शायर और इंतज़ार--ये दो छोकरे यूं तो पुराने यार हैं, लेकिन मेरा मानना है कि इन्हें एक-दूसरे के साथ एक ही कमरे में ज़्यादा वक़्त तक नहीं बैठना चाहिए। शायर कमज़ोरदिल होता है और इंतज़ार बेदर्द होता है।

हफ़्ते बीत गए। कबीर फ़िक्र के दलदल में डूब रहा था। क्या हो गया होगा? तबीयत तो ठीक होगी उसकी? उसके मां-बाप ने ज़्यादती तो नहीं कर दी होगी कोई उसके साथ? अहमद से फ़ोन मिलवाया। उसे भी बताया गया कि हिना फ़ोन पर नहीं आ सकती।

फिर एक दिन बताया गया कि वो बिज़ी हैं। फिर एक दिन कहा गया कि इस नाम का यहां कोई नहीं रहता और आप क्यों बार-बार फ़ोन करके तंग करते हैं! सच था ये। उस नाम की वहां कोई नहीं रहती थी।  उस नाम की लड़की तो उस पीर की मज़ार के सामने याद शहर में रहती थी,

फ़िक्र कभी-कभी झुंझलाहट और गुस्से में बदल जाती थी। क्या हिना इतने हफ़्तों में पांच मिनट का वक़्त भी नहीं निकाल पाई कि फ़ोन करके बता थे कि वो खैरियत से है? कबीर की तबीयत बिगड़ने लगी।कभी कॉलेज जाता था, कभी नहीं। मुशायरों में आने का न्योता आता था तो मना कर देता था।

ऐसा लगता था जैसे एक शायर की मौत हो गई थी। एक दिन सब्र का धागा टूट गया। अख़बार के ग्यारहवें पन्ने पर हिना की फ़ोटो छपी थी। वैसे ही चमक-दमक के साथ किसी स्टेज शो में गाना गाते हुए।

कबीर का खून खौल गया। इसका मतलब था हिना एकदम ठीक थी और फिर भी खुद को उसकी ज़िंदगी से निकाल चुकी थी? अख़बार को फाड़कर फेंक दिया और ख़ुद को वचन दिया कि जितने प्यार से उसको

प्यार किया वैसे ही नफ़रत करेगा और जिस मुकाम का उसे घमंड है, उससे भी बड़ा मुकाम हासिल करके दिखाएगा।जैसे किसी मछली को पानी से निकाल दिया जाए, जैसे किसी किसान की फ़सल जला दे कोई,

जैसे किसी किसान की फ़सल जला दे कोई, जैसे किसी वैज्ञानिक का बरसों की मेहनत के बाद किया गया आविष्कार कोई उससे छीनकर ले जाए--ऐसा ही लगता होगा एक गायिका को, अगर उसकी आवाज़ चली जाए।

हिना को ऐसा लग रहा था जैसे कोई भयानक ज्वालामुखी अभी फट पड़ा था और वो उससे फूटते लावा की नदियों के सीधे रास्ते में खड़ी थी--धधकती, दहकती आग अपने बदन पर लपेटे और उफ़्फ़ तक ना कर पा रही हो।

शादी की उस रात जब उसकी आवाज़ चली गई थी तबसे हज़ार बार मुंह खोलकर उसने बोलने की कोशिश की थी, आलाप लेने की कोशिश की थी, चीख़ने की कोशिश की थी।बस इतनी-सी आवाज़ आती थी कि जैसे आवाज़ का कोई ख़ाली कुंआ हो ,