्स–या फिज़िक्स का इक्वेशन।
मैं ऐसी ज़िंदगी नहीं जीना चाहता था। मैं चाहता था ऐसी ज़िंदगी, जिसमें दशहरे के मेले का शोर हो, जिसमें 412 नंबर बस फिर से मिस कर देने की झुंझलाहट हो, जिसमें लोटेवाले की जलेबी की मिठास हो, जिसमें गर्मी की दोपहर में उसके इंतज़ार का सन्नाटा हो, जिसमें उसकी बेमतलब, बेसाख़्ता, बेपरवाह हंसी की खनक हो।
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लेकिन मेरी ज़िंदगी सिर्फ मैथ्स का इक्वेशन बनकर रह गई थी। नम्रता की शादी हो रही थी। इतने सालों ख़ामोशी से, बेवकूफ़ी से उसको प्यार किया, भूले शहर की मेरी वो पड़ोसन किसी और शहर में किसी और की पड़ोसन बनने जा रही थी। मैं जानता था, मैं उसकी शादी में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाऊंगा। लेकिन एक बार उसका चेहरा देखे बिना शहर छोड़ने का दस्तूर भी तो नहीं है।
मैंने मां को आवाज़ देकर कहा, “मां परांठे मत सेंको। मैं आकर नाश्ता करूंगा।”सात मिनट बाद, मैं उसी पुराने लकड़ी के दरवाज़े के सामने नम्रता की दहलीज़ पर खड़ा था। शास्त्रों में लिखा है, कोई पत्थर से ना मारो मेरे दीवाने को… लेकिन वो शास्त्रों को मानती ही कहां थी? दरवाज़ा खोला। स्वागत ना आवभगत। दुआ ना सलाम। गु़स्से के कंकड़ आंखों से बरसाने चालू कर दिए। बोली, “घड़ी ठीक करवाकर आने में तीन साल लगते हैं?” यही तो कहकर गया था मैं। बस अभी आया। शहर छोड़ रहा हूं, ये उसे बहुत वक़्त तक बता ही नहीं पाया और जब बताया, वो मुझसे छूट चुकी थी।
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कुछ भी तो नहीं बदला था इस घर में, जहां मैं एक शर्मीला आशिक़ अपने दिल की बात छुपाए कितनी शामें बिताता था। ड्रॉइंग रूम में सामने नम्रता की डिबेटिंग की ट्रॉफ़ी, अंकल की रिटायरमेंट के दिन की तस्वीर, एक गुलदस्ते में प्लास्टिक के फूल…
शुक्ला अंकल अंदर से आए। सब्ज़ी का थैला लेकर बाज़ार जा रहे थे। बोले, “अरे, तुम्हारी ख़ैर नहीं है अब। इतने दिन क्यों नहीं आए? इसका पूरा हिसाब अब थानेदार साहिबा को देना पड़ेगा।” अंकल के जाते ही मुझे लगा जैसे मैं और वो फिर कॉलेज में थे और हिस्ट्री की क्लास साथ में बंक करके आए थे। मैंने कहा, “सुना शादी कर रही हो? कॉन्ग्रैचलेशन्स।” वो बोली, “प्याज़ के पकौड़े खाओगे?” मैंने उसकी आंखों में देखा और बोला, “तुम ख़ुश हो ना?”
