3.Real pyar Ki Hindi kahani read । पारिवारिक मोटिवेशनल कहानी

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पारिवारिक प्यार की मोटिवेशनल कहानी Hindi Kahani

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आइये इस पारिवारिक Pyar Ki Hindi Kahani आखरी Part को पढ़ते हैं।

कहानी का शीर्षक है-  एक पोस्टमैन की चिट्ठी 

…..उसने लिखा-पिताजी कई महीनों से सोच रहा हूं कि मैं ये बात आपसे कहूं, लेकिन कहूं तो कैसे। हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। दिव्या का बीएड एज्ज़ाम में सिलेक्शन हो गया है। आज ही चिट्ठी आई, अब ट्रेनिंग के लिए जाया करेगी और फिर नौकरी करेगी कहीं। सरल के लिए घर पर कोई फ़ुल टाइम मेड रखनी होगी।

वैसे भी वो बड़ा हो गया है और उसे अपने कमरे की ज़रूरत है, जिसे वो अपने हिसाब से बना सके। घर में इस सबके लिए जगह थोड़ी कम पड़ जाएगी। इसलिए मैं सोच रहा हूं। किसी नए किराए के मकान में शिफ़्ट हो जाऊं। उम्मीद है आप मेरी बात समझ जाएंगे।

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बचपन से आज तक इसी घर में बड़ा हुआ। बड़ी ख़ूबसूरत यादें हैं यहां की। पर अब लगता है प्रैक्टिकल होकर सोचना होगा। मुझे ग़लत मत समझिएगा। आप लोगों की सेवा के लिए मैं एक पूरे समय का नौकर रख दूंगा। और मकान पास में ही ढूढूंगा, ताकि हर दूसरे-तीसरे दिन मिलना होता रहे। आमने-सामने तो मैं ये बात कभी कह नहीं पाता।

पता नहीं चिट्ठी में भी अपनी बात ठीक से रख पाया के नही। मैं ये इसलिए कर रहा हूं क्योंकि बढ़ते हुए बच्चों को ज़्यादा ख़ुली जगह की ज़रूरत होती है। मुझे और दिव्या को भी कुछ प्राइवेसी मिल जाएगी और आप लोगों को भी अपने रिटायरमेंट के बाद कम से कम आराम से एक टू बेडरूम अपार्टमेंट में रहने को मिल जाएगा। बजाय सिर्फ़ एक करे में।

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मैं झटके से कुर्सी पर बैठ गया। सामने छोटी प्लेट हटाकर स्टील के जग से पानी पीया। रिटायरमेंट का फ़ंक्शन चालीस मिनट में शुरू होने वाला था। लेकिन मेरे बेटे ने अपनी ज़िंदगी से पहले ही रिटायर कर दिया था। तीन बार ऊपर से नीचे तक मैंने चिट्ठी पढ़ी। यकीन ही नहीं हुआ कि वो बेटा जो मेरी आंखों का तारा था, जिसे इतने प्यार से मैंने बड़ा किया, जिसको मैं आजतक बुढ़ापे का सहारा मानता था, वही बेटा मुझे बस एक झटके में, एक चिट्ठी लिखकर छोड़ के जा रहा था।

कमला कमरे के अंदर आई बोली, “देर क्यों कर रहे हो जाते क्यों नहीं?” मैंने कहा, “जा तो सुनील रहा है। तुम्हारा बेटा घर छोड़कर जा रहा है। ” चालीस मिनट बाद में अपने पोस्ट ऑफ़िस में अपने फ़ेयरवल फ़ंक्शन में बैठा था। एक छोटे से स्टेज पर, एक सफ़ेद मेज़पोश के ऊपर गेंदे के फूल की माला, जो अभी-अभी मुझे पहनाई गई थी, पानी की एक बोतल और कुछ तोहफे रखे थे। और एक सर्टिफ़िकेट रखा था, जो मुझे अभी मिलने वाला था।

पारिवारिक Pyar Ki Hindi Kahani

 

याद शहर सर्कल के जनरल मैनेजर हम सबके बॉस सक्सेना साहब का भाषण चल रहा था। लेकिन मैं अपने ही ख़्यालों में गुम सामने बैठे, पचास साठ कलीग को देख रहा था। असल में मेरी आंखों के सामने कोई और ही चेहरे, लम्हें, मौसम, दिन घूम रहे थे। वो रात जब सुनील पैदा हुआ था। याद शहर के सिविल अस्पताल में।

जब घर की कोई भी महिलाएं आ नहीं पाई थी और मैं ऑपरेशन थिएटर के बाहर बैठा समझ ही नहीं पा रहा था कि बच्चे के आने की तैयारी के लिए करना क्या क्या होता है। जल्दी-जल्दी, छोटे- छोटे ऊन के मोज़े, एक छोटा कंबल, दूध की बोतल और छोटी-छोटी फ्रॉकें। कमला के लिए गरम पानी। तब मुझे बेटी का इंतज़ार था। कमला बेटा चाहती थी, ज़िंदगी में हमेशा उसी की तो चली है।

