कालरात्रि मंदिर में अरविंद के गायब होने के बाद, सिद्धपुर में अजीब घटनाएँ शुरू हो गईं। एक तांत्रिक विदुषी अन्वेषा ने गाँव के लोगों को बचाने का बीड़ा उठाया। लेकिन क्या वह कालरात्रि के शाप को खत्म कर पाई? जानिए इस रहस्यमय कहानी का दूसरा भाग। horror story in hindi
कहानी का दूसरा भाग – कालरात्रि का पुनर्जन्म
अरविंद के गायब होने के कुछ महीनों बाद, सिद्धपुर में अजीब घटनाएँ होने लगीं। रात के समय लोगों को अपने घरों के पास किसी के चलने की आवाजें सुनाई देतीं। खेतों में काम करने वाले मजदूरों ने बताया कि उन्होंने जंगल की तरफ किसी काली छाया को देखा है।
गाँव की महिलाएँ शिकायत करने लगीं कि उनके आँगन में रखे घड़े अपने आप टूट जाते हैं, और बच्चों ने डरावने सपने देखने की बात कही। यह सब गाँव के लोगों को डराने के लिए काफी था।
बुजुर्ग हरिदास ने इसे कालरात्रि के जागने की निशानी बताया। “अरविंद ने जो गलती की, उसकी कीमत अब पूरे गाँव को चुकानी पड़ेगी। हमें कुछ करना होगा।”
लेकिन कोई भी यह तय नहीं कर पा रहा था कि आखिर किया क्या जाए।
इस बीच, गाँव में एक और अजनबी आया। उसका नाम था अन्वेषा। वह एक विद्वान और तांत्रिक शास्त्र की विशेषज्ञ थी। उसने सिद्धपुर के बारे में सुना था और जानना चाहती थी कि आखिर इस रहस्य के पीछे क्या सच है।
गाँव के लोग उससे मिलना नहीं चाहते थे, लेकिन जब उसने हरिदास से बात की, तो उन्होंने उसे सब कुछ बता दिया। अन्वेषा ने कहा, “कालरात्रि को रोकने का एक तरीका है। लेकिन यह बहुत खतरनाक है। मैं इसकी कोशिश कर सकती हूँ, लेकिन मुझे आपकी मदद चाहिए।
गाँव वाले पहले तो सहमे रहे, लेकिन जब अजीब घटनाएँ बढ़ने लगीं, तो उन्होंने अन्वेषा की मदद करने का फैसला किया।
पूर्णिमा की रात को, अन्वेषा ने कालरात्रि मंदिर जाने की ठानी। उसके साथ कुछ गाँव वाले भी गए। उनके पास तांत्रिक उपकरण, मंत्रों की पुस्तकें, और सुरक्षा के लिए मशालें थीं।
जैसे ही वे मंदिर पहुँचे, दरवाजा अपने आप खुल गया। अन्वेषा ने सभी को सतर्क रहने के लिए कहा और धीरे-धीरे अंदर गई।
मंदिर के अंदर, सब कुछ पहले जैसा ही था, लेकिन अब दीवारों पर बने चित्र और भी डरावने लग रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वे जीवित हो गए हों।
जब अन्वेषा मुख्य कक्ष में पहुँची, तो उसने देखा कि वह तांबे का बक्सा अब खुला हुआ था। और उसी जगह एक काला धुआँ उठ रहा था। यह कालरात्रि थी, जो पूरी तरह से जाग चुकी थी।
कालरात्रि ने गूँजती हुई आवाज में कहा, “तुम इंसानों को सबक नहीं मिला? एक बार मेरी निद्रा भंग की, और अब फिर से यहाँ आए हो?”