वो कुछ पल ख़ामोश रही, फिर बोली, “तुमने कभी कह के तो देखा होता।” मैंने कहा, “कहना बहुत चाहा।” वो बोली, “तुम बस चाहते ही रहना, कुछ करना मत। तुम्हारे साथ छह फेरे लेने के बाद, मैं पिछले तीन साल तक सोचती रही कि शायद तुम्हें आख़री फेरा याद आ जाएगा। मैंने कहा, “छह फेरे?” उसने कहा, “दूल्हा काफ़ी भुलक्कड़ है।” romantic love story in hindi
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पास में कहीं प्राइमरी स्कूल की छुट्टी हो रही थी। वहीं कानफोडू घंटी फिर बज रही थी। स्कूल की बसों का शोर, आइसक्रीम और चाटवालों की चीख़-पुकार, साइकिल की घंटियां, बच्चों की हंसी, पर वो मेरे मोहल्ले की सबसे बातूनी लड़की अचानक चुप हो गई थी।
इसे भी पढ़े- मैंने अकेले में, ये सोचकर कि कोई देख नहीं रहा है, कॉलेज केदिनों के टाइप का छोटा-सा ख़ुशी का डांस किया तो पीछेसे बॉस की हंसी सुनाई पड़ी। खड़े-खड़े देख रहे थे। बोले,“कॉन्ग्रेचलेशंस! तुम ये सब डिज़र्व करती हो। आज जल्दीघर चली जाना और पार्टी करना… सारी रात… बॉयफ्रेंडके साथ।
मैंने फिर से कहा, “छह फेरे?” वो आख़िरकार बोली, “नरेंद्र की शादी के एक दिन पहले हम मनीषनगर मार्केट गए थे। मेरी मोपेड ख़राब हो गई थी और मैंने तुम्हें अपनी बाइक पर मार्केट ले जाने के लिए कहा था। क्रिकेट का मैच था, फिर भी तुमने ना नहीं कहा। मैंने वर्मा सूट भंडार से साड़ी के फॉल ख़रीदे, दुकानदार से दस-दस रुपए के लिए झक-झक की और जब तुम हंसने लगे तो तुम्हें घूरकर चुप कराया।romantic love story in hindi
मैं फिरोज़ाबाद बैंगल स्टोर में एक घंटे चूड़ियां ही ख़रीदती रही। हर रंग पर तुम्हारी सलाह मांगी। पूजा सामग्री की दुकान से हवन का सामान ख़रीदा। लाल धागा, रोली, गणेशजी की आरती की किताब, चंदन, अगरबत्ती का पैकेट। फिर अग्रवाल स्वीट्स में तुम्हें छेने का रसगुल्ला चखाया। तुम्हें पसंद था, इसलिए दो किलो पैक कराया। बाद में तुम्हारे चक्कर में डांट भी खाई क्योंकि रसगुल्ले नहीं, मुझे मोतीचूर के लड्डू लाने थे।
फिर फलों की दुकान से फलों की टोकरी बंधवाई औरै तुमसे बिना मतलब यूं ही पूछा, “तुम्हें नाशपाती ज़्यादा पसंद है या चीकू?” फिर चाट खाने की ज़िद की और तुम्हें खींचकर ले गई। दो-दो प्लेट टिक्की खाई, एक-एक प्लेट गोलगप्पे और मज़े लेकर तीखा पानी पिया, वहीं वर्मा सूट के साथ वाली दुकान में। वो हमारा पहला फेरा था। मैं जैसे अपने दिल की धड़कन महसूस ही नहीं कर पा रहा था। वो चाय के कप्स लेकर किचन में गई, मैं पीछे-पीछे चलता रहा।
कप धोते हुए बोली, “याद है मां ज़िद करती थी, मैं सोमवार का व्रत रखूं? कहती थीं अच्छा पति मिलेगा। तुमको ना जाने क्यों मेरे व्रत से बड़ी दुश्मनी थी। शायद चाहते ही नहीं थे कि अच्छा पति मिले। एक दिन तुमने गु़स्से में कहा, “मैं भी चलूंगा मंदिर। देखूं तो, कैसे मिलता है अच्छा पति? बोली, “तुम शायद मेरे और मेरे अच्छे पति के बीच में अड़ंगा लगाना चाहते थे। मैंने कहा, “मुझे तुम्हारा अच्छा पति ढूंढ़ने से कोई परेशानी नहीं थी। तुम दिनभर भूखी रहती थी, इससे परेशानी थी।” वो बोली, “एक बार कहके तो देखा होता। इतनी परेशानी नहीं उठानी पड़ती।
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Short Emotional romantic love story in Hindi Kahani
“मंदिर में हमने फूलवाले के पास चप्पलें उतारीं, हैंडपंप पर हाथ धोए, गेंदे के फूल ख़रीदे और मैं अपने कई भगवानों से डील करने निकल पड़ी। हनुमान जी के छोटे-से मंदिर से होते हुए, शिवलिंग पर जल चढ़ाकर, दुर्गाजी की मूर्ति पर माथा टेकने के बाद, दान पात्र में ग्यारह रुपए डालने के बाद, फूलवाले से फिर अपनी चप्पलें वापस लीं। ये हमारा दूसरा फेरा था।
