सिद्धपुर गाँव का ‘कालरात्रि मंदिर’ अपनी खौफनाक कहानियों के लिए मशहूर है। जब एक पुरातत्वविद अरविंद ने इसका रहस्य जानने की ठानी, तो उसने खुद को ऐसी भयानक सच्चाई के सामने पाया जिसे वह कभी नहीं भूल सकता। जानिए इस मंदिर का डरावना इतिहास और अरविंद की जिज्ञासा का अंजाम। horror story in hindi
कहानी का शीर्षक – कालरात्रि का रहस्य भाग 1
रात गहरी थी। काले आसमान में चांद का एक टुकड़ा भी नहीं दिख रहा था। पूरे गाँव में एक अजीब सी खामोशी फैली हुई थी। यह ‘सिद्धपुर’ था, जो एक छोटा सा पहाड़ी गाँव था, लेकिन इसके बारे में कुछ ऐसा था जिसने इसे बाकी गाँवों से अलग बना दिया था—इस गाँव का एक पुराना और डरावना मंदिर, जिसे लोग ‘कालरात्रि का मंदिर’ कहते थे। कहते हैं, इस मंदिर में कोई ऐसी आत्मा कैद थी जो हर पूर्णिमा की रात को जाग जाती थी।
सिद्धपुर के निवासी इस मंदिर से दूरी बनाए रखते थे। लेकिन एक दिन गाँव में एक अजनबी आया। उसका नाम था अरविंद, जो एक पुरातत्वविद था। अरविंद ने गाँव के लोगों से कालरात्रि मंदिर के बारे में सुना और उसने ठान लिया कि वह इस रहस्य को सुलझाएगा।
गाँव के बुजुर्ग हरिदास ने उसे चेतावनी दी, “बेटा, उस मंदिर के पास मत जाना। जो भी वहाँ गया, वह कभी लौटकर नहीं आया।”
लेकिन अरविंद ने कहा, “मैं विज्ञान पर विश्वास करता हूँ, इन बातों पर नहीं। मैं जानना चाहता हूँ कि वहाँ ऐसा क्या है जिससे लोग डरते हैं।”
हरिदास ने उसकी आँखों में उत्सुकता देखी, लेकिन वह कुछ नहीं बोले।
अगली रात, अरविंद ने अपना सामान उठाया और गाँव के बाहर स्थित उस मंदिर की ओर बढ़ गया। जंगल के बीचों-बीच स्थित इस मंदिर तक पहुँचने के लिए उसे लगभग दो घंटे का सफर तय करना पड़ा। उसके हाथ में एक टॉर्च और एक पुराना नक्शा था, जो उसने गाँव के एक स्थानीय व्यक्ति से लिया था।
जब वह मंदिर पहुँचा, तो उसे लगा जैसे कोई उसे देख रहा हो। चारों ओर घना अंधेरा और अजीब सी ठंडक थी। मंदिर की दीवारें काई से ढकी हुई थीं, और उस पर अजीबोगरीब चित्र बने हुए थे—दूसरी दुनिया के जीवों और राक्षसों के।
मंदिर के दरवाजे पर एक पुरानी लोहे की जंजीर लटक रही थी। अरविंद ने जंजीर को हटाया और दरवाजा खोला। अंदर का दृश्य देखकर उसका दिल धड़कने लगा।
मंदिर के अंदर विभिन्न मूर्तियाँ थीं, जिनकी आँखें उसे घूर रही थीं। उनकी अभिव्यक्ति इतनी जीवंत थी कि अरविंद को लगा जैसे वे कभी भी चलने लगेंगी।
दीवारों पर शिलालेख थे, जिन्हें अरविंद ने पढ़ने की कोशिश की। यह प्राचीन संस्कृत में लिखे गए थे, लेकिन जो वह समझ सका, वह यह था:
“जो भी कालरात्रि की निद्रा भंग करेगा, वह मृत्यु का वरण करेगा।”
अरविंद ने इसे अंधविश्वास मानकर नज़रअंदाज़ कर दिया और आगे बढ़ा।