अन्वेषा ने शांत स्वर में कहा, “मैं तुम्हें रोकने आई हूँ। तुमने इस गाँव के लोगों को बहुत तंग किया है। अब तुम्हारा समय खत्म हो गया है।”
कालरात्रि ने जोर से हँसते हुए कहा, “तुम जैसी साधारण मानव मुझे रोकोगी? यह असंभव है।”
अन्वेषा ने अपना तांत्रिक उपकरण निकाला और एक मंत्र पढ़ना शुरू किया। लेकिन जैसे ही उसने मंत्र पढ़ा, मंदिर के अंदर तेज़ हवा चलने लगी। मशालें बुझ गईं, और चारों ओर गहरा अंधकार छा गया।
मंत्र पढ़ते-पढ़ते, अन्वेषा को एक अजीब दृश्य दिखाई दिया। उसने देखा कि सदियों पहले, कालरात्रि एक साधारण युवती थी, जिसका नाम कुसुम था। उसे गाँव के लोगों ने चुड़ैल कहकर जलाया था क्योंकि वे उसके ज्ञान और शक्तियों से डरते थे।
कुसुम ने मरते वक्त यह शाप दिया था कि जब तक उसके साथ न्याय नहीं होगा, वह गाँव को चैन से नहीं जीने देगी। उसकी आत्मा को उसी मंदिर में कैद कर दिया गया था।
अन्वेषा ने समझ लिया कि कालरात्रि की आत्मा को शांत करने के लिए उसे न्याय दिलाना होगा।
अन्वेषा ने मंत्र बदलकर कुसुम की आत्मा से बात करने की कोशिश की। उसने कहा, “मैं समझती हूँ कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ। लेकिन यह गाँव अब वह नहीं है जिसने तुम्हें दर्द दिया। यह लोग अब तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं। मैं वादा करती हूँ कि तुम्हें तुम्हारा सम्मान वापस मिलेगा।”
कालरात्रि कुछ देर के लिए शांत हो गई। लेकिन उसने कहा, “मेरे शाप को तोड़ने के लिए तुम्हें एक बलिदान देना होगा। यह मंदिर तभी शुद्ध होगा।”
अन्वेषा समझ गई कि इस समस्या का हल आसान नहीं होगा। उसने गाँव वालों से कहा, “यह बलिदान कोई साधारण वस्तु नहीं है। यह एक जीवन का बलिदान है। कोई ऐसा व्यक्ति जो अपनी मर्जी से अपना जीवन दे, तभी यह शाप टूटेगा।”
गाँव में कोई भी अपने प्राण देने को तैयार नहीं था। लेकिन तभी हरिदास ने आगे बढ़कर कहा, “मैं अपना जीवन देने को तैयार हूँ। मैंने देखा है कि यह गाँव कितनी पीड़ा झेल रहा है। अगर मेरी मृत्यु से यह सब खत्म होता है, तो मैं इसे खुशी-खुशी स्वीकार करूंगा।”
अन्वेषा ने हरिदास को रोका, लेकिन उसने कहा, “यह मेरा फैसला है।”
हरिदास ने कालरात्रि के सामने खड़े होकर अपनी आँखें बंद कीं। अन्वेषा ने अंतिम मंत्र पढ़ा, और हरिदास ने अपने प्राण त्याग दिए।
कालरात्रि की आत्मा धीरे-धीरे धुएँ में बदल गई और हवा में विलीन हो गई। मंदिर की दीवारों पर बने चित्र गायब हो गए, और वहाँ एक शांति छा गई।
हरिदास के बलिदान के बाद, सिद्धपुर फिर से सामान्य हो गया। मंदिर अब बंद कर दिया गया और वहाँ जाने की मनाही कर दी गई। अन्वेषा ने हरिदास की याद में गाँव के बीच एक स्मारक बनवाया।
लेकिन गाँव वालों को हमेशा यह एहसास रहा कि कुसुम की कहानी ने उन्हें एक बड़ा सबक सिखाया—अंधविश्वास और अन्याय किसी के लिए भी विनाशकारी हो सकते हैं।
कहानी अभी बाकी है…?