“दो महीने बाद होली की शाम, मेरे हाथों की बनी गुझिया खाने मैंने तुम्हें ज़बरदस्ती घर बुलाया। तुमने झूठी तारीफ़ की। किचन में पानी पीने गए, मैं पीछे से प्लेट रखने आई। फिर तुम्हें ना जाने क्या हुआ कि तुमने मुझे जोर से बांहों में जकड़ लिया। पहली बार तुम्हारी बांहों ने हमारी नज़दीकियों को नाप लिया था। ये था तीसरा फेरा। romantic love story in hindi
मुझे और चाय पीने का मन था, लेकिन उसे अपने पापा का कुर्ता प्रेस करना था। बोली, “ख़ुद ही बना लो।” मैं अदरक छिलने लगा, वो किचन के सामने टेबल पर प्रेस करते हुए बोली, “याद है वो लड़की जो तुम्हें हर दूसरे दिन चिट्ठी लिखा करती थी? क्या नाम था उसका? मेघा। मैंने कहा, “पेन फ़्रेंड थी मेरी। लेकिन तुम कितना जलती थी उससे।” वो बोली, “जलती क्यों नहीं? इतनी बड़ी-बड़ी आंखें और लंबे-लंबे बाल जो थे उस चुड़ैल के। याद है जब पहली बार उसने अपनी फ़ोटो भेजी थी? तुम मेमने की तरह उसकी फ़ोटो निहार रहे थे और मैं उसे छीनकर भाग गई थी।
“तुम मेरे पीछे भागे, डाइनिंग टेबल के बगल से, फिर किचन में आंटी को रास्ते से हटाते हुए, पीछे के दरवाज़े से लॉन में, गुलाब की क्यारियों के पास, पीपल के पेड़ के बगल से… तुम्हारे चक्कर में छोटू की साइकिल भी गिर गई थी। “फिर वापस आकर तुम्हारे कमरे में हांफते हुए बेड पर धम्म से बैठ गई थी। तुमने गु़स्से में वापस फ़ोटो छीन ली थी। वो हमारा चौथा फेरा था।“
मेरे बर्थडे पर हम सब अप्पू घर गए थे। मैंने ज़िद की कि मैं मैरी-गो-राउंड पर बैठूंगी। कोई और जाने को तैयार नहीं हुआ। “फिर तुमने कहा, चलो मैं चलता हूं। “जैसे ही झूला चलने लगा, मुझे चक्कर-सा आ रहा था। मैं डर गई थी। तुमने सबसे नज़र चुराकर मेरा हाथ पकड़ लिया था। वो हमारा पांचवां फेरा था।”romantic love story in hindi
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“फिर तुम चले गए। उसके पिछले दिन लोहड़ी थी। त्योहार के दिन मैं कितना रोई थी। मोहल्ले के सारे लोग लोहड़ी की परिक्रमा कर रहे थे और आग के चारों ओर चलते हुए मुझे सिर्फ़ तुम्हारा चेहरा दिख रहा था। तुम मुझसे नज़रें चुरा रहे थे, उस मुसाफ़िर की तरह जो अपनी हमसफ़र को लंबे रास्ते पर पैदल चलता छोड़कर ज़िंदगी की किसी नई बस पर सवार हो गया हो। तुम एक नया सफ़र शुरू करने जा रहे थे और मेरा रास्ता जैसे ख़त्म हो रहा था। वो हमारा छठा फेरा था।”
छह फेरे! सबकुछ याद था उसे! जैसे उन लम्हों की उसने गांठ बांधकर रख ली हो। मैं अफ़सोस के समंदर में जैसे धीरे-धीरे डूबता जा रहा था। सोच रहा था कि ख़ुद के अलावा किसको ब्लेम करूं? काश हम लोग भी औरतों की तरह रो सकते। काश अपनी तकलीफ़ें ख़ामोशी में दफ़न नहीं करनी पड़तीं।
पांच बजने वाले थे। सर्दी की शाम मेरे चेहरे से लिपट रही थी। उसे खो देने का अहसास इतना गहरा था कि और कुछ महसूस ही नहीं हो रहा था। उसने दूर सड़क पर देखा। उसके पापा वापस आ रहे थे। मैं जानता था कि ये कुछ लम्हे मेरे और उसके बीच के आख़री लम्हे थे। शुक्ला अंकल सब्ज़ी का थैला लेकर सीढ़ियों पर पहुंच गए थे।romantic love story in hindi
अचानक मैंने उसकी उंगलियों को अपनी उंगलियों पर महसूस किया। मेरी आंखों में देखकर उसने कहा, “काम अधूरा छोड़ने की आदत बहुत पुरानी है तुम्हारी। आओ, आख़री फेरा पूरा कर लें।”
उसके पापा सीढ़ियों पर चढ़ते चले आ रहे थे। उसने टीक की सेंटर टेबल पर मोमबत्ती जला ली और मेरा हाथ थामकर चारों ओर एक चक्कर लगाया। दरवाज़े पर घंटी बजी। पापा आ चुके थे।
बोली, “मुझे खोने का ग़म मत करना। हमारे बीच जो था, उसे याद करके कभी-कभी मुस्कुरा लेना।” घंटी फिर से बजी। वो बोली, “मैनर्स नहीं हैं क्या? दूसरी शादी की मुबारकबाद भी नहीं दोगे?”
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