जैसे ही वह मंदिर के मुख्य कक्ष में पहुँचा, एक तेज़ हवा का झोंका आया और दरवाजा अपने आप बंद हो गया। अरविंद ने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।
तभी उसे एक धीमी आवाज सुनाई दी। ऐसा लगा जैसे कोई फुसफुसा रहा हो। उसने अपनी टॉर्च से इधर-उधर देखा, लेकिन कुछ नहीं दिखा। अचानक, एक मूर्ति से खून की एक बूंद टपकी। अरविंद का दिल तेजी से धड़कने लगा, लेकिन उसने खुद को संभाला।
“यह मेरी कल्पना है,” उसने खुद से कहा।
जैसे ही उसने मुख्य कक्ष के बीचोबीच रखे एक तांबे के बक्से को खोलने की कोशिश की, पूरा मंदिर काँपने लगा। मूर्तियों की आँखें चमकने लगीं, और हवा में एक तीखी चीख सुनाई दी।
अरविंद ने देखा कि बक्से के अंदर एक पुराना ताबीज़ था। उस पर कुछ रहस्यमय चिन्ह बने हुए थे। उसने ताबीज़ उठाया और तभी चारों ओर आग की लपटें उठने लगीं।
तभी, एक भारी आवाज गूँजी, “कौन है जो मेरी निद्रा भंग करने आया है?”
अरविंद ने चारों ओर देखा, लेकिन कोई नहीं था। फिर अचानक, एक काली छाया उसके सामने प्रकट हुई। उसकी आँखें जलती हुई अंगारों की तरह लाल थीं।
“मैं एक शोधकर्ता हूँ,” अरविंद ने साहस जुटाकर कहा। “मैं केवल यह जानना चाहता हूँ कि इस मंदिर का इतिहास क्या है।”
छाया ने जोर से हँसते हुए कहा, “यह इतिहास नहीं, विनाश का मार्ग है। यह ताबीज़ मेरे और इस दुनिया के बीच की दीवार है। इसे हटाने का परिणाम तुम जानते हो?”
अरविंद ने जवाब दिया, “मैं अंधविश्वास में विश्वास नहीं करता। तुम कौन हो?”
छाया ने कहा, “मैं कालरात्रि हूँ। इस मंदिर में हजारों वर्षों से कैद हूँ। लेकिन अब तुमने मुझे मुक्त कर दिया है।”
अरविंद समझ गया कि उसने गलती कर दी है।
उसने ताबीज़ वापस रखने की कोशिश की, लेकिन ताबीज़ उसकी हथेली में जलने लगा। कालरात्रि ने कहा, “अब यह इतना आसान नहीं है। तुम्हारी जिज्ञासा ने तुम्हारी मृत्यु को आमंत्रित किया है।”
अरविंद ने मंदिर से बाहर भागने की कोशिश की, लेकिन दरवाजा बंद हो चुका था। चारों ओर से मूर्तियाँ उसकी ओर बढ़ने लगीं। उनकी आँखों से खून बह रहा था, और उनके हाथों में तेज़ धार वाले हथियार थे।
अरविंद ने आखिरी बार चिल्लाते हुए कहा, “मुझे माफ करो!”
तभी, एक तेज़ चीख के साथ सब कुछ शांत हो गया। अगली सुबह, गाँव वालों ने देखा कि मंदिर के दरवाजे फिर से बंद हो गए थे, लेकिन अरविंद का कोई पता नहीं था।
गाँव वाले समझ गए कि अरविंद भी कालरात्रि का शिकार हो गया। हरिदास ने बाकी गाँव वालों से कहा, “यह मंदिर हमारी सीमा है। यहाँ कदम रखने वाला कभी वापस नहीं आता।”
वर्षों बाद, सिद्धपुर में कोई अजनबी आया और कालरात्रि मंदिर के बारे में पूछने लगा। लेकिन गाँव वालों ने कुछ नहीं कहा।
कहानी अभी बाकी है…?