पुरानी हवेली का रहस्य अब अपने अंतिम चरण में है। शिवांगी सत्य दर्पण के सामने अपने अस्तित्व का सबसे बड़ा बलिदान देने को तैयार है। क्या वह धरती की गुमनाम रक्षक बन पाएगी? पढ़ें यह दिल छू लेने वाली कहानी।
शिवांगी ने सत्य दर्पण को मुक्त करने के बाद महसूस किया कि वह केवल एक अध्याय समाप्त कर पाई है। उसे यह एहसास हुआ कि उसका जीवन अब सिर्फ उसके लिए नहीं है, बल्कि उन सभी के लिए है जो इस अभिशाप से पीड़ित थे।
मंदिर के पुजारी ने उसे बताया, “यह अंतिम सत्य केवल उसी को दिखता है जो अपने जीवन का त्याग कर दूसरों की रक्षा करना चाहता है। सत्य दर्पण तुम्हें तुम्हारे अंतिम उद्देश्य तक ले जाएगा।”
सत्य दर्पण ने शिवांगी को उसके भीतर के सबसे गहरे डर का सामना कराया। उसने देखा कि उसकी परछाई उससे बातें कर रही थी। परछाई ने कहा – तुमने अब तक जो कुछ किया है, वह दूसरों के लिए था। लेकिन क्या तुम अपनी आत्मा को मुक्त करने के लिए तैयार हो?
शिवांगी ने अपने अंदर से आवाज़ सुनी और साहस जुटाते हुए दर्पण की ओर कदम बढ़ाए। दर्पण ने उसे एक प्रकाशमयी गुफा में पहुंचा दिया।
गुफा के अंदर एक विशाल कक्ष था, जहां समय रुक चुका था। वहां एक सिंहासन पर बैठा एक रहस्यमयी व्यक्ति था। उसने शिवांगी से कहा, “तुमने यहां तक आकर दिखा दिया कि तुममें साहस है। लेकिन अंतिम सत्य जानने के लिए तुम्हें अपना सबसे बड़ा बलिदान देना होगा। क्या तुम तैयार हो?
शिवांगी ने दृढ़ता से सिर हिलाया।
उस व्यक्ति ने कहा – तुम्हें अपना नाम और अस्तित्व छोड़ना होगा। तुम इस धरती पर केवल एक गुमनाम रक्षक बनकर रह जाओगी। क्या तुम यह स्वीकार करती हो?
शिवांगी ने अपनी आँखें बंद कर लीं और गहरी सांस लेते हुए कहा, “अगर यह सबके लिए है, तो मैं तैयार हूँ।
उसके शब्दों के साथ ही गुफा रोशनी से भर गई, और शिवांगी का अस्तित्व समय और स्थान से परे चला गया। वह अब किसी की यादों में नहीं थी, लेकिन उसकी आत्मा धरती पर हर कठिनाई और अभिशाप से लड़ने वाले के साथ थी।
गांव में हवेली अब पूरी तरह समाप्त हो चुकी थी। लोग इसे अब एक पवित्र स्थल के रूप में मानने लगे। शिवांगी की कहानी केवल दंतकथा बनकर रह गई, लेकिन उसके बलिदान ने पूरे गाँव को सुरक्षित बना दिया।
सत्य दर्पण के पास एक संदेश उभर कर आया
जब तक साहसी आत्माएँ होंगी, सत्य कभी नहीं छिपेगा।