सुनील के लिए हमेशा अपनी हैसियत से ज़्यादा किया। ख़ुद पांच किलोमीटर पैदल जाता था, पर बेटे को साइकिल दिलाई उसकी यूनीवर्सिटी के कोर्स के लिए फ़िक्स डिपोज़िट तोड़ा। फुटबॉल टूर्नामेंट के लिए जब उसने नए महंगे जूते मांगें तो कभी दोबारा सवाल नहीं किया। पोता हुआ तो एक और फ़िक्स डिपोज़िट तोड़ा और उसके नाम कर दिया। फेयरवेल में भाषण चलते जा रहे थे। लेकिन मुझे तो कोई और ही आवाज़ें सुनाई पड़ रही थी।

एलटीसी पर मसूरी गए मेरे परिवार की टूरिस्ट गैस्ट हाउस में गूंजती हंसी। रामलीला में सुग्रीव बने मेरे बेटे का धम्म से स्टेज पर पैर मारना और मेरा ये सोचना कि कहीं उसके पैर में मोच ना आ गई हो। “राम दत्त जी, राम दत्त जी,” मुझे मेरे बगल में बैठे अहमद सर की आवाज़ ने यादों की नींद से उठा दिया। मेरा नाम पुकारा जा चुका था। “और अब हम सबके चहेते राम दत्त जी से आग्रह करूंगा की वो ख़ुद भी आकर दो शब्द कहें। ”

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गेंदे के फूल की माला, तोहफे, सर्टिफ़िकेट सब लेकर ऑटो से घर पहुंचा, तो कमला घर पर अकेली थी। खिड़की पर बैठी थी। रो चुकी थी। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, “मैंने कहा था ना कमला, बेटी होनी चाहिए। बेटी विदा करना तो सौभाग्य से माता-पिता को नसीब होता है, बेटा विदा करना तो हमने सीखा ही नहीं। ”

चाहे जितनी शेखी बघारे, आदमी असल में अंदर से निहायत ही कमज़ोर होते हैं, औरतें मज़बूत होती हैं। तकलीफ़ चाहे अंदर ही अंदर सहती रहें, टूटती रहें, पर बाक़ी सबको जोड़कर रखती है। कमला ने मुझे देखा और बोली, “चाय पिओगे?” शाम हो गई सुनील और दिव्या लौटकर घर आए। सरल खेलकर वापस आ गया। खाने पर मुझे बुलाया गया।

मैं चुपचाप अपना खाना खाता रहा। किसी से कोई बात नहीं की। सुनील ने कहा, “पापा। ” मैंने उसे तकलीफ़ में डूबी हुई आंखों से देखा, जैसे कह रहा हूं तुम भी सबकी जैसे निकले बेटा। मैं खाना आधा छोड़कर अंदर चला दिनभर से आंखों में रुके हुए आंसू निकल ही पड़े थे।

कमला बग़ल में बैठ गई। मेरा हाथ अपने हाथों में लिया। मैंने कहा, “उसने एक बार भी नहीं सोचा, बस छोड़कर जा रहा है हमें?” कमला ने मुझे एक तकिया देकर आराम से बिठाया फिर बोली, “क्या ग़लत कर रहा है वो?” मैंने हैरत से कमला को देखा। हाथ खींच लिया कहा, “कमला क्‍या बात कर रही हो तुम? हमने क्या-क्या किया है उसके लिए।

” कमला ने सीधा मेरी आंखों में देखा और कहा, “तो कौन- सा एहसान कर दिया? हमने मां-बाप होने का फ़र्ज़ निभाया है बस, जो हमने अपने बेटे के लिए किया वो हमारे मां-बाप ने हमारे लिए किया था और वही हमारा बेटा अपने बेटे के लिए करेगा। यही तो रीत है।

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” मैंने कहा, “पर वो घर छोड़कर जा रहा है। ” कमला बोली, “तुमने भी तो गांव छोड़ा था। तुम्हारे पिता को भी ठेस लगी होगी। ” “अरे मैंने नौकरी छोड़ने के लिए, अपने घर पैसे भेजने के लिए घर छोड़ा था। वो कहता है, प्राइवेसी चाहिए। जैसे तुम हम पहरे रखे हैं उस पर। ” कमला ने कहा, “ज़माना बदल गया है। हमें भी बदलना होगा और ज़रूरी नहीं है कि हर बदलाव बुरा हो।

बेटा दूसरे घर में जा रहा है इसका ये मतलब तो नहीं कि वो हमसे प्यार नहीं करता है। तुम भाग्यशाली हो तुम्हें इतना अच्छा बेटा मिला। ख़ुदगर्ज़ मत बनो। जिसमें उसकी ख़ुशी है उसमें हमारी ख़ुशी है। ”

थोड़ी देर बाद मैं ड्रॉइंगरूम में गया। सब लोग बैठे थे। मेरे आते ही चुप हो गए। मैंने सरल से कहा, “सरल बेटा, पोस्टमैन दादाजी को ई-मेल कला सिखाओगे?”

बस इतनी सी थी यह Hindi Kahani …

यह था इस Heart touching short Hindi Kahani का आखरी हिस्सा